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Siachen Trekking : विश्व के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन से भी ऊंचा दिव्यांगों का हौसला

आपरेशन ब्लू फ्रीडम संगठन के संस्थापक विवेक जैकब का कहना है कि दल के लिए सियाचिन पर चढ़ाई आसान नहीं थी। रास्ते में कहीं गहरी खाई तो कहीं बर्फीले पानी की छोटी नदियां जिनके ऊपर से सीढ़ियों से गुजरना होता था। बर्फीले तूफान और बर्फ के धंसने का खतरा था।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 14 Sep 2021 07:19 AM (IST)Updated: Tue, 14 Sep 2021 11:10 AM (IST)
विश्व रिकार्ड बनाने के बाद 12 सितंबर को सियाचिन के बेस कैंप तक पहुंचने की कार्रवाई शुरू कर दी।

जम्मू, विवेक सिंह: विश्व के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में माइनस 50 तापमान और खून जमाने वाली ठंड में कुछ ऐसे जांबाज चढ़ाई कर गए जो न तो देख सकते थे तो न ही उनकी बाजू थी और न टांगें। आठ दिव्यांगों ने सियाचिन में कुमार पोस्ट तक 60 किलोमीटर और 15,632 फीट ऊंचाई पर चढ़कर विश्व रिकार्ड कायम किया। यह दावा सेना की 9 पैरा रेजीमेंट के कमांडो रहे मेजर (सेवानिवृत्त) विवेक जैकब ने किया। जेकब ने ही दिव्यांगों के दल का नेतृत्व किया। इस ऑपरेशन को नाम दिया गया था ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम। इस आपरेशन में सेना ने भी पूरी मदद की।

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ट्रैकिंग के दल में शामिल 19 वर्षीय आकाश रावत ने कहा कि सियाचिन तक पहुंचने में आत्मविश्वास और फौलादी हौसले काम आए। पहले से ली ट्रेनिंग ने डर खत्म कर दिया था। 13 वर्ष की आयु में दोनों हाथ खोने वाले आकाश ने साथियों के साथ हर किस्म की प्राकृतिक बाधाओं को बिना परेशानी पार किया।

कुमार पोस्ट तक पहुंचने के लिए अंतिम चरण में हर रोज 15 किलोमीटर ट्रैकिंग की। दल में एक सदस्य कृत्रिम टांग के सहारे मंजिल तक पहुंचा। कुछ सदस्य ऐसे भी थे जो देख नहीं सकते। टीम ने विश्व रिकार्ड बनाने के बाद 12 सितंबर को सियाचिन के बेस कैंप तक पहुंचने की कार्रवाई शुरू कर दी।

टीम वर्क की तरह आगे बढ़ते गए : आपरेशन ब्लू फ्रीडम संगठन के संस्थापक विवेक जैकब ने कहा कि हर कोई हैरान था कि दिव्यांग सियाचिन तक कैसे जाएंगे। यह मेरे लिए चुनौती था। पहले उन्हेें ट्रेनिंग ही ऐसी दी गई ताकि सियाचिन चढ़ते समय कोई परेशानी न आए। दिव्यांग पर्वतारोहियों ने सेना के जवानों की तरह टीम वर्क का परिचय देते हुए एक-दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ते हैं। साथ में कुछ उपकरण भी थे जो दिव्यांगों की मदद कर रहे थे। अभियान का मकसद भी यही थी कि दिव्यांग एक टीम की तरह लक्ष्य को हासिल करें।

दिमागी रूप से मजबूत होना काम आया : विवेक जैकब

आपरेशन ब्लू फ्रीडम संगठन के संस्थापक विवेक जैकब का कहना है कि दल के लिए सियाचिन पर चढ़ाई आसान नहीं थी। रास्ते में कहीं गहरी खाई तो कहीं बर्फीले पानी की छोटी नदियां जिनके ऊपर से सीढ़ियों से गुजरना होता था। बर्फीले तूफान और बर्फ के धंसने का खतरा था। ऐसे में शारीरिक मजबूती के साथ दिमागी रूप से मजबूत होना भी बहुत काम आया। शाम होते ही बर्फीली हवाएं तेज हो जाती हैं। ऐसे में समय की चुनौती थी कि शाम चार बजने तक 15 किलोमीटर का सफर कर रात में ठहरने के लिए डेरा डालना पड़ता था। टीम के सदस्य बर्फ में इस्तेमाल होने वाली कुलहाड़ी, सीढ़ियों व रस्सियों के सहारे मंजिल की तरफ बढ़ते गए ।

पहले से ट्रेनिंग कर की थी तैयारी: दिव्यांगजनों के दल ने इससे पहले लेह व उसके बाद सियाचिन के आधार शिविर में ट्रेनिंग की थी। बर्फीले योद्धाओं को तैयार करने वाले सियाचिन डेविल्स ने दिव्यांग पर्वतारोहियों को सियाचिन के आधार शिविर में ट्रेनिंग दी थी। बेस कैंप में 20 पर्वतारोहियों में से आठ पर्वतारोहियों को चुना गया। दल सात सितंबर को सियाचिन ग्लेशियर के लिए रवाना हुआ था। 


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