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जम्मू में आतंकी संगठनों के लिए काम करने वालों पर बड़ा एक्शन, तीन अफसरों को किया सस्पेंड

Jammu पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के लिए काम करने वालों पर जम्मू में बड़ी कार्रवाई हुई है। सरकारी सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार जम्मू-कश्मीर सरकार ने पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ सक्रिय रूप से काम करने और आतंकवादियों को रसद मुहैया कराने आतंकवादी विचारधारा का प्रचार करने आतंकी वित्त जुटाने और अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए तीन कर्मचारियों को सेवाओं से बर्खास्त कर दिया है।

By Jagran NewsEdited By: MOHAMMAD AQIB KHANPublished: Mon, 17 Jul 2023 10:37 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jul 2023 10:37 AM (IST)
जम्मू में आतंकी संगठनों के लिए काम करने वालों पर बड़ा एक्शन, तीन अफसरों को किया सस्पेंड
जम्मू में आतंकी संगठनों के लिए काम करने वालों पर बड़ा एक्शन, तीन अफसरों को किया सस्पेंड : जागरण

जम्मू, जागरण संवाददाता: पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के लिए काम करने वालों पर जम्मू में बड़ी कार्रवाई हुई है। सरकारी सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार जम्मू-कश्मीर सरकार ने पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ सक्रिय रूप से काम करने और आतंकवादियों को रसद मुहैया कराने, आतंकवादी विचारधारा का प्रचार करने, आतंकी वित्त जुटाने और अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए तीन कर्मचारियों को सेवाओं से बर्खास्त कर दिया है।

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सरकारी तंत्र और विभिन्न शिक्षण संस्थानों में बैठ आतंकी और अलगाववादी एजेंडे को संरक्षण व प्रोत्साहण देने वाले तत्वों के खिलाफ अपने अभियान को जारी रखते हुए प्रदेश प्रशासन ने सोमवार को कश्मीर विश्वविद्यालय के एक जनसंपर्क अधिकारी फहीम असलम एक पुलिसकर्मी और एक राजस्व कर्मी को सेवामुक्त कर दिया है।

इसके साथ ही बीते तीन वर्ष के दौरान आतंकियों व अलगाववादियों के साथ संबंधों के चलते सेवामुक्त हुए कर्मचारियों व अधिकारियों की संख्या लगभग 52 हो गई है। संबधित अधिकारियों ने बताया कि फहीम असलम के अलावा पुलिस कांस्टेबर अरशिद ठोकर और राजढस्व कर्मी मुरव्वत हुसैन मीर को सेवामुक्त किया गया है।

इन तीनों के खिलाफ यह कार्रवाई सभी कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करने और इनकी आतंकी व अलगाववादियों के साथ सांठ-गांठ की पुष्टि हाेने, इनके खिलाफ सभी पक्के सुबूत जमा करने के बाद ही की गई है। यह तीनों आतंकी व अलगाववादी संगठनों के लिए काम कर रहे थे। आतंकी व अलगाववादी एजेेडे का प्रचार करने के अलावा यह आतंकी व अलगाववादी संगठनों के लिए पैसा जमा करने, उनके कैडर के लिए सुरक्षित ठिकाने जुटाने का भी काम कर रहे थे। सभी उपलब्ध तथ्यों और साक्ष्यों केा संज्ञान लेने के बाद प्रशान ने भारतीय संविधान की धारा 311(2)(सी) का प्रयाेग करते हुए इन तीनों केा सेवामुक्त कर दिया है।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में जम्मू कश्मीर प्रशासन ने आतंकवाद और अलगाववाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति अपना रखी है। इस अभियान ने पांच अगस्त 2019 से पूर्व जम्मू कश्मीर में आतंकियों और अलगाववादियों के पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षण एवं प्रोत्साहण देने वाले तंत्र को लगभग नष्ठ कर दिया है। गत माह प्रदेश प्रशासन ने डा निगहत शाहीन चिल्लु और डा बिलाल अहमद दलाल को सेवामुक्त किया था। इन दोनों ने अलगाववादियों और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइए के एजेंडे के 29 मई 2009 को शोपियां में डूबी दो युवतियों की मौत को सामूहिक दुष्कर्म व हत्या साबित करने के लिए उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गलत तथ्य शामिल किए थे। बीते वर्ष अगस्त में प्रदेश प्रशासन ने कुख्यात आतंकी बिट्टा कराटे की पत्िनी असबाह उल अरजमंद को सेवामुक्त किया था। वह जम्मू कश्मीर प्रशासनिक सेवा कैडर की अधिकारी थीञ आतंकी-अलगाववादी संगठनों के देश विदेश मे ंफैले नेटवर्क में उसकी मजबूतपकड़ थी और वह अलगाववादियों के लिए विभिन्न प्रकार से मदद जुटा रही थी।

