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बड़ा खुलासा: वाइएसएमएस एप के जरिए लगातार संपर्क में थे पुलवामा हमले में शामिल आतंकी

आदिल डार त्राल में मारा गया आतंकी मुदस्सर खान भी आपस में वाइएसएमएस के जरिए ही संपर्क में थे।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 13 Mar 2019 11:00 AM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 11:00 AM (IST)
बड़ा खुलासा: वाइएसएमएस एप के जरिए लगातार संपर्क में थे पुलवामा हमले में शामिल आतंकी
बड़ा खुलासा: वाइएसएमएस एप के जरिए लगातार संपर्क में थे पुलवामा हमले में शामिल आतंकी

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : लिथपोरा (पुलवामा) में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला करने वाले आतंकी आदिल डार और इस साजिश में शामिल अन्य दहशतगर्द हमले से पूर्व आपस में वाइएसएमएस एप के जरिए लगातार संपर्क में थे। इस हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में स्थित बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के जिस कैंप को उड़ाया है, वहीं पर अल्फा-थ्री कंट्रोल रूम था। अल्फा-थ्री में बैठे आतंकी सरगना ही पुलवामा हमले की साजिश को तैयार करने से लेकर उसे अमली जामा पहनाने तक कश्मीर में सक्रिय अपने कैडर को लगातार दिशा-निर्देश दे रहे थे। बताया जा रहा है कि एनआइए ने एक विदेशी जांच एजेंसी की मदद से वाइएसएमएस मैसेज डिकोड किए हैं और उनके आधार पर ही यह खुलासा हुआ है।

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सूत्रों ने बताया कि आदिल डार और रविवार शाम को पगलिश (त्राल) में मारा गया आतंकी मुदस्सर खान भी आपस में वाइएसएमएस के जरिए ही संपर्क में थे। हमले के चंद दिन बाद मारा गया पाकिस्तानी जैश कमांडर कामरान और गाजी रशीद भी इसी एप का इस्तेमाल कर रहे थे। एनआइए से जुड़े सूत्रों की मानें तो मुदस्सर और कामरान गाजी के ठिकानों से मिले मोबाइल फोन व अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों से भी पता चला है कि ये सभी आतंकी वाइएसएमएस का ही इस्तेमाल कर रहे थे।

ऐसे काम करता है वाइएसएमएस :

सूत्रों ने बताया कि वाइएसएमएस पर कोई आडियो संदेश नहीं होता। इसके जरिए सिर्फ लिखा हुआ संदेश ही भेजा जा सकता है और यह पकड़ा नहीं जा सकता। यह सिर्फ उसी व्यक्ति तक पहुंचता है जिसके लिए यह हो। इसके लिए एक स्मार्ट फोन चाहिए, जिस पर यह एप डाउनलोड किया जाता है। इसके बाद एक वाईफाई की सुविधा वाला रेडियो सेट चाहिए, जो स्मार्ट फोन के साथ जुड़े। फोन में सिमकार्ड के बिना ही रेडियो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करते हुए संदेश भेजा जा सकता है। इसके जरिए भेजा गया संदेश अगर किसी के हाथ लग भी जाए तो उसे डिकोड नहीं किया जा सकता।

अलकायदा करता रहा है इस्तेमाल :

पुलवामा मामले की जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि वाइएसएमएस जैसे एप और संबंधित तकनीक वर्ष 2012 से डार्क वेब पर उपलब्ध है। अलकायदा इसका इस्तेमाल वर्ष 2007 से कर रहा है। जम्मू कश्मीर में पहली बार इसका खुलासा वर्ष 2015 में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकी सज्जाद अहमद से मिले मोबाइल फोन से हुआ था, लेकिन उसके कोड को डिकोड नहीं किया जा सका था।

जैश व लश्कर कर रहे प्रयोग :

लश्कर और जैश के कई आतंकी इस एप का इस्तेमाल जम्मू कश्मीर में कर रहे हैं। वह अक्सर मुठभेड़ में फंसने पर वाइएसएमएस एप व तकनीक से लैस मोबाइल फोन को नष्ट कर देते हैं, ताकि कोई सुराग न बचे। अधिकारियों ने बताया कि पुलवामा हमले की जांच के दौरान वाइएसएमएस पर जैश आतंकियों द्वारा भेजे गए संदेश पकड़े गए हैं। उनमे से अधिकांश को डिकोड किया जा चुका है।

इन संदेशों को डिकोड करने में किसी विदेशी एजेंसी के सहयोग पर चुप्पी साधते हुए सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि जो कुछ संदेश डिकोड किए गए हैं, उनमें से एक में जैश के आतंकियों के जनाजे का जिक्र है और एक अन्य में पुलवामा हमले का जिक्र करते हुए लिखा गया है बड़ी संख्या में भारतीय फौजी मारे गए हैं, उनकी कई गाडिय़ां तबाह हुई हैं। इसके अलावा इन संदेशों के आधार पर यह भी पता चला है कि पुलवामा हमले की साजिश को बालाकोट स्थित जैश के अल्फा थ्री कंट्रोल रूम से ही संचालित की जा रही थी। वहां बैठे कुछ आतंकी सरगनाओं को भी कश्मीर में पुलवामा हमले की साजिश से जुड़े आतंकियों ने इसी तकनीक के जरिए संदेश भेजे हैं।


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