Jammu : यहां खुद प्यासे है वाटर कूलर, हैंडपंपों के कंठ भी हैं सूखे लोगों की कैसे बूझे प्यास
तहसील परिसर में 80 के करीब गांव के लोग अपना काम करवाने के लिए आते हैं और इस वक्त गर्मी का मौसम होने के कारण लोगों को प्यास भी लगती है। तहसील परिसर में एक हैंडपंप लगा हुआ है जो काफी दिनों से बंद पड़ा हुआ है।
बिश्नाह, सतीश शर्मा : जम्मू में इस समय प्रचंड गर्मी का प्रकोप चल रहा है। शहर के साथ ग्रामीण इलाकों में भी लोग झुलस रहे हैं। आम राहगीरों को इस तपती गर्मी से कुछ राहत मिल सके, इसके लिए ग्रामीण इलाकों में वाटर कूलर लगाए गए है और हैंड पंप भी लेकिन बिश्नाह कस्बे में आज वाटर कूलर खुद प्यासे है और हैंडपंपों के कंठ सूख चुके है। ऐसे में आप अगर यहां आते है तो आपको दुकान से खरीद कर पानी पीना पड़ेगा।
कस्बे में यूं तो कई वाटर कूलर व हैंडपंप लगाए गए है पर आपको पीने का पानी नसीब नहीं हो सकता। बिश्नाह में आसपास के कई गांवों के लोग किसी न किसी काम के सिलसिले में यहां आते हैं तो उनको पानी पीने के लिए दरबदर होना पड़ रहा है या फिर अपनी जेब से पैसे खर्च करके पानी की बोतल लेनी पड़ रही है। कस्बे में आए गुलशन कुमार का कहना है कि कहने को बस स्टैंड डिग्री कालेज तहसील कार्यालय इत्यादि जगह पर प्रशाशन की तरफ से वाटर कूलर लगाए गए है पर यह वाटर कूलर वर्षों से बंद पड़े हुए है।
इन वाटर कूलर व हैंडपंप को क्यों नहीं ठीक करवाया जा रहा है। वहीं कस्बे के सुनील कुमार ने बताया कि तहसील परिसर में ना ही कोई हैंडपंप है ना ही कोई वाटर कूलर है। इस तहसील परिसर में 80 के करीब गांव के लोग अपना काम करवाने के लिए आते हैं और इस वक्त गर्मी का मौसम होने के कारण लोगों को प्यास भी लगती है। तहसील परिसर में एक हैंडपंप लगा हुआ है जो काफी दिनों से बंद पड़ा हुआ है।
उन्होंने बताया कि हमने तहसीलदार से भी हैंडपंप ठीक करवाना व एक नया वाटर कूलर लगवाने की मांग की थी ताकि लोगों को पानी पीने के लिए दरबदर न होना पड़े लेकिन सुनवाई नहीं हुई। वहीं वार्ड नंबर 13 के पार्षद जय भारत ने बताया कि म्यूनिसिपल कमेटी के अधिकारियों का फर्ज भी बनता है कि जहां भी वाटर कूलर व हैंडपंप लगे है, उन्हें ठीक करवाया जाए ताकि लोगो को ठंडा पानी मिल सके।
पीडब्ल्यूडी विभाग ने भी कस्बे में तीन वाटर कूलर लगाए जिनमें जीडीसी बिश्नाह तहसील कार्यालय बस स्टैंड इत्यादि जगाह पर वाटर कूलर लगाए लेकिन उसकी सुध नहीं ली गई जिस वजह से वह कबाड़ बन चुके है क्योंकि उनकी देखरेख करना विभाग ने जरूरी नहीं समझा।