Jammu Kashmir : पर्यावरण संरक्षण का संंदेश देता है पारंंपरिक पर्व रुट्ट राह्डे़
पर्यावरण संरक्षण का मजबूत संदेश देता पारंपरिक पर्व रुट्ट राह्डे जम्मू का स्थानीय त्योहार इन दिनों मनाया जा रहा है।
जम्मू, अशोेक शर्मा : पर्यावरण संरक्षण का मजबूत संदेश देता पारंपरिक पर्व रुट्ट राह्डे जम्मू का स्थानीय त्योहार इन दिनों मनाया जा रहा है। विशेष रूप से महिला लोक के लिए बनाया गया त्योहार इस क्षेत्र के डोगरों के सबसे रंगीन पर्वों में से एक है। इन दिनों लड़कियों ने घरों में राह्डे लगा लिए हुए हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर विशेेष उत्साह देखा जा रहा है। लड़कियों ने घर के सदस्यों की गिनती के राह्डे़ लगा लिए हुए हैं। इन सभी राह्डों में सबसे बड़ा तम्बों राह्ड़ा लगाया जाता है। इसे घर के मुखिया की तरह पूजा जाता है। इस पर्व के माध्यम सेे आने वाली फसल के बीजों की जांच हो जाती है। राह्डों में इस मौसम में लगने वाली फसलों के बीज डाल दिये जाते हैं। इन्हें अच्छे से सजाया जाता है। जो जीवन और कायाकल्प का प्रतीक हैं।
प्रत्येक रविवार को, महिलाएं राह्डे़ लगे स्थल पर इकट्ठा होती हैं और एक साथ मिलकर जश्न मनाती हैं। लोक गीतों की धुन पर नाचती हैं। पारंपरिक डुग्गर व्यंजन तैयार किए जाते हैं और इस तरह एक भव्य भोजन तैयार होता है। जिसके घर में जो चीज सबसे अच्छी बनती हो, उसे सभी सहेलियां इस स्थान पर बैठ कर खाती हैं। निवेद लगाती हैं। यह अभ्यास एक महीने तक चलता है। हर रविवार को राह्डे़ लगाने वाली युवतियों का उत्साह देखते ही बनता है। महिलाएं अपने बनाए प्राकृतिक रंगों से राह्डों के इर्द गिर्द रंगोली सजाती हैं। अंतिम रविवार को पूरे गांव में पास की नदी में एक पारंपरिक तरीके से राह्डे लिये वहां पहुंचती हैं। वहां सभी मिलकर रुट्ट खेलती हैं। खासकर जिन युवतियों की नई शादी हुई होती है। वह ससुराल से लाए पकवान और फल अपनी सहेलियों में बांटती हैं।
कोरोना वायरस के चलते इस वर्ष पहले जैसी रौैनक बेशक नहींं है लेकिन लड़कियां शारीरिक दूरी बनाकर पर्व मनानेे मेें जुटी हुई हैं। नीलम शर्मा ने बताया कि राह्डे़ काफी दूरी पर लगाए गए हैैं। गीत संगीत के कार्यक्रमों में भी घर परिवार की लड़कियांं ही भाग ले रही हैं। शारीरिक दूरी का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
कलात्मक सौंदर्य
इस त्योहार में मिट्टी के बर्तन एक प्रमुख आकर्षण हैं। इन बर्तनों को प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके जटिल रूप से सजाया जाता है। लाल रंग ईंटों को पीस कर बनाया जाता है। हल्दी से पीला, गेहूं के आटे से सफेद और कुचल करंगल की पत्तियों से हरा रंग बनाया जाता है। इन बर्तनों को सजाने वाली महिलाएं आपस में प्रतिस्पर्धा करती हैं और महीने के आखिरी रविवार को सबसे कलात्मक राह्डे चित्रण करने वालों को विजेता घेाषित किया जाता है। जिन स्थानों पर प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, वहां विजेताओं काे सम्मानित किया जाता है।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता पर्व
अपने विभिन्न रीति-रिवाजों के माध्यम से यह त्योहार पर्यावरण संरक्षण का एक मजबूत संदेश देता है। मिट्टी के बर्तनों को रखने के लिए घरों की शुद्धि स्वच्छता और स्वच्छ परिवेश को महत्व देती हैं। मिट्टी के बर्तनों में बोए जाने वाले बीज आने वाले खरीफ मौसम के लिए लोगों को इन बीजों की गुणवत्ता का परीक्षण करने में मदद करते हैं। अंत में, बर्तन पर बनाए गए डिजाइनों का संयंत्र और पशु रूपांकनों पर प्रभुत्व है। यह आगे जैव विविधता के संरक्षण के प्रति लोगों को सचेत करता प्रतीक होता है।
नई दुल्हनों के लिए विशेष महत्व
नवविवाहित महिलाओं के जीवन में रुट राह्डे़ के त्योहार की प्रमुख भूमिका होती है। परंपरा के अनुसार, दुल्हनें इस महीने में अपने मायके आती हैं और अपनी सहेलियों के साथ रुट्ट राह्डे़ खेलती हैं। दुल्हन अपने साथ अपने ससुराल वालों द्वारा दिए गए विशेष उपहारों को अपनी सहेलियों में वितरित करती हैं। हर युवती को अपनी नवविवाहिता सहेली, बहन द्वारा लाये उपहार का बेसब्री से इंतजार रहता है।
आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ रहां पारंपरिक पर्व
पारंपरिक रुट्ट राह्डे़ का पर्व जम्मू में एक प्रमुख त्यौहारों में था। लेकिन बढ़ते आधुनिकीकरण और युवाओं में रुचि की कमी के साथ, त्योहार अब ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित हो गया है। लेकिन हाल के समय में सौभाग्य से कई संगठनों का उदय हुआ है। जिन्होंने इस महिला उन्मुख त्योहार को पुनर्जीवित करने में रुचि दिखाई है। खासकर डुग्गर सांस्कृतिक मंच बठैड़ा पिछले 27 वर्षो से इस पर्व को मनाता आ रहा है। युवा वर्ग को इस पर्व के प्रति जागरूक कर रहा है। इस दौरान कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है। मास्टर ध्यान सिंह ने कहा कि डुग्गर संस्कृति की बहुत सी विधाएं लुप्त होने के कगार पर हैं। इन परंपराओं को बचाएं रखने का दायित्व सभी को निभाना होगा। डोगरा जन-जीवन और डुग्गर संस्कृति के विकास और निर्माण में रुट्ट राह्डे पर्व की विशेष पहचान है। राह्डे़ पर्व का सीधा संबंध मौसम यानी प्रकृति से है। यह पर्व कला-कौशल, साफ माहौल, गीत-संगीत, रंगों का निखार, आपसी भाईचारें का प्रतीक है। अंतिम रुट्ट जिसे बड़ा रुट्ट भी कहा जाता है। पहले सावन को होता है। जिसकी तैयारी घर-घर में होती है। आज के युग में जब कि पर्यावरण को साफ और शुद्ध रखने में फसल पेड़, पाैधों के महत्व पर बल दिया जाता है तो ऐसे पर्व त्यौहारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एव भाषा अकादममी औैर आकाशवाणी आदि संगठनों ने भी इस पर्व के संरक्षण एवंं लोकप्रियता बनाए रखने के प्रयास किये हैं लेकिन इस वर्ष कोेरोना के चलतेे कोई कार्यक्रम आयोेजित नहीं हो सका है। सामूूहिक कार्यक्रम केे बजाए पर्व घरों तक सिमट कर रह गया है।