बदहाल सड़कें, बढ़ रहे सड़क हादसे, नेताआें को नहीं फिक्र
राज्य में हर साल सैकड़ों लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में चली जाती है। विशेषतौर पर दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में खस्ताहाल सड़कें और तेह रफ्तार हादसों का कारण अधिक बनती हैं।
जम्मू, [ रोहित जंडियाल ] । राज्य में हर साल सैकड़ों लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में चली जाती है। विशेषतौर पर दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में खस्ताहाल सड़कें और तेह रफ्तार हादसों का कारण अधिक बनती हैं। परंतु इनके प्रति कभी प्रशासन व संबधित विभागों ने संजीदगी नहीं दिखाई। यही कारण है कि राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में भी ऐसे मुद्दे जगह नहीं बना पाते हैं।
जम्मू-कश्मीर सड़क हादसों के मामलों में देश में दूसरे स्थान पर आता है। हादसों में मध्य प्रदेश और सिक्किम ही दो ऐसे राज्य हैं जहां पर जम्मू कश्मीर से अधिक सड़क हादसे होते हैं। यह दोनों राज्य संयुक्त रूप से नंबर एक पर है। जम्मू कश्मीर में औसतन हर साल 900 लोगों की सड़क हादसों में मौत होती हैं जो कि आतंकवादी गतिविधियों में मरने वालों से भी अधिक हैं। पिछले साल राज्य में करीब पांच हजार सड़क हादसों में 926 लोगों की मौत हुई थी। इतनी बड़ी संख्या में सड़क हादसों के दो ही प्रमुख कारण हैं। एक अधिक संख्या में वाहन सड़कों पर चलना और दूसरा खस्ताहाल सड़कें। राज्य में पिछले साल डेढ़ लाख के करीब नए वाहन सड़कों पर आए। सरकार ने सड़क हादसों पर रोक लगाने के लिए रोड सेफ्टी काउंसिल का भी गठन किया है। परंतु इसका भी कोई खास असर नजर नहीं आ रहा है। दूरदराज के क्षेत्रों में अभी भी पहले की तरह ही सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं। एक सप्ताह में ही सड़क दुर्घटनाओं में पंद्रह लोगों की मौत हो चुकी है। अकेले रामबन के चंद्रकोट में ही 11 लोगों की माैत हो चुकी है।
यही नहीं डोडा, ऊधमपुर, किश्तवाड़, रियासी, राजौरी जैसे जिलों में सड़कों की हालत सबसे दयनीय बनी हुई है। पिछले कुछ वषों में राष्ट्रीय राजमार्ग जरूर अच्छे बने हैं और इनमें सड़क दुर्घटनाएं भी कम हुई हैं। परंतु अन्य में हाल पहले से भी बदतर बने हुए हैं। किश्तवाड़ जिले में पिछले साल एक महीने में तीन बड़ी सड़क दुर्घटनाएं हुई थी। मिनी बस हादसे में 17 लोगों की मौत हुई थी। दो अन्य सड़क हादसों में बीस लोगों की मौत हुई। कुछ दिन पहले ही ऊधमपुर जिले में हुए बस हादसे में छह लोगों की मौत हो गई थी। इन जिलों में ऐसे कई हादसे हुए हैं जहां पर एक साथ कई लोगों की जान चली जाती है। बावजूद इसके कभी भी न तो ओवरलोडिंग को दूर करने के प्रयास हुए और न ही कभी सड़कों की स्थिति में सुधार के लिए। इस बार देखना है कि क्यों जम्मू कश्मीर में हादसों को रोकने के लिए कोई राजनीतिक दल इसे मुद्दइा बनाता है या नहीं।
सिर्फ दुख ही जताते हैं
राज्य में सड़क हादसों पर राजनीतिक दलों का रवैया बस दुख जताने तक ही सीमित है। पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने अपने कार्यकाल में तत्कलीन राज्य सरकारों को कई बार सड़क हादसों को रोकने के लिए कदम उठाने को कहा। उन्होंने राज्यपाल शासन के दौरान रोड् सेफुटी काउंसिल को सक्रिय किया। जिला स्तर पर काउंसिल का गठन किया। ट्रामा अस्पतालों में सुविधाओं का सुधार करने के लिए कहा। परंतु राज्य सरकारों ने कभी भी इतनी गंभीरता से काम नहीं किया।