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न किराया मिला, न जमीन, किसान परेशान

जागरण संवाददाता कठुआ भारत - पाक सीमा पर स्थित हीरानगर के किसानों को कई तरह की समस्य

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 07:54 PM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 12:33 AM (IST)
न किराया मिला, न जमीन, किसान परेशान

जागरण संवाददाता, कठुआ: भारत - पाक सीमा पर स्थित हीरानगर के किसानों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान की अकारण गोलाबारी की समस्या से विगत दो दशकों से सीमांत क्षेत्र के लोग परेशान हैं हीं। हालांकि, अब कुछ महीनों से शांति है, लेकिन कब पाकिस्तान अपनी बंदूकों का मुंह इस ओेर खोल दे, इसका कोई गारंटी नहीं। सिर्फ यही समस्या ही नहीं, बल्कि वहां समय-समय पर सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली किसानों की कृषि योग्य भूमि के कई मामले लंबित हैं, जिनका कई सालों से समाधान नहीं हो पाया है। कुछ ऐसा ही मामला सीमांत पहाड़पुर में है, जहां के करीब 25 किसानों की 251 कनाल भूमि सेना द्वारा डिच बनाने (सुरक्षा बांध) के लिए इस्तेमाल में लाई जा रही है।

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वर्ष 1995 तक सेना 350 रुपये प्रति कनाल के हिसाब से किसानों को हर साल किराया अदा करती रही, लेकिन बाद से आज तक किसानों को उसका कोई किराया तक नहीं मिल रहा है। किराया तो दूर किसानों को सेना द्वारा उक्त भूमि आज तक वापस भी नहीं की गई है। किसानों को वर्ष 2008 में सेना द्वारा सरकार को यह कह कर किराया बंद कर देने की बात कही कि वो अब डिच को इस्तेमाल नहीं करते हैं, जिसके चलते किसान अपनी भूमि पर वापस कृषि कर सकते हैं। बाक्स---

डिच बनाकर छोड़ी भूमि पर कैसे हो पाएगी खेती

गांव महराजपुर के किसान कर्म चंद व बलबंत सिंह का कहना है कि सीमा पर रहने का उन्हें कई तरह का खामियाजा भुगतना पड़ता है। सेना ने बिना बताये उनकी भूमि का 13 साल तक किराया नहीं दिया और जब उन्होंने किराया नहीं देने का कारण जानने का प्रयास किया तो सेना की ओर से प्रशासन को अब डिच का इस्तेमाल नहीं होने की बात कही गई, और ये भी कहा गया कि डिच की भूमि का अब किसान अपनी खेती के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन डिच जो करीब 30 फीट गहरी और 50 फीट चौड़ी होने के कारण उसमें पानी भरा रहता है, को दोबारा अपने खेतों के साथ जोड़ कर उनमें कृषि करना असंभव है, क्योंकि उसे कृषि योग्य बनाने के लिए पहले समतल बनाने की जरूरत है। जिस पर लाखों नहीं करोड़ों खर्च होंगे। इसे न तो सेना खर्च कर रही है और न ही सिविल प्रशासन, दूसरा उनका किराया भी वर्ष 1995 से सेना ने बंद कर दिया है। इससे उनकी न तो कृषि योग्य जमीन वापस मिल रही है और न ही किराया,जब कि अभी सेना उन्हें वहां जाने की अनुमति नहीं देती है। ऐसे में वो करें तो करें क्या। कई बार इस समस्या के समाधान के लिए डिवकाम जम्मू के कार्यालय में गुहार भी लगाई गई, लेकिन कोई भी हल नहीं हुआ। बाक्स---

पॉवर संस्था उठाएगी डिवकाम के समक्ष ये मुद्दा

कठुआ: गैर सरकारी पॉवर संस्था के चेयरमैन एवं सेवानिवृत्त वन विभाग के संरक्षक मुकरजीत शर्मा ने पहाड़पुर में आयोजित बैठक में किसानों के उक्त मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा कि ये जायज मामला जल्द जम्मू में डिवकॉम के समक्ष उठाया जाएगा। उन्होंने कहा कि सीमांत क्षेत्र के किसान वैसे भी अनेकों समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उनका मुख्य धंधा कृषि है, जिसमें भी उन्हें प्रशासन की अनदेखी के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। शर्मा ने कहा कि सेना द्वारा वर्ष 1995 के बाद उनकी डिच के इस्तेमाल में की गई भूमि का किराया न देना गंभीर चिंता का विषय है और इसमें सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात ये है कि जब कई सालों तक सेना ने उन्हें किराया नहीं दिया तो किसानों ने वर्ष 2008 में इसकी डिवकॉम के अधिकारियों के कार्यालयों में जांच पड़ताल की तो पता चला कि सेना ने लिखित में दे दिया है कि उन्हें डिच की अब जरूरत नहीं रही है। इसलिए किसान उसमें आई भूमि को वापस लेकर अब उस पर खेती कर सकते हैं। भूमि भी आज तक वापस नहीं दी गई है, अभी भी सेना सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें वहां खेती करने नहीं जाने देती है। इसके चलते किसानों के साथ ये धोखा है,उन्हें या तो भूमि वापस मिले या फिर मौजूदा रेट के मुताबिक किराया। बैठक में कुलवीर सिंह सहित कई सदस्य मौजूद रहे। कोट्स---

सीमांत क्षेत्र के किसानों की इस तरह के मामले स्थानीय तहसीलदार मढ़ीन देखते हैं, लेकिन अगर मामला जायज होगा तो उसका समाधान करने का प्रयास किया जाएगा।

-सुरेश कुमार शर्मा, एसडीएम, हीरानगर।


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