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पुलवामा कांड के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने के किए आतंकी संगठनों का नापाक गठजोड़ Jammu News

जैश सरगना अजहर मसूद के मनसूबों को पूरा करने का जिम्मा उसके करीबी मुश्ताक जरगर उर्फ लटरम ने संभाल लिया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 15 Jun 2019 08:56 AM (IST)Updated: Sat, 15 Jun 2019 11:57 AM (IST)
पुलवामा कांड के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने के किए आतंकी संगठनों का नापाक गठजोड़ Jammu News
पुलवामा कांड के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने के किए आतंकी संगठनों का नापाक गठजोड़ Jammu News

जम्मू, नवीन नवाज। अनंतनाग में हुए आतंकी हमले ने साबित कर दिया है कि पुलवामा कांड के बाद जैश-ए-मोहम्मद पर बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव और घाटी में सक्रिय अधिकांश कमांडरों के मारे जाने से उसने आतंकी संगठन अल-उमर मुजाहिदीन के साथ नापाक गठजोड़ किया है। यानी बंदूक और निशाना जैश का होगा और जिम्मेदारी लेगा अल-उमर मुजाहिदीन।

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जैश सरगना अजहर मसूद के मनसूबों को पूरा करने का जिम्मा उसके करीबी मुश्ताक जरगर उर्फ लटरम ने संभाल लिया है। हालांकि दोनों का गठजोड़ पुराना है, लेकिन इसे नई धार देते हुए कश्मीर में आतंकी ङ्क्षहसा को और ज्यादा घातक करने की साजिश रची गई है।

वर्ष 2004 के बाद सिर्फ बयानबाजी तक सिमट कर रह गए अल उमर ने तीन साल पहले 15 अक्तूबर 2016 को पहली बार कश्मीर में किसी आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी। यह हमला श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र जकूरा में एसएसबी के जवानों पर हुआ था। इसमें एसएसबी का एक जवान शहीद हो गया था। इसके बाद श्रीनगर में दो ग्रेनेड हमलों में भी अल-उमर के निशान मिले।

इसके बाद वर्ष 2017 में श्रीनगर की एतिहासिक जामिया मस्जिद में शब-ए-कदर की रात को पुलिस डीएसपी अयूब पंडित की हत्या में लिप्त जो युवक पकड़े गए थे, उन पर भी कथित तौर पर मुश्ताक जरगर का प्रभाव नजर आया। डाउन-टाउन में अक्सर अल-कायदा और आइएसआइएस के झंडे लहराने वाले पत्थरबाजों की टोली लटरम से विभिन्न तरीकों से जुड़ी हुई हैं। पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन के पिता और पीपुल्स कांफ्रेंस के संस्थापक अब्दुल गनी लोन की 21 मई 2002 को श्रीनगर के ईदगाह में हुई हत्या की साजिश को भी लटरम ने ही रचा था। इस हत्या को अंजाम देने वाले आतंकियों पर नजर रखने के लिए अल उमर का कमांडर रफीक लिदरी खुद मौके पर मौजूद रहा था। लिदरी छह फरवरी 2004 को खनयार में मारा गया था। उसकी मौत के बाद अल-उमर की गतिविधियां लगभग ठप होकर रह गई थी।

अनंतनाग हमले की जांच में जुटे अधिकारियों के अनुसार, वीरवार को हुए हमले की जिम्मेदारी लटरम के संगठन ने बेशक ली है, लेकिन यह जैश की कार्रवाई थी। मारा गया आतंकी विदेशी है और अल उमर के इतिहास और वर्तमान को खंगालने पर अभी तक ऐसा कोई सुराग नहीं मिला है, जो साबित करता हो कि श्रीनगर शहर में पैदा होने वाले आतंकी संगठन में विदेशी कैडर है। लटरम डाउन-टाउन में एतिहासिक जामिया मस्जिद के पास ही रहता था। पहले वह जेकेएलएफ के कमांडरों में एक था और वह 1989 तक दो बार आतंकी ट्रेनिंग लेने गुलाम कश्मीर और अफगानिस्तान भी गया था। वर्ष 1989 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण कांड में भी उसका नाम आया था।

जेकेएलएफ के साथ मतभेदों के बाद उसने अल-उमर मुजाहिदीन बनाई थी। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, उसके आतंकी संगठन को कश्मीर के मौजूदा मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के पिता फारूक अहमद का साथ प्राप्त था। ऐसा दावा किया जाता है कि अल-उमर नाम मौजूदा मीरवाइज के नाम पर ही रखा गया था। जरगर 15 मई 1992 को पकड़ा गया था। पकड़े जाने से पहले उसने कश्मीर में लगभग 60 नागरिकों की हत्याओं को अंजाम देने के अलावा सुरक्षाबलों पर हमले की विभिन्न वारदातों में शामिल रहा है।

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि अल-उमर मुजाहिदीन ने इससे पहले भी 26 अप्रैल 2019 को श्रीनगर के छन्नपोरा में पुलिस चौकी पर हमले की जिम्मेदारी ली थी। इस हमले में लिप्त आतंकियों को जब पकड़ा गया तो पता चला कि वह जैश के हैं। अल-उमर मुजाहिदीन ने सिर्फ जिम्मेदारी ली है। दरअसल इसी साल फरवरी में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर जैश के आत्मघाती हमले और मई माह में मौलाना मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित किए जाने बाद जैश अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने के लिए अल-उमर का सहारा ले रहा है।

अल-उमर और जैश का रिश्ता है गहरा :

अल-उमर और जैश का रिश्ता बहुत गहरा है। इसे समझने के लिए सिर्फ यही जानना काफी होगा कि दिसंबर 1999 मे इंडियन एयलाइंस के विमान और उसमें सवार यात्रियों को कंधार से लाने के लिए जिन तीन आतंकियों को भारत सरकार ने छोड़ा था, उनमें मौलाना मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक जरगर उर्फ लटरम ही थे। लटरम और मौलाना मसूद अजहर की दोस्ती जेल में ही हुई थी। भारतीय जेल से रिहा होने के बाद अजहर मसूद ने जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया था। लटरम ने सरहद पार पहुंचने के बाद अपनी गतिविधियां सीमित कर ली थी, लेकिन कश्मीर में सक्रिय उसके कई आतंकी और ओवरग्राउंड वर्कर उसके कहने पर जैश के साथ जुड़ गए थे।

खतरनाक है यह गठजोड़ :

सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक अल उमर और जैश का यह गठजोड़ खतरनाक साबित हो सकता है। उनके मुताबिक, अजहर मसूद और लटरम दोनों ही अल-कायदा के करीबी हैं। इसके अलावा डाउन-टाउन में अंसार गजवात उल ङ्क्षहद और आइएसजेके के झंडे लहराने वाले अधिकांश युवक अल-उमर से जुड़े हुए हैं। इसलिए लटरम और मसूद कश्मीर में अल कायदा व आइएसआइएस के लिए ग्राउंड नेटवर्क और कैडर भी प्रदान करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।  

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