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यासीन मलिक का ऐसा रहा मैसूमा की तंग गलियों से तिहाड़ की काल कोठरी तक का आपराधिक सफर

वर्ष 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट कश्मीर के बैनर तले जब जमात और अन्य दलों ने नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस के खिलाफ साझा मंच बनाकर चुनाव लड़ा था तो उस समय मलिक व उसके अन्य साथियों ने चुनाव प्रचार किया। वह यूसुफ शाह उर्फ सलाहुद्दीन का र्पोंलग एजेंट था।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 26 May 2022 10:40 AM (IST)Updated: Thu, 26 May 2022 10:40 AM (IST)
यासीन मलिक का ऐसा रहा मैसूमा की तंग गलियों से तिहाड़ की काल कोठरी तक का आपराधिक सफर
यासीन 1982-83 से अलगाववादी गतिविधियों में सक्रिय रहा है।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : यासीन मलिक का 32 साल बाद यह भ्रम टूट गया कि मेरा कोई बिगाड़ नहीं सकता। तभी तो उसने कहा कि अगर मेरे ऊपर आतंकी हिंसा में शामिल होने के आरोप खुफिया एजेंसियां साबित कर दें तो मैं सियासत छोड़ दूंगा।

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यासीन 1982-83 से अलगाववादी गतिविधियों में सक्रिय रहा है। उसने अपने कुछ अन्य दोस्तों संग मिलकर तला पार्टी जिसे तुल्ला गुट भी कहते हैं, बनाई थी। यह जमात ए इस्लामी द्वारा प्रायोजित प्रदर्शनों में शामिल हो हिंसा फैलाते थे। देश विरोधी नारेबाजी करते थे। इसी गुट ने 1983 में श्रीनगर में भारत-वेस्टइंडीज क्रिकेट मैच में व्यवधान डालने के लिए पिच को खोदा था। तला पार्टी को बाद में मलिक व उसके साथियों ने इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग में बदल दिया।

वर्ष 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट कश्मीर के बैनर तले जब जमात और अन्य दलों ने नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस के खिलाफ साझा मंच बनाकर चुनाव लड़ा था तो उस समय मलिक व उसके अन्य साथियों ने चुनाव प्रचार किया। वह यूसुफ शाह उर्फ सलाहुद्दीन का र्पोंलग एजेंट था। सलाहुद्दीन समेत मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के सभी उम्मीदवारों की हार के बाद ही कश्मीर में आतंकी हिंसा का सही तरीके से पदार्पण हुआ। इससे पहले भी कश्मीर में आतंकी गुट सक्रिय रहे, लेकिन वह कभी अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर पाए थे।

1987 में पाक गया था : यासीन कश्मीर के उन आतंकियों के पहले गुट का हिस्सा था जो 1987 के बाद पाक में आतंकी बनने गए थे। उसके साथ हमीद शेख, अश्फाक मजीद वानी, जावेद मीर, मुश्ताक जरगर, अब्दुल्ला थे। हमीद शेख, अशफाक मजीद वानी,जावेद मीर और यासीन मलिक को एचएजेवाई कहा जाता है। अश्फाक मार्च 1990 में मारा गया था जबकि यासीन को अगस्त 1990 में टेरर र्फंंडग के एक आरोपी जहूर वटाली के घर से जख्मी हालत में पकड़ा गया था। मई 1994 में यासीन मलिक जेल से रिहा हुआ और उसने जेकेएलएफ के तरफ से जंगबंदी का एलान करते हुए कहा कि अब सियासत के जरिए आजादी की लड़ाई लड़ी जाएगी। अमानुल्ला खान ने उसे जेकेएलएफ से अलग कर दिया और फिर यासीन ने जेकेएलएफ का गुट बनाया जो नियंत्रण रेखा के इस तरफ जम्मू कश्मीर में था।

कभी पकड़ा जाता और फिर रिहा होता रहा : वर्ष 1994 के बाद भी वह कई बार पकड़ा गया और हर बार रिहा हो गया। पाक के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह समेत देश के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर चुके मलिक को 2001 में अमेरिका भी भेजा था। वह अप्रैल 2005 में शुरू हुई कारवां ए अमन बस सेवा से पाक जाने वाले कश्मीरी अलगाववादी नेताओं में शामिल था। उसने 2013 में लश्कर सरगना हाफिज सईद के साथ धरने में भाग लिया था।

मुफ्ती सईद की बेटी के अपहरण में शामिल : तीन अप्रैल 1966 को मैसूमा श्रीनगर में जन्मे यासीन ने ही अपने साथियों संग मिलकर 1989 में तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती सईद की बेटी रुबिया सईद का अपहरण किया था। उसने ही 1990 में श्रीनगर में वायुसेना के चार अधिकारियों की अपने साथियों संग मिलकर हत्या की थी। यासीन ने 1994 में हुर्रियत कांफ्रेंस का दामन थामा,लेकिन 2003 में जब हुर्रियत दो फाड़ हुई तो उसने दोनों गुटों से किनारा कर लिया। वर्ष 2008, 2010 और 2016 में उसने गिलानी और मीरवाइज मौलवी उमर फारुक के साथ मिलकर जायंट रजिस्टेंस लीडरशिप के बैनर तले सभी अलगाववादी दलों को जमा किया। उसने वर्ष 2007 में कश्मीर में सफर ए आजादी के नाम से एक अभियान चलाया। वर्ष 2002 में वह हवाला मामले में भी पकड़ा गया। 


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