Pulwama Terror Attack: दस दिन पहले ही जारी हुआ था हमले का अलर्ट, एक माह पहले तैयार हुई थी साजिश
Pulwama terror attack. जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले से सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह सकते में आ गई हैं।
जम्मू, नवीन नवाज। अफजल गुरू स्क्वाड के आत्मघाती हमले में वीरवार को सीआरपीएफ के 44 जवान शहीद हो गए। बीते दो दशकों के दौरान अब तक के सबसे बड़े इस आतंकी हमले से सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह सकते में आ गई हैं, लेकिन यह हमला कतई अप्रत्याशित नहीं था। करीब एक माह पहले तैयार हुई इस साजिश के लिए सिर्फ हमले की जगह और उसे अंजाम देने वाला आतंकी ही हैरान करने वाला है। इस हमले ने सहृदयता के नाम पर सुरक्षाबलों के काफिले के समय वादी में नागरिक वाहनों को भी साथ चलने देने की कुछ साल पहले अपनाई गई नीति की भयावहता को साबित किया है। हमले में 320 किलो विस्फोटक से लदा वाहन इस्तेमाल हुआ है।
हमले के बाद मौके पर पहुंचे आइजीपी कश्मीर एसपी पाणि और आइजी सीआरपीएफ जुल्फिकार हसन ने सुरक्षा चूक में इनकार करते हुए कहा कि अभी जांच की जा रही है। लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने आतंकियों के संभावित हमले को लेकर जारी अलर्ट दोहराते हुए कहा कि बार-बार कहा जा रहा था कि आतंकी 15 फरवरी तक किसी बड़ी वारदात को अंजाम देंगे। यह अलर्ट 10 दिन पहले ही जारी हुआ था। इसमें कहा गया था कि वह सुरक्षाबलों के शिविरों पर आत्मघाती हमला करने, ग्रेनेड फेंकने के अलावा किसी बड़े आइईडी विस्फोट को अंजाम दे सकते हैं। इस अलर्ट के आधार पर रोजाना सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा हो रही थी। आतंकी हमले की दृष्टि से हाईवे पर परिंपोरा-पंथाचौक, जेवन-पांपोर-कदलबल और काजीगुंड-मीरबाजार को ही सबसे ज्यादा संवेदनशील घोषित किया गया था। लेकिन आतंकियों ने जिस तरह से गोरीपोरा को चुना और वह भी उस जगह जहां से सीआरपीएफ के वाहन अपने लिथपोरा स्थित अपने शिविर की तरफ मुड़ रहे थे।
उन्होंने बताया कि ऑपरेशन ऑल आउट में अपने अधिकांश कमांडरों के मारे जाने से हताश आतंकी संगठन किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने का मौका बीते एक माह से लगातार तलाश रहे थे। उन्होंने हमलों के लिए अलग अलग दस्ते तैयार किए थे, लेकिन कामयाब नहीं हो पा रहे थे। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने गत जनवरी माह के दौरान इस हमले की साजिश शुरू की थी। पहले आशंका जताई गई थी कि यह हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जम्मू कश्मीर यात्रा के दौरान होगा, लेकिन आतंकियों को श्रीनगर में अपनी साजिश को अंजाम देने का मौका नहीं मिला। लेकिन चार फरवरी को जैश द्वारा किसी बड़े हमले की तैयारी की दोबारा सूचना मिली और उसी समय अलर्ट किया गया जो लगातार दोहराया जा रहा था। साफ संकेत मिल रहा था कि आतंकी आठ से 15 फरवरी तक हमला करेंगे, क्योंकि नौ फरवरी को आतंकी अफजल गुरु और 11 फरवरी को आतंकी मकबूल बट की बरसी थी।
