बंदरों का आतंक से ग्रामीण परेशान
रामकोट : क्षेत्र में बंदरों का आतंक दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहा है। परेशानी इस हद
संवाद सहयोगी, रामकोट : क्षेत्र में बंदरों का आतंक दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहा है। परेशानी इस हद तक सार्वजनिक स्थानों पर बढ़ गया है कि राहगीरों पर हमला करना, उन्हें घायल करना और नुकसान पहुंचाना आम बात सी हो गई है। यह बंदर खासकर बच्चों और महिलाओं को निशाना बनाने से नहीं चूकते। हाथ में कोई भी खाद्य पदार्थ या लिफाफा पकड़ा हो तो तुरंत झपट लेते हैं और रास्तों में बिखेर देते हैं, जिस कारण लोगों का अब घरों से निकलना भी दुश्वार हो गया है।
रामकोट तहसील के इलावा मजलता तहसील में भी बंदरों का आतंक काफी है। कई बार बच्चों और महिलाओं तक को काट चुके हैं। स्थानीय निवासी ठाकुर दास, मदन लाल, ओमप्रकाश, ज्ञानचंद, नेकराम, हरिराम आदि ने बताया कि कुछ अज्ञात लोग गाड़ियों में भर कर इन्हें पानी के पास धार रोड स्थित नालों पर बने पुलों पर छोड़ देते हैं। जंगलों में तेंदुओं के खौफ से बचते हुए यह बंदर बस्तियों में अपने ठिकाने बना लेते हैं। सुबह होते ही सैकड़ों की संख्या में टोलिया बनाकर फल, सब्जियों और फसलों की तबाही करने के लिए निकल पड़ते हैं। हर जगह हुड़दंग मचाते हुए शाम को लोगों के घरों की छतों और पेड़ों पर अपने ठिकाने पर आ बैठते हैं।
क्षेत्र के किसान धान, मक्की और गेहूं के अलावा फल, सब्जिया, सरसों, तिल, मास आदि कई तरह की दालें और मसाले अपने ही खेतों से ही निकाल लेते थे, परंतु चंद सालों से बंदरों द्वारा किए जा रहे नुकसान की वजह से अपने खेतों में फसलों को लगाना ही छोड़ दिया है। किसानों का कहना है कि अब उन्हें साग सब्जी आदि छोटी बड़ी हर एक चीज बाजार से खरीदना पड़ रहा है। खेती-बाड़ी और पशु पालन जैसे एकमात्र रोजगार का साधन भी अब समाप्त हो गया है। अब क्षेत्र में रोजगार का कोई और साधन न होने के कारण उनके बच्चों को रियासत के बाहर मंडियों में जा कर मेहनत मजदूरी करना पड़ रहा है।
किसानों का कहना है कि सरकार के सामने भी कई बार बंदरों से निजात दिलाने के लिए गुहार लगाई गई, परंतु इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। न ही वाइल्डलाइफ बिभाग ही बंदरों को पकड़ने के लिए कोई सकारात्मक कदम उठा रहा है। लोगों ने सरकार से हिमाचल और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बंदरों की नसबंदी करके जम्मू संभाग के जंगलों में अलग रिजॉर्ट बनाकर छोड़ने की माग की है।