आतंकियों को शहीद और भारतीय सुरक्षाबलों मानता है आक्रांता

फहीम असलम फहीम असलम को अलगाववादी संगठन के नेता और एक आतंकी कमांडर के दबाव मेें तत्कालीन कश्मीर विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्रबंधन ने एक संविदा कर्मचारी के रूप में जनसंपर्क विंग में नियुक्त किया था। उसे अगस्त 2008 में नियुक्त किया गया था और कुछ समय बाद उसे नियमित किया गया। इसके बाद उसे मीडिया रिर्पोटर मनोनीत किया गया है। कश्मीर विश्वविद्यालय में नियुक्ति से पूर्व भी फहीम असलम विभिन्न समाचारपत्रों में अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कई भडकाऊ और राष्ट्रविरोधी लेख लिख चुका है।

वह कश्मीर से प्रकाशित होने वाले एक अंग्रेजी दैनिक जो अपनी अलगाववादी विचारधारा के लिए कुख्यात रहा है, में भी फहीम एक नियमित स्टाफर था। कश्मीर विश्वविद्यालय जो शुरु से ही अलगाववादी और आतंिकयों के एक ठिकाने के रूप में कुख्यात रहा है, फहीम असलम ने अलगाववादी एजेंडे को ही बढ़ावा देने का काम जारी रखा। उसकी नियुक्ति भी बिना किसी सार्वजनिक विज्ञापन, साक्षात्कार के हुई है। किसी भी सरकारी संस्थान या विश्वविद्यालय में नियुक्ति से पूर्व संबधित उम्मीदवार की जो सीआइडी जांच होनी होती है, फहीम के मामले में वह भी नहीं कराई गई थी। फहीम असलम तिहाड़ में बंद प्रमुख अलगााववादी शब्बिीर शाह का भी करीबी रहा है। चारे दरवाजे से कश्मीर विश्वविद्यालय में नौकरी प्राप्त करने के वाला फहीम असलम कट्टर अलगाववादी विचाराधारा का प्रवर्तक है।

कश्मीर के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ग्रेटर कश्मीर में उसके लेख और सुरक्षाबलों के खिलाफ उसकी एक तरफा रिपोर्टिंग पाकिस्तान के प्रति उसकी वफादारी को दर्शाती है। ट्वीटर, फेसबुक समेत इंटरनेट मीडिया के विभिन्न मंचों पर उसके पोस्ट बताते हैं कि वह कश्मीर के पाकिस्तान विलय का समर्थक है और अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का वह प्रखर विरोधी है। उसने अपने कई पोस्ट इंटरनेट मीडिया से हटाए हैं। वह पाकिस्तानी एजेंडे पर काम कर रहे अलगाववादी और आतंकी संगठनों के लिए बहुत ही अहम है।

जांच के दौरान पता चला है कि 23 मई 2020 को फेसबुक पर उसने लिखा है कि -एक वास्तविकता को कोई नहीं बदल सकता, कश्मीर हमेशा ही ईद पाकस्तान के साथ मनाएगा, और वह भी पाकिस्तान के लिए। हम पाकिस्तान के साथ ही जाएंगे। अब यह पाकिस्तान काे तय करने दो कि वह किसके साथ जाना चाहेंगे- चौधरी साहब या मुफ्ती साहब। अपने एक अन्य पोस्ट में फहीम ने लिखा है- अल्लाह दुनियाभर में विशेषकर फिलस्तीन, कश्मीर और पाकिस्तान में मुस्लिमों की तकलीफ को कम करे। कब्जा समाप्त हो और कब्जा करने वाला दोजख में जले। अल्लाह शहीदों की कुर्बानी कबूल करे और गाजा व कश्मीर जल्द ही आजादी का सूरज देखें,आमीन।

