छन्नी रामा स्कूल के राम ही रखवाले!
गवर्नमेंट हाई स्कूल छन्नी रामा में सभी 11 विद्यार्थी दसवीं में फेल। इस स्कूल को तो राम ही रखवाला रह गया है। शिक्षक व्यवस्था को दोष दे रहे हैं और अभिभावक शिक्षकों को।
छन्नी के सरकारी स्कूल में थे 11 बच्चे और सभी हो गए फेल
अध्यापक फोड़ रहे व्यवस्था पर ठीकरा और अफसर नोटिस भेजने की तैयारी में अशोक शर्मा, जम्मू
सरकारी स्कूलों में शिक्षा की बदहाल व्यवस्था का ताजा उदाहरण है छन्नी रामा का गवर्नमेंट हाई स्कूल। सोमवार को घोषित राज्य शिक्षा बोर्ड के दसवीं कक्षा के परिणाम में इस स्कूल के सभी परीक्षार्थी फेल हो गए। अर्थात स्कूल का परिणाम शून्य फीसद रहा।
यह स्थिति तब है जब शिक्षा निदेशक से लेकर प्रदेश प्रशासन व शिक्षा व्यवस्था से जुड़े तमाम बड़े अधिकारी छह माह तक जम्मू में ही रहते हैं। शहर के प्रमुख क्षेत्र से सटे इस स्कूल के परिणाम से ग्रामीण व दूररदाज के क्षेत्र की शिक्षा की तस्वीर स्वयं साफ हो जाती है।
छन्नी रामा स्कूल में दसवीं कक्षा में 11 विद्यार्थी थे और सभी फेल हो गए। परिणाम आने के बाद अभी भी न शिक्षा विभाग में हलचल दिख रही है और न क्षेत्र के नुमाइंदे सक्रिय हो रहे हैं। अभिभावक शिक्षकों पर दोष मढ़ रहे हैं तो शिक्षक व्यवस्था पर ठीकरा फोड़ अपना पल्ला झाड़ लेना चाहते हैं। अलबत्ता प्रशासन ने नोटिस भेजने की बात कह कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। इन सबके बीच वह बच्चे सवाल पूछ रहे हैं कि हमारा क्या कसूर था?
राज्य शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में ढांचागत सुविधाओं के नाम पर बड़े-बड़े दावे सालभर करता रहा पर परिणाम ने अभिभावकों की चिंता बढ़ा दी है। इस स्कूल में भी छह शिक्षक तैनात हैं और सभी उच्च शिक्षित हैं। फिर भी सभी छात्र फेल हो गए।
फिर कसूर किसका है? इस सवाल पर विचार को कोई तैयार नहीं है। स्कूल की शिक्षिका कहती हैं कि इसी स्कूल को क्यों निशाना बनाया जा रहा है। अभी अध्यापक उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्कूलों में दाखिला करवाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में दाखिला हो गया तो उन बच्चों का भविष्य क्या होगा, इसकी गारंटी कौन लेगा! इस सवाल का जवाब कोई देना नहीं चाहता।
एक अभिभावक शंकर दास कहते हैं कि जब इस तरह का परिणाम होगा तो कोई अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने का जोखिम कैसे उठाएं? वहीं, अध्यापक व्यवस्था के सिर ठीकरा फोड़ना चाहते हैं। एक अध्यापक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अकसर अध्यापकों को शिक्षण कार्य के अलावा कई तरह की जिम्मेदारियां सौंप दी जाती हैं। सर्वे से लेकर चुनाव ड्यूटी, बच्चों का खाना बनाना और सामान तक खरीदने जैसे काम अध्यापक को ही करने पड़ते हैं। पर वह यह बताना भूल जाते हैं कि इसमें बच्चों का क्या कसूर, जिनका एक साल बर्बाद हो गया।
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तो सालभर क्या करते रहे शिक्षक
छन्नी रामा के कॉरपोरेटर कमल सिंह ने कहा कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों का अध्यापकों के अलावा कोई सहारा नहीं होता। स्कूल में सभी बच्चे फेल हो गए, ऐसे में उस स्कूल के अध्यापक वर्षभर क्या करते रहे। उनकी जवाबदेही जरूरी है। प्राइवेट स्कूलों में इनसे कम शिक्षित अध्यापक बेहतर परिणाम ला सकते हैं तो छह अध्यापक लाखों रुपये वेतन लेकर क्या करते रहे। अधिकतर सरकारी स्कूलों में शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रभावशाली अधिकारियों के रिश्तेदार ही तैनात होते हैं। ऐसे में वह बच्चों के भविष्य की चिंता करें भी तो क्यों। ऐसे में सख्त कार्रवाई की जरूरत है। जिन्हें नौकरी की जरूरत नहीं है, उन्हें छोड़ कर चले जाना चाहिए, लेकिन बच्चों का भविष्य तबाह करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है।
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स्कूल के अध्यापकों को भेजेंग नोटिस : सीईओ
इधर विभाग भी नोटिस भेजकर अपनी जिम्मेवारी की बोझ झाड़ लेने के लिए तत्पर है। जम्मू के मुख्य शिक्षा अधिकारी सतपाल शर्मा कहते हैं कि कम परिणाम वाले स्कूलों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा जाएगा। जिन अध्यापकों का परिणाम ठीक नहीं रहा है, उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा।
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