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अभिमान को त्यागना बहुत आवश्यक : संत सुभाष शास्त्री

जागरण संवाददाता कठुआ शहर के वार्ड -16 में स्थित शिवा नगर में शुक्रवार को आयोजित सत्सं

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Sep 2021 04:26 AM (IST)Updated: Sat, 04 Sep 2021 04:26 AM (IST)
अभिमान को त्यागना बहुत आवश्यक : संत सुभाष शास्त्री
अभिमान को त्यागना बहुत आवश्यक : संत सुभाष शास्त्री

जागरण संवाददाता, कठुआ: शहर के वार्ड -16 में स्थित शिवा नगर में शुक्रवार को आयोजित सत्संग में संत सुभाष शास्त्री जी महाराज ने श्रद्धालुओं को ज्ञान की बातें बताते हुए कहा कि जिस किसी भी मनुष्य में किसी भी चीज के कारण अभिमान है, समझ लेना कि उसके कर्म काम अधर्म के आधार पर हैं, क्योंकि धर्म के पथ पर चलने वाले के स्वभाव में अभिमान आ ही नहीं सकता। जीवित प्राणी में लचीलापन होता है और उसके विपरीत मुर्दा अकड़ा हुआ होता है, इसलिए अभिमान को त्यागना बहुत आवश्यक है।

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शास्त्री जी ने कहा कि लोग कहते हैं कि इतिहास में भी लिखित है कि रावण और सिकंदर सरीखे आततायी जब इस धरती पर चलते थे तो धरती कांपती थी, लेकिन असल बात यह है कि धरती कांपती नहीं थी अपुति हंसती थी और कहती थी कि मेरे अंश के विस्तार होकर मुझे ही अकड़ दिखा रहे हैं, चलो थोड़ी देर और पाप क्रियाओं में व्यस्त रहो और अंत में खाली हाथ मेरी ही गोद में आना है। उन्होंने कहा कि सिकंदर विश्व विजेता और रावण जिसने मृत्यु को सिरहाने बंद कर रखा था, वह दोनों जब मृत्यु को प्राप्त हुए तो इनको इस धरती पर याद करने वाला कोई भी नहीं था, क्योंकि दोनों अति अभिमानी थे, क्या हुआ उनके इतने अभिमान का, जिस किसी ने भी इस अभिमान को त्यागा, वह संत हो गया। मनुष्य के अभिमान का मुख्य कारण है इस मायावी संसार के साथ जुड़ना। आपके जीवन में संसार का कोई स्थान नहीं है। यदि आपके जीवन में कुछ मूल्यवान है तो वह स्वयं का मूल्य। स्वयं की सत्ता से बढ़कर और कोई दूसरी सत्ता नहीं है, जो उसे पा लेता लेता है, वह सब कुछ पा लेता है और जो उसे खो देता है, वह सब कुछ खो देता है अर्थात मानव जीवन मनुष्य योनि के मकसद को, इसलिए स्वयं को जानने का प्रयास करें, उसे जानने के बाद ही आप में केवल लचीलापन ही बनेगा। अपने आप को जानने की जरूरत है, क्योंकि आप स्वयं स्वरूप है, आप ही सच्चिदानंद, परमात्मा को कहीं भी ढूंढने की जरूरत नहीं है। शरीर मिला सच जानने को, साधना, भक्ति करने के लिए। मिली हुई चीज कभी भी अपनी नहीं होती। जब हम इस जगत में आए थे तो हमें यह पता नहीं था कि लड़की है या लड़का, ये सब जहां आकर ही मिला है।

शरीर एक मकान की तरह है,लेकिन आप उसे अपना समझ बैठे है, जबकि मकान आप साथ लेकर नहीं आए हैं। शरीर मिली हुइ चीज है, जो कभी भी बिछुड़ सकती है। यह सब जानने के लिए गुरु से बुद्धि लेनी है, ताकि ज्ञान हो, विवके हो और बोध हो। तब आपको पता चलेगा शरीर मैं नहीं, आत्मा है,जो ब्रह्म है,इसलिए मैं कौन हूं, यह जानने के लिए गुरु के पास जाना है। स्वप्न में दिखाई देने वाला सुबह जागने पर कुछ नहीं रहता, रहता है तो सिर्फ देखने वाला और वह है आत्मा, जो अमर है, अजन्म है, ब्रह्म स्वरूप है, जो कभी नहीं मरती है,अमर है, इसलिए आत्मज्ञानी को कोई भी नहीं मार सकता है।


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