Tulsi Vivah : जम्मू में उत्साह पूर्वक हुई तुलसी पूजा, कई लोगों ने करवाया तुलसी विवाह
जम्मू में माता तुलसी विवाह का पर्व पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया गया। कोरोना महामारी के चलते कार्तिक शुक्ल पक्ष की हरिबोधिनी एकादशी पर गन्ने का मंडप सजाकर माता तुलसी और भगवान सालिग्राम का विवाह एवं पूजन संपन्न हुआ।
जम्मू, जागरण संवाददाता । माता तुलसी विवाह का पर्व पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया गया। कोरोना महामारी के चलते कार्तिक शुक्ल पक्ष की हरिबोधिनी एकादशी पर गन्ने का मंडप सजाकर माता तुलसी और भगवान सालिग्राम का विवाह एवं पूजन संपन्न हुआ। महामारी के चलते अधिक भक्त एकत्रित नहीं हुए।जितने ज्यादा विवाह हर वर्ष आयोजित होते हैं। उतने तो नहीं हो सके लेकिन लोगों ने घरों में पूरी आस्था के साथ तुलसी की पूजा की।महिलाओं ने मंदिरों और घरों में माता तुलसी के विवाह पर्व पर तुलसी माता को दुल्हन की तरह सजाया। उन्हें लाल रंग की चुनरी ओढ़ाई गई व कलीरे भी पहनाए गए। शालीग्राम के रूप में भगवान विष्णु को भी सुंदर वस्त्र पहना कर सजाया गया। तुलसी विवाह की महिलाओं ने कई विशेष तैयारियां कर रखी थी।
महिलाओं ने तुलसी माता की सजावट में तरह-तरह की रंगोली बनाई और तरह-तरह के परिधानों से सजाया। फल-फूल, धूप दीप से महिलाओं ने भगवान विष्णु के सांकेतिक स्वरूप शालीग्राम और माता तुलसी की पूजा की। उन्हें खिचड़ी का प्रसाद, गन्ना, मूली व अन्य सब्जियां अर्पित की। खिचड़ी चावलों की नई फसल की ही तैयार की जाती है। भगवान विष्णु के माता तुलसी से शादी के शुभ अवसर पर महिलाओं ने उपवास भी रखा हुआ है।रात को होने वाली पूजा और चंद्रमा को अघ्र्य देने बाद प्रसाद चढ़ाया जाएगा।उसके बाद ही प्रसाद ग्रहण किया जाएगा।
मंदिरों में सुबह व शाम के समय भजन-कीर्तन भी हुआ। इस दौरान महिलाओं ने तुलसी विवाह से जुड़ी कथा भी सुनाई। उन्होंने बताया कि तुलसी बनने से पूर्व देवी वृंदा थीं और जालंधर से उनका विवाह हुआ था। जालंधर अपनी शक्तियों से मानव जाति पर अत्याचार करता था। विष्णु की उपासक होने के कारण वृंदा ने ऐसा करने से जालंधर को मना किया। लेकिन न मानने पर भी शिव ने विष्णु की मदद से जालंधर का अंत किया। इसके बाद गुस्से में आकर वृंदा ने विष्णु को काले होने का श्राप दिया। लेकिन, राम अवतार में आकर तुलसी ने विष्णु से विवाह किया। उसके बाद विष्णु ने वृंदा को पौधे में बदलकर मानव कल्याण करने का वरदान दिया। तबसे अब तक तुलसी की पूजा की जाती है।हालांकि दिन भर बादल छाए रहने, ठंड अधिक होने अौर कोरोना महामारी के चलते पिछले वर्षो जैसी रौनक तो नहीं दिखी लेकिन पूजा घरों में पूजा अर्चना पूरे उत्साह के साथ हुई। सुबह सी महिलाओं ने तुलसी को सजाना शुरू कर दिया था। व्रत को जरूर असमंजस की स्थिति बनी रही। कुछ और बुधवार को ही व्रत रखा तो कुछ वीरवार को व्रत रखेंगी।
महंत रोहित शास्त्री ने बताया कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिबोधिनी या देव प्रबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाने वाला यह दिन सनातन धर्मानुयायी के लिए बहुत महत्व रखता है।आज भगवान विष्णु चार माह बाद अपनी योग मुद्रा से जगे है। जिन दंपतियों के घर कन्या नहीं होती। वह जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें। कन्या के विवाह में अगर विलंब हो रहा हो अग्नि कोण में तुलसी लगा कर कन्या रोज पूजन करे तो विवाह जल्दी अनुकूल स्थान पर होगा। शास्त्रों के अनुसार तुलसी के बहुत प्रकार के अलग-अलग पौधे मिलते है जैसे श्री कृष्ण तुलसी, राम तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, शामा तुलसी, वन तुलसी, भू तुलसी, रक्त तुलसी आदि।