फहीम भारत और सुरक्षाबलों के खिलाफ अपनी नफरत को कभी नहीं छिपाता था। वह सुरक्षाबलों को हमेशा कब्जाधारक भारत की फौज कहता था। चार अगस्त 2015 को उसने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा था- इस्लामाबाद (अनंतनाग) में रहने वाला मेरे चचेरा भाई जो 27 अक्टूबर 1990 को कब्जाधारक भारतीय फौज द्वारा शहीद किया गया है, की कब्र पर लिखे शब्दों को ध्यान से पढ़ें। वह उस समय मात्र 20 वर्ष का था। उसकी आत्मा की शांति के लिए दुआ करें। आमीन।

जांच में पता चला है कि उसने आतंकवाद और अलगाववाद के महिमामंडन वाले अपने कई पोस्ट और ट्वीट इंटरनेट मीडिया से हटा दिए हैं,लेकिन कश्मीर घाटी में हरेक अच्छी तरह से जानता है कि वर्ष 2008 से 2018 तक आतंकी और अलगाववादी नरेटिव को चलाने वालों की कतार मे वह अग्रणी था। कश्मीर विश्वविद्यालय में नौकरी प्राप्त करने के बावजूद वह ग्रेटर कश्मीर अखबार से नियमित तौर पर वेतन प्राप्त करता था और वह भी नकद । उसने ग्रेटर कश्मीर में काम करने के लिए कश्मीर विश्वविद्यालय प्रबंधन से भी कोई अनुमति प्राप्त नहीं की थी। उपलब्ध रिकार्ड बताते हैं कि वह ग्रेटर कश्मीर में एक पूर्णकालिक स्टाफकर्मी के रूप में संबंद्ध था और उपसंपादक के रूप में काम कर रहा था।

पुलिस की वर्दी में छिपा जैश ए मोहम्मद का भेड़िया था अरशिद

अरशिद अहमद ठोकर केवर्ष 2006 में जम्मू कश्मीर पुलिस के सशस्त्र बल में भर्ती हुआ था। वर्ष 2009 में उसने अपना स्थानांतरण पुलिस के एग्जीक्यूटिव विंग में कराया। उसने लेथपोरा स्थित पुलिस के कमांडो सेंटर में बीआरटीसी बेसिक रिक्रूट ट्रेनिंग कोर्स पूरा किया। इसके बाद वह श्रीनगर में पुलिस के विभिन्न वरिष्ठ अधिकारियों व संरक्षित व्यक्तियों संग अंगरक्षक या फिर ड्राइवर के रूप में कार्यरत रहा है। वह पत्थरबाजी में भी लिप्त रहा है और विभिन्न आतंकी संगठनों के लिए पुलिस के भीतर एक मुखबिर के तौर पर काम करता था। वह आतंकियों और उनके हथियारों एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित पहुंचाने का काम भी करता था।

अरशिद का जैश ए मोहम्मद के कुख्यात ओवरग्राउंड वर्कर मुश्ताक अहमद गनई उर्फ आरके के साथ घनिष्ठ संबंध था। आरके जिला बडगाम में शेखपोरा वाथुरा का रहने वाला है। उसने मुश्ताक उर्फ आरके ने अरशिद के साथ मिलकर बडगाम-पुलवामा में सक्रिय जैश आतंकियों के लिए एक मजबूत नेटवक्र तैयार किया। वह अक्सर आतंकियों को पुलिस के नाकों से सुरक्षित निकलवाता था। इसके अलावा वह नार्काे टेरेरिज्म माडयूल का भी हिस्सा था। वह सुरक्षाबलाें की नजर बचा रहता है,अगर 31 मई 2020 को पुलिस ने दउसने दूनीवारी पुल के पास पांच आतंकियों संग न पकड़ा हाेता।

उसके साथ पकड़े गए आतंकियों में मुदस्सिर फैयाज मीर निवासी टंगहार करालपोरा, दानिश अहमद शेख निवासी गोपालपोरा चाडूरा, शब्बीर अहमद गनई निवासी शेखपोरा वाथूरा, मोहम्मद इसाक बट निवासी नरवाओ सादीपोर शोपियां और सगीर अहमद पोस्वाल निवासी अमरोही करनाह शामिल थे। उनके पास से एक पिस्तौल, एक मैगजीन, चार कारतसू, एक ग्रेनेड व अन्य साजो सामान के अलावा एक किलोग्राम हेरोईन व 1.55 लाख रूपये की भारतीय करंसी पकड़ी गई थी। इसके बाद 24 जून 2022 को पुलिस ने वाथूरा चाडूरा के युनिस मंजूर वाजा और बोनहार वाथूरा के महबूब अहमद शेख को पकड़ा। इनके पास से दो वाहन भी बरामद किए गए।

