Kashmir Militancy: कश्मीर के युवाओं को समझ आने लगा आतंक का सही चेहरा, आतंकी भर्ती में आई कमी
कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों पर लगातार यह दबाव बनाया जा रहा है कि वे इस्लाम के नाम पर घाटी के युवाओं को भड़काकर सुरक्षाबलों के खिलाफ उन्हें तैयार करें।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। कश्मीर में मजहब के नाम पर कई युवाओं की भावनाओं से खेलने का आतंकवादी संगठनों का तंत्र अब बेअसर हो रहा है। दरअसल कश्मीर के युवाआें को अब आतंक का सही चेहरा समझ जाने लगा है। अब इसे सुरक्षाबलों का आतंकियों पर बढ़ता दबाव कहें या घाटी में सामान्य होते हालात का असर। मगर सच यही है कि पिछले सालों की तुलना में इस बार युवाओं की आतंकवादी संगठनों में भर्ती काफी कम रही है। इसका खुलासा सुरक्षा एजेंसियों ने भी किया है। उनका कहना है कि इस साल पहली जनवरी से 30 अप्रैल तक वादी में मात्र 35 लड़के आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं। आतंकवाद से किनारा कर कश्मीर में मुख्यधारा का हिस्सा बनकर शांतिपूर्वक जीवन जीने की युवाहों की ख्वाहिश ने कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों व पाकिस्तान में बैठे उनकी आकाओं की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों पर लगातार यह दबाव बनाया जा रहा है कि वे इस्लाम के नाम पर घाटी के युवाओं को भड़काकर सुरक्षाबलों के खिलाफ उन्हें तैयार करें। वहीं भारतीय सेना द्वारा घाटी में भटके हुए युवाओं को वापस लाने के लिए शुरू किया गया ऑपरेशन मां काफी असरदार साबित हो रहा है। हालांकि स्थानीय सूत्रों का कहना है कि घाटी में आतंकी बनने वाले युवाओं की संख्या 45-50 के करीब है और यह संख्या बीते सालों की तुलना में बहुत कम है।
बुरहान की मौत के बाद बढ़ी थी भर्ती संख्या: कश्मीर घाटी में आतंकी संगठनों में स्थानीय युवको की भर्ती की प्रक्रिया में तेजी बुरहान की मौत के बाद आई। उससे पहले यह संख्या बहुत कम हुआ करती थी। वर्ष 2014 में 53 युवाओं ने आतंकवाद का रास्ता अपनाया। वर्ष 2015 में यह संख्या 66 पहुंची और वर्ष 2016 में ये संख्या बढ़कर 88 तक पहुंच गई। इसी साल बुरहान की मौत हुई थी। उसके बाद आतंकवादी संगठनों ने पोस्टर ब्वाय बुरहान वानी को ब्रांड के तौर पर इस्तेमाल किया और युवाओं को इस्लाम के नाम पर भड़काते हुए आतंकवाद का रास्ता अपनाते हुए सुरक्षाबलों के खिलाफ बंदूके उठाने के लिए प्रेरित किया। नतीजतन वर्ष 2017 से 2019 तक हर साल आतंकी बनने वाले लड़कों की संख्या 100 से ऊपर पहुंच गई। वर्ष 2018 में जहां 200 लड़के विभिन्न जिहादी संगठनों का हिस्सा बने जबकि 2017 में ये संख्या 126 थी। पिछले साल 2019 में भी 119 लड़कों ने आतंकवाद का रास्ता चुना है।
एक दर्जन अधिक लड़कों को आतंकी बनने से पहले पड़का: जम्मू कश्मीर में सक्रिय विभिन्न खुफिया एजेंसियों और जम्मू-कश्मीर पुलिस के अांकड़ों के अनुसार पहली जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2020 तक सिर्फ 35 लड़के ही आतंकी संगठनों में सक्रिय हुए हैं। अच्छी बात यह रही कि करीब एक दर्जन से अधिक लड़कों को आतंकी बनने से पहले ही पकड़, उन्हें उनके परिजनों के हवाले किया गया है।
पिछलों सालों की तुलना में अभी की स्थिति बेहतर: कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में शामिल एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2018 से लेकर 2019 तक के पहले चार माह में बने आतंकियों और इस साल अब तक आतंकी बने युवकों की संख्या की तुलना की जाए तो हम कहेंगे स्थिति कुछ बेहतर है। वर्ष 2018 में पहले चार माह के दौरान 55 लड़कों के आतंकी बनने की पुष्टि हुई थी। वे सभी पुलिस की सूची में शामिल हो चुके थे। इनमें से 28 लड़के अप्रैल में ही आतंकी बने थे। वर्ष 2019 में भी यह संख्या 50 से ऊपर हो चुकी थी। इस लिहाज से अगर देखा जाए तो इस साल सिर्फ 35 लड़के ही आतंकी बने हैं। आने वाले दिनों में यह संख्या और घटेगी। अगर हालात अनुकूल रहे तो इस साल आतंकी बनने वाले युवकों की संख्या शाहद ही 50-60 से ऊपर जाए।
नए लड़कों का भर्ती करने में समर्थ कोई बड़ा आतंकी जिंदा नहीं: आईजीपी कश्मीर विजय कुमार ने भी आतंकी संगठनों में स्थानीय युवकों की भर्ती में कमी की संभावना जताते हुए कहा कि रियाज नाइकू जैसे प्रमुख आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं। कश्मीर में नए लड़कों को भर्ती करने में समर्थ अब कोई बड़ा आतंकी जिंदा नहीं रहा। इसका असर सीधा आतंकियों की भर्ती पर होगा। पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने जिस तरह से विभिन्न इलाकों में स्थानीय गणमान्य नागरिकों के साथ संवाद-समन्वय बनाया हुआ है, आतंकी बनने गए कई लड़कों को पकड़कर उनके परिजनों के हवाल किया है, उसका भी हमें फायदा मिलेगा।
आतंकी भर्ती को समाप्त करने का हो रहा प्रयास: जम्मू कश्मीर पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि हम आतंकी भर्ती को पूरी तरह समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हम जल्द ही यह लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। जो बच्चे भटककर आतंकवाद की राह पर निकल गए हैं, उनके मां-बाप भी हमारे साथ लगातार संपर्क कर अपने बच्चों को वापस लाने में सहयोग कर रहे हैं। हमने आतंकरोधी अभियान भी तेज किए हैं, बड़े कमांडरों की मौत का असर भी नयी भर्ती पर होगा। इस साल हम अब तक 64 आतंकियों को मार चुके है। इनमें से 22 आतंकी हिज्ब के थे जबकि लश्कर और जैश के आठ-आठ आतंकी थे। अंसार गजवातुल हिंद के छह-सात और द रजिस्टेंस फ्रंट के भी तीन आतंकी मारे जा चुके हैं। अन्य आतंकियों की पहचान नहीं हुई।