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संघर्ष विराम के बाद सीमावर्ती गांवों में अब सजने लगीं चौपालें

राकेश शर्मा कठुआ करीब दो दशक से दुख भरे दिन झेल रहे हीरानगर सीमांत के बाशिंद

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Mar 2021 07:16 AM (IST)Updated: Sat, 06 Mar 2021 07:16 AM (IST)
संघर्ष विराम के बाद सीमावर्ती गांवों में अब सजने लगीं चौपालें
संघर्ष विराम के बाद सीमावर्ती गांवों में अब सजने लगीं चौपालें

राकेश शर्मा, कठुआ

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करीब दो दशक से दुख भरे दिन झेल रहे हीरानगर सीमांत के बाशिंदों की रात अब बंकरों में नहीं, बल्कि उनके घरों में सुकून से कट रही है। बीते 25 फरवरी से भारत-पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्ष विराम के समझौते के बाद इन गांवों में नई जिंदगी लौट चुकी है। यहां पाकिस्तान द्वारा आए दिन की जाने वाली गोलाबारी ने ने स्थानीय लोगों के दिन-रात का चैन छीन कर जीना मुहाल कर दिया था। इससे पहले पूरा परिवार शाम को ही घरों को बंद कर बंकरों में रात बिताने को मजबूर था, लेकिन संघर्ष विराम के बाद अब हालात बदले हैं। अभी तक पाकिस्तान भी इस पर अमल कर रहा है। हालांकि कई लोग पड़ोसी की पूर्व की नीतियों को भांपते हुए उस पर संदेह भी कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में उन्हें जो शांति और सुकून करीब दो दशक के बाद मिला है, उससे पुराने जख्म भुलाकर शुरू हुए नए दौर में जीने का सपना देख रहे हैं। शुरू हुए नए दौर में अब गांवों की उन सूनी गलियों में समय मिलते ही दर्जनों की संख्या में बच्चे खेलकर बदले हालात को खुद बयां कर रहे हैं। गांवों की चौपाल पर लोग अब देर शाम तक बैठकर समय बिताने लगे हैं। घरों के आंगन में भी लोग परिवार के साथ बैठ कर गप्पे मारते देखे जाने लगे हैं। खेतों में अब आराम से फसल की देखरेख और पशुओं आदि के लिए चारा काटने का समय भी गांववासियों को पर्याप्त मिलने लगा है। सच तो ये है कि संघर्ष विराम लागू होने से गांववासियों को अब अपना गांव ही सबसे अच्छा लगने लगा है।

बता दें कि संघर्ष विराम लागू होने से पहले हीरानगर सब डिवीजन के 23 गांव पाकिस्तान की आए दिन की जाने वाली गोलाबारी से बुरी तरह से प्रभावित थे। इसमें कई गांववासियों की मौत, कई घायल, घरों को नुकसान और कई पशु मारे गए। कई बार लोगों ने गांव छोड़ने तक का फैसला किया। ऐसे में उनके जख्म अभी भी हरे हैं, लेकिन अब संघर्ष विराम की मरहम से राहत महसूस करने लगे हैं। कोट्स---

संघर्ष विराम ने गांवों में फिर नई जिदगी की शुरुआत की है। इससे पहले तो गांव के लोग शाम ढलते ही गोली से बचने के लिए बच्चों सहित बंकर में रात काटने के लिए मजबूर होते थे। अब ऐसा नहीं है। शाम भी और रात भी घर के आंगन और कमरों में ही सुकून से कट रही है। अब ये संघर्ष विराम इसी तरह से चलता रहे, यहीं दुआ करते हैं।

भारत भूषण, सरपंचस बोबिया पंचायत संघर्ष विराम नया जीवन लेकर आया है। इससे परिवार, मोहल्ले, गांववासियों ने राहत की सांस ली है। 25 फरवरी से लागू संघर्ष विराम के बाद सीमांत गांव में एक नई बहार आने जैसा माहौल बना है। खेतों की हरियाली को अब नजदीक से जाकर देखने का पर्याप्त मौका मिल रहा है। पहले तो सब डर के साये में देखने को मिलता था।

केवल कृष्ण, किसान, गंगू चक सूनी गलियों में अब बच्चे समय मिलते ही बेखौफ खेल रहे हैं। अब उन्हें गोलाबारी से बचने के लिए घरों में कैद होने के लिए नहीं कहना पड़ रहा है। पूरी आजादी से खेल रहे हैं। गांव की सूनी चौपालें अब फिर लगने लगी हैं। आंगन में बैठकर भी लोग गप्पे मारने लगे हैं। सुबह शाम खेतों में नहीं जाने की बंदिश भी अब नहीं रही है।

कुलदीप वर्मा, नायब सरपंच, पानसर पंचायत


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