पूछताछ में इन दोनों ने बताया कि बरामद वाहन अरिशद ने ही नार्काे टेरेरिज्म के जरिए हुई कमाई से ,खरीदे हैं। इन दोनों वाहनो को उन्हें एक जगह विशेष पर मौजूद आतंकियों तक पहुंचाना था ताकि वह इनका इस्तेमाल किस वारदात में कर सकें। जांच में पता चला कि अरशिद अक्सर किसी कार या मोटरसाइकिल पर अपने साथ आतंकियों को बैठाकर उन्हें एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाता था। इसी तरह वह उनके हथिार व नशीले पदार्थ भी सुरक्षबालों की नाक तले से निकाल ले जाता था,क्योंकि उसे पता होता था कि कौन सा नाका कहां पर है और जब कभी उसे रोका जाता तो वह पुलिस का अपना पहचानपत्र दिखाता था।

श्रीनगर में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानोंं को उड़ाने की साजिश

दक्षिण कश्मीर में पांपोर का रहने वाला मुरव्वत हुसैर मीर वर्ष 1985 में राजस्व विभाग में भर्ती हुआ था। कुछ समय बाद ही वह आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त हो गया। वह जमाते इस्लामी का एक नामी कार्यकर्ता था और हिजबुल मुजाहिदीन व जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के लिए वह आतंकियों की भर्ती भी करता था। उसने पांपोर तहसील कार्यालय को एक तरह से हिजब और जेकेएलएफ का कार्यालय बना दिया था। यह दोनों आतंकी संगठन तहीसल कार्यालय पांपोर के कामकाज में भी हस्ताक्षेप करने लगे थे।

मुरव्वत इन दोनों आतंकी संगठनों के लिए पांपोर और उसके साथ सटे इलाकों में कार्यरत सरकारी अधिकारियों व कर्मियों से प्रोटेक्शन मनी भी वसूलता था। वह सरकारी कर्मचारियों के मासिक वेतन से आतंकी संगठनों के लिए चंदा काट लेता था। वह पांपोर, त्राल, अवंतीपोर और उसके साथ सटे इलाकों में जेकेएलएफ व हिजब का सबसे विश्वसनीय ओवरग्राउंड वर्कर था।

वह तहसील कार्यालय पांपोर में अपने प्रभाव का इस्तेमाल आतंकियों की मदद के लिए करता था। वह आतंकियों और उनके हथियारों को एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित पहुंचाने का काम करता था और अगर किसी जगह सुरक्षाबल उसे राेकते तो वह स्थानीय न्यायपालिका से संबधित होने का अपना दबाव बना वहां से निकल जाता था। वह अक्टूबर 1995 में श्रीनगर के राजबाग इलाके में चार आतंकियों संग पकड़ा गया था।

पूछताछ में उन्होंने बताया कि वह श्रीनगर शहर में कुछ महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को बम धमाकों से उड़ाने का षडयंत्र रच रहे हैं। उनकी निशानदेही पर श्रीनगर के विभिन्न हिस्सों से भारी मात्रा में बम और अन्य विस्फोटक बरामद हुए थे। मुरव्व्त हुसैन मीर लगभग आठ माह तक जेल मे रहा और रिहा होने के बाद वह दोबारा सरकारी नौकरी में आ गया।

आतंकी गतिविधियों में उसकी सलिंप्तता के बावजूद लगभग 28 वर्ष तक प्रशासन उसके खिलाफ काेई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया। उसने आतंकी व अलगाववादी संगठनों में अपनी गहरी पैठ के जरिए अपने पुत्र को हारिस मुरव्वत को पाकिस्तान में एमबीबीएस पाठयक्रम में दाखिला भी दिलाया। वर्ष 2007 में उसने जमात ए इस्लामी और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की मदद से पांपोर में फलाह-ए-बहबूद कमेटी बनाई। वह इसका चेयरमैन है और खुफिया सूत्रों के मुताबिक इस कमेटी वर्ष 2008, 2010 और 2016 के हिंसक प्रदर्शनों में अहम भूमिक निभाई है।


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