डीसी के आते ही शराब दुकान बंद कर भागा ठेकेदार
वीरवार को डीसी राहुल पांडे के दबोआल गांव से गुजरने की खबर मिलते ही ठेकेदार शराब की दुकान को बंद कर मौके से फरार हो गया। इससे न सिर्फ शराब दुकान के ठेकेदार बल्कि प्रशासन पर भी सवाल खड़े हो गए।
जागरण संवाददाता, कठुआ : दबोआल गांव में शराब की दुकान खोलने के विरोध में चार दिन से जारी महिलाओं का प्रदर्शन अब भूख हड़ताल में बदल चुकी है। वीरवार को डीसी राहुल पांडे के दबोआल गांव से गुजरने की खबर मिलते ही ठेकेदार शराब की दुकान को बंद कर मौके से फरार हो गया। इससे न सिर्फ शराब दुकान के ठेकेदार, बल्कि प्रशासन पर भी सवाल खड़े हो गए। ग्रामीण प्रशासन से पूछ रहा है कि अगर गांव में शराब की दुकान वैध है तो ठेकेदार भाग क्यों गया? अगर अवैध है तो तीन दिन तक प्रशासन के कान पर जूं क्यों नहीं रेंगा?
चार दिन महिलाओं के संघर्ष चलने के बाद चाहे शराब दुकानदार का ठेकेदार प्रशासन के डर से भाग खड़ा हुआ हो, लेकिन प्रदर्शनकारी महिलाओं को और बल मिल गया। महिलाओं ने जोरदार प्रदर्शन किया। प्रशासन के खिलाफ भी नारेबाजी की और प्रशासन से सवाल पूछा गया कि तीन दिन से शराब दुकान बंद करने के बजाय, शराब की दुकान के बाहर पुलिस का पहरा क्यों लगा दिया गया? अब डीसी के अचानक उसी रास्ते से होकर आगे जाने की खबर मिलते ही ठेकेदार उल्टे पांव चोर की तरह भागना धरने पर बैठी महिलाओं को हैरान कर गया। अब प्रदर्शनकारी महिलाओं को पूरा विश्वास हो गया कि उनके गांव में अवैध रूप से ही दुकान खोला गया है। अगर उसके पास अनुमति होती तो इस तरह से भागने की जरूरत नहीं होती।
केंद्रीय मंत्री के दौरे से पूर्व प्रशासन ने किया अपनी खाल बचाने का प्रयास प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि शराब दुकान के ठेकेदार के भागने के पीछे बड़ा ड्रामा लग रहा है। क्योंकि उसी क्षेत्र में शनिवार केंद्रीय राज्य मंत्री डा. जितेंद्र सिंह बायोटेक पार्क का उद्घाटन करने आ रहे हैं। यह विवाद अगर जारी रहा तो निश्चित रूप से आंदोलनरत महिलाएं जनप्रतिनिधि होने डा. जितेंद्र सिंह का रास्ता भी रोक सकती हैं। जिससे मामला और बिगड़ सकता है। इस लिए जिला प्रशासन अब अपनी खाल बचाने की कोशिश कर रहा है। नाटकीय तरीके से शराब ठेकेदार को भगाया गया है। वहां मौजूद महिलाओं ने कहा कि प्रशासन चाहता होगा कि किसी तरह से मंत्री का दौरा ठीकठाक संपन्न हो जाए, उसके बाद मामले को जैसे-तैसे निपटाया जाएगा।
----------------- गांव घाटी में मंजूर हुई जगह, विरोध होने पर यहां खोला गया प्रदर्शनकारी महिलाओं ने डीसी राहुल पांडे से बातचीत करते हुए कहा कि ठेकेदार के भागने से साबित होता है कि यहां अवैध रूप से दुकान खोली गई। महिलाओं ने कहा कि वे पहले दिन से कह रहे थे कि दुकान गांव घाटी में मंजूर हुई है। वहां के लोगों ने भी विरोध कर दुकान वहां नहीं खुलने दी। उसके बाद वे आबकारी विभाग से मिलीभगत कर उनके गांव में खोल रहा है, लेकिन प्रशासन ने उनकी नहीं सुनी। मजबूरन उन्हें धरने पर बैठना पड़ा। अब उनके आने की खबर से पहले ही वो भाग गया।
----------- डीसी ने जांच के लिए मांगा दो सप्ताह का समय डीसी राहुल पांडे ने प्रदर्शनकारी महिलाओं को आश्वास्त किया कि वह जांच करेंगे कि गांव में खोली गई शराब की दुकान अवैध है या वैध। क्योंकि मंजूरी के लिए ग्रामीणों के प्रमुख की अनुमति जरूरी होती है। यह अनुमति ठेकेदार ने ली है या नहीं, यह भी जांच का विषय है। जांच के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी। दुकान अवैध होगा तो उसको हटाया जाएगा। लेकिन डीसी ने इसके लिए प्रदर्शनकारी महिलाओं से कम से कम दो सप्ताह का समय मांगा। डीसी के आश्वासन पर फिलहाल महिलाएं शांत तो हो गई, लेकिन चेतावनी दी कि दोबारा शराब दुकान खोलने का प्रयास हुआ तो फिर आंदोलन शुरू कर देंगे।
------------ जिस तरह से अचानक ठेकेदर वहां प्रशासन के पहुंचने पर भाग गया, उससे लगता है कि ये कोई ड्रामा किया गया है। मंत्री के कार्यक्रम में खलल न पड़े, इसके लिए प्रशासन ने अब पहल की है। हमलोग भी मंत्री से मिलेंगे। बायोटेक पार्क स्थापित करने के लिए आभार जताएंगे। साथ ही इस गांव में ठेका बंद कराने की मांग भी शांतिपूर्वक रखेंगे।
रवेल सिंह, स्थानीय गांववासी
--------------- चाहे कैसे भी आज ठेका बंद हुआ हो, लेकिन आगे भी अब यहां नहीं खुलने देंगे। इसके लिए अभी भी आंदोलन जारी है। शुक्रवार को धरना प्रर्दशन की बजाय एक शांतिपूर्वक रैली निकाल कर नशे के खिलाफ जागरूकता फैलाएंगे ताकि फिर से दुकान न खुले और लोग जागरूक रहें।
- सुनीता देवी, ग्रामीण महिला
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अगर शराब का ठेका दोबारा खुला तो पूरा गांव पहले से भी ज्यादा उग्र रूप से विरोध प्रदर्शन करेगा। लेकिन किसी भी हालत में शराब की दुकान गांव में नहीं खुलने देंगे। इससे वो आने वाली पीढ़ी, बच्चों व युवाओं को नशे की ओर खुद धकेलने का काम नहीं करेंगे। प्रशासन को भी इस बारे में स्पष्ट समझ लेना चाहिए और ठेकेदार को भी।
उषा, ग्रामीण महिला