केंद्रीय खुफिया तंत्र के कश्मीर में सक्रिय एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अफजल गुरू ब्रिगेड दस्ते में स्थानीय आतंकियों की भर्ती किए जाने की सूचना के बाद कहा जा रहा था कि हमला कोई स्थानीय आतंकी करेगा। इसके आधार पर जैश से जुड़े स्थानीय आतंकियों व उनके ओवरग्राउंड वर्करों की लगातार निगरानी भी की जा रही थी, लेकिन आदिल डार उर्फ कमांडो का कोई जिक्र सुनने को नहीं मिला। इससे किसी का ध्यान उस पर नहीं गया, क्योंकि वह गत जनवरी से ही किसी भी जगह नजर नहीं आ रहा था। डीआइजी रैंक के एक सीआरपीएफ अधिकारी ने कहा कि इस घटना के लिए सुरक्षा व्यवस्था में चूक को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता, क्योंकि निर्धारित एसओपी का पूरा पालन करते हुए ही जवानों का काफिला हाईवे से निकल रहा था। इसके अलावा हाईवे पर सीआरपीएफ और सेना के जवानों की गश्त भी लगातार हो रही थी, निर्धारित स्थानों पर सीआरपीएफ के जवान भी तैनात थे। सड़क और उसके साथ सटे इलाकों को सुबह भी खंगाला गया और दोपहर को भी।
एक साथ तीन वाहनियों के करीब ढाई हजार जवानों के काफिले की जरूरत पर उन्होंने कहा कि यह कोई पहला अवसर नहीं है, जब इतनी संख्या में जवान हाईवे से गुजर रहे हों। बीते कुछ दिनों से जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग बंद था। श्रीनगर आने वाले वाहन रास्ते में ही फंसे हुए थे और आज तड़के ही जम्मू से निकले थे। जवानों की मूवमेंट के मद्देनजर सभी सुरक्षा उपाय किए गए थे।करीब 14 साल बाद सुरक्षाबलों को निशाना बनाने के लिए आत्मघाती आतंकी द्वारा किसी वाहन का इस्तेमाल किए जाने पर आतंकवाद विशेषज्ञ पूर्व आइजीपी अशकूर वानी ने कहा कि अब पहले की तरह आतंकी आसानी से हाईवे पर वाहन खड़ा कर उसे रिमोट से नहीं उड़ा सकते।
इसलिए आतंकियों ने वाहन बम के लिए एक आत्मघाती आतंकी तैयार किया। इसके अलावा हाईवे पर कश्मीर में सिक्योरिटी फोर्सिस का काफिला जब गुजरता है तो अब पहले की तरह से आम नागरिक वाहनों को नहीं रोका जाता। करीब एक दशक पहले तक जब सुरक्षाबलों का वाहन गुजरता था तो आम नागरिक वाहन उनके काफिले से आगे रहते थे, या काफिले के बिल्कुल पीछे। कोई नागरिक वाहन उनके काफिले में घुस नहीं सकता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। हाईवे पर किसी जगह भीड़ भरे चौक में अगर कोई नागरिक वाहन बीच में घुस आए, उसे नहीं रोका जाता। यही चूक कही जा सकती है। इसके अलावा कौन वाहन आतंकियों का है और किसमें आम नागरिक, यह तभी तय होता है, जब कोई पहले पक्की सूचना हो या आतंकी फायर करे।कश्मीर में आतंकवाद विशेषज्ञ वरिष्ठ मुख्तार बाबा ने कहा कि मौसम किसी हद तक आतंकियों के लिए मददगार रहा है। ठंड और बारिश के मौसम के चलते हाईवे पर तैनात जवान मुस्तैद नहीं रह पाए होंगे। यही बात आतंकियों ने भी ध्यान में रखी होगी। इसके अलावा हाईवे से सुरक्षाबलों के गुजरने का समय सभी को पता रहता है।
जानें कौन है अफजल गुरु स्क्वाड
अफजल गुरू स्क्वाड का गठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद ने जनवरी 2014 में किया था। उसने यह संगठन संसद हमले के साजिशकर्ता अफजल गुरू को 9 फरवरी 2013 को हुई फांसी का बदला लेने के लिए बनाया है। इसी दस्ते ने उत्तरी कश्मीर के टंगडार, उड़ी, मोहरा, के अलावा श्रीनगर एयरपोर्ट के पास बीएसएफ शिविर, दक्षिण कश्मीर के लितपोरा पुलवामा में पुलिस लाइन और सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर के अलावा पठानकोट एयरबेस और जम्मू में सुंजवां व नगरोटा में सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले किए हैं।