Jammu : 75वीं पुण्य तिथि पर कैप्टन गंधर्व सिंह मन्हास को किया नमन
1930 में उनकी कप्तान के रूप में प्रमोशन हुआ। 1936 में बोर्ड ने मेजर के लिए अप्रूव कर दिया पर उनको हजूरी ग्रुप जो महाराजा का चहेता ग्रुप था ने मेजर नहीं बनने दिया गया ताकि महाराजा के नजदीक न जा सकें।
संवाद सहयोगी, परगवाल : अमर शहीद कैप्टन गंधर्व सिंह मन्हास की 75वीं पुण्यतिथि पर परगवाल में भारतीय सेना के हाफ शूटिंग कमांडर कर्नल 19 इंफैंट्री चिनाब ब्रिगेड के नवीन शर्मा ने शहीदी स्मारक पर फूल माला चढ़ाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान नवीन शर्मा ने कैप्टन गंधर्व सिंह की वीरता की सराहना की और कहा मैं सैल्यूट करता हूं उनके माता-पिता को जिन्होंने ऐसे पुत्र को जन्म दिया और उन्होंने देश के लिए बलिदान दिया।
श्रद्धांजलि देने के मौके पर कमांडिंग आफिसर राकेश बिरार 17 सिख, सूबेदार राशपाल सिंह, पूर्व कैप्टन गोपाल दास शर्मा, प्रिंसिपल नीतू गंडोत्रा, चौकी प्रभारी बलजीत सिंह परिहार समेत क्षेत्र के गणमान्य लोग उपस्थित रहे। अमर शहीद कैप्टन गंधर्व सिंह मन्हास 15 अक्टूबर सन 1902 मैं पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम ठाकुर चतर सिंह मन्हास और माता का नाम देवकी था। जब वह जम्मू के प्रिंस आफ बेलन कालेज में पढ़ते थे तो उनको अगस्त 1923 रियासती फौज में लेफ्टिनेंट के रूप में चुन लिया गया। उनको सरकार ने बाडीगार्ड कैवलरी के हजूर खास में कमांडेंट पैलेस गार्ड बना दिया।
1930 में उनकी कप्तान के रूप में प्रमोशन हुआ। 1936 में बोर्ड ने मेजर के लिए अप्रूव कर दिया पर उनको हजूरी ग्रुप जो महाराजा का चहेता ग्रुप था ने मेजर नहीं बनने दिया गया, ताकि महाराजा के नजदीक न जा सकें। उनको जनवरी 1940 में 4 जे के बटालियन में तब्दील कर दिया। जय बटालियन दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजी हुक्मरानों की तरफ से लड़ने के लिए वर्मा चली गई, लेकिन कप्तान को समय से पहले पेंशन पर भेज दिया गया।
जब विश्व युद्ध से स्टेट फोर्सेस वापस आई तो उनको असिस्टेंट रिक्रूटिंग ऑफिसर के पद पर नियुक्त कर दिया, ताकि युद्ध से वापस आई सेना को जितना नुकसान उठाना पड़ा, उनकी जगह और भर्ती की जा सके। इसके बाद 1946 में जब रियासत प्रजा सभा के चुनाव हुए तो वह भारी मत से चुने गए। मार्च 1947 में असेंबली की बैठक में इन्होंने और उनके साथियों ने सरकार से जोर देकर कहा कि 15 अगस्त 1947 से पहले भारत से विलय कर लो पर सरकार ने ऐसा नहीं किया।
पाकिस्तान ने भारत पर हमले शुरू कर दिए। महाराजा ने इनको दोबारा असिस्टेंट रिक्रूटिंग ऑफिसर बनाकर बार्डर पर पॉलिसी कंपनियां लगाने को कहा। सितंबर 1947 के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान ने हमला कर दिया जिस दौरान पाकिस्तान से लड़ते हुए भिंबर सेक्टर में वीरगति को प्राप्त हो गए।