चीन की साजिशों के आगे चट्टान की तरह डटे हैं लद्दाखी, हजारों युवा सेना में कर रहे देश सेवा
लद्दाख के सांसद जामयांग सेरिंग नांग्याल ने कहा कि चीन लद्दाख पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ना चाहता है। चीन चुमार डेमचौक गलवन तक आ गया है।
जम्मू, विवेक सिंह। विस्तारवादी नीति रखने वाले चीन की हर साजिश को नाकाम बनाने के लिए भारतीय सेना ही नहीं, लद्दाख के देशभक्त लोग भी मजबूत चट्टान की तरह खड़े हैं। यही वजह है कि एलएसी पर चीन अपने नापाक मंसूबों में कामयाब नहीं हो पा रहा। लद्दाख के लोगों का हौसला भारतीय सेना की ताकत बढ़ा रहा है।
लद्दाख के खासे युवा भारतीय सेना में हैं, जो मौजूदा समय में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के सामने सीना ताने खड़े हैं। सेना में भर्ती न हो सके लेह व कारगिल के हजारों युवा पोर्टर के रूप में दुर्गम क्षेत्र में सेना का साथ दे रहे हैं। लद्दाख के पूर्व सैनिक भी पुराने युद्धों के अनुभव के साथ विश्वास दिला रहे हैं कि वक्त आने पर वे भी देश के लिए फिर बंदूक उठाने को तैयार हैं। इन सबके बीच, लद्दाख के आम लोग भी चीन की बनी वस्तुओं के बहिष्कार का मुद्दा उठा रहे हैं। लद्दाख के लोगों का यही हौसला इस समय भारतीय सेना की ताकत बढ़ा रहा है।
याक पर बैठकर थ्री नाट थ्री बंदूकें लेकर बहादुरी से लड़े थे हम : भारतीय सेना में रहकर चीन और पाकिस्तान के साथ युद्धों में हिस्सा ले चुके पूर्व सैनिक आज की भारतीय सेना के मुकाबले चीन को बहुत कमजोर मानते हैं। लेह के चुशोत के सेवानिवृत सूबेदार अब्दुल बकीर का कहना है कि वर्ष 1962 में चीन से लडऩे के लिए हम याक, घोड़ों पर बैठकर गए थे, तब हमारे पास थ्री नाट थ्री बंदूकें थी। तब भी हम बहादुरी के साथ लड़े थे। आज हमारी सेना बहुत मजबूत है। बकीर का कहना है कि चीन तिब्बत की तरह लद्दाख पर भी कब्जा करना चाहता है। हमारी सेना व लद्दाख के लोग दुश्मन की इस साजिश को कभी कामयाब नहीं होने देंगे। हमारी सेना ने चीन को दिखा दिया है कि उसे अब आगे नहीं आने दिया जाएगा।
जरूरत पड़ी तो पूर्व सैनिक भी मैदान में आ जाएंगे :1971 की जंग में कारगिल के तुरतुक सेक्टर में पाकिस्तान से लोहा लेने वाले नायब सूबेदार गुलाम हैदर का कहना है कि लद्दाख के युवाओं ने युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी, उनमें कई शहीद हो गए थे। इस समय भारतीय सेना में लद्दाख के सैकड़ों युवाओं के कार्यरत होने का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि भाई के साथ उनके दो बेटे भी फौज में हैं। लद्दाख में ऐसे परिवारों की कमी नही है जिनके काफी परिजन सेना में हैं। ऐसे में जरूरत पड़ी तो पूर्व सैनिक भी मदद के लिए मैदान में आ जाएंगे।
चीन द्वारा कब्जाए लद्दाख के इलाके वापस लेंगे : लद्दाख के सांसद जामयांग सेरिंग नांग्याल ने कहा कि चीन लद्दाख पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ना चाहता है। चीन चुमार, डेमचौक, गलवन तक आ गया है। लद्दाख के साथ लगते तिब्बत को चीन ने कब्जा लिया। लद्दाख भारत का है। इस पर किसी को कब्जा नहीं करने दिया जाएगा। पहले कांग्रेस की नीति कमजोर थी, आज प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पहले चीन क्षेत्र में एक छोटी सी नहर बनाने से भी रोकता था। आज उसका कोई डर नहीं है। चीन द्वारा कब्जाए गए लद्दाख के इलाकों को अब अहिस्ता अहिस्ता वापस लेना है। इसमें लद्दाख के लोग भी पूरा सहयोग देने को तैयार हैं।
बहादुरी के लिए पोर्टर को महावीर चक्र से नवाजा जा चुका : सेना के साथ काम करने वाले स्थानीय पोर्टर भले ही वर्दी नहीं पहनते और हाथ में बंदूक के बजाए कंधे पर बोझा उठाते हैं, लेकिन जब बात बहादुरी की आती है तो वे युद्ध के मैदान में साबित कर देते हैं कि लद्दाखी लोगों की रगों में बहादुरों का खून दौड़ता है। यह सिलसिला वर्ष 1948 से क्षेत्र में हो रहे युद्धों से जारी है। कारगिल के जोजिला में पाकिस्तान के हमले को नाकाम बनाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में सेना की तीन जाट रेजीमेंट के साथ काम कर रहे कारगिल के सिविलयन पोर्टर मोहम्मद इस्माइल को युद्ध के मैदान में बहादुरी के लिए महावीर चक्र से नवाजा गया था। उन्होंने युद्ध के मैदान में सेना के गाइड का काम करते हुए कई जख्मी सैनिकों की जान बचाई थी। उसके बाद क्षेत्र में विश्व के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन व कारगिल के युद्ध में लद्दाख के कई पोर्टरों ने भी बहादुरी दिखाई।