कोरोना की मार झेल रहा देश में खास जम्मू-कश्मीर का कोकून, फसल तैयार लेकिन नहीं मिल रहा खरीददार
Jammu Kashmir Cocoon सब्सिडी पर बीज क्रेडिंग किट उपलब्ध करवाता है। किसानों की अतिरिक्त आय का यह सबसे अच्छा साधन है। पिछले वर्ष भी कोरोना के कारण किसान प्रभावित हुआ था। जिसके चलते अधिकतर खरीदारी जम्मू कश्मीर सरकार ने ही की थी।
जम्मू, जागरण संवाददाता : अपनी अव्वल गुणवत्ता के कारण देश भर में खास पहचान रखने वाली जम्मू-कश्मीर की रेशम की खुपटी (कोकून) उत्पादन को भी कोरोना की मार झेलनी पड़ रही है। किसान लाखों किलो खुपटी तैयार कर बैठे हैं लेकिन उन्हें कोरोना के चलते खरीदार नहीं मिल रहा। उस पर सरकार भी मूक दर्शक बनी हुई है। कोकून तैखरीददारयार हुए महीना भर हो गया है लेकिन सरकार की ओर से खरीददारी को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है।
पिछले वर्ष भी किसानों को काेरोना के चलते सामान्य से भी कम मूल्य ही मिल पाया था। पहले से ही निराशा के शिकार किसानों को अब भी खरीदारों का इंतजार है, तो उनकी चिंता और भी बढ़ रही है। उन्हें तो लगने लगा है कि कहीं उनकी मेहनत बेकार न चली जाए। जम्मू-कश्मीर में पहले ही खरीदारों की कमी है लेकिन बाहरी राज्यों से जो खरीदार आते हैं। वह भी कोरोना के चलते जम्मू-कश्मीर में नहीं पहुंच पा रहे हैं। ऐसे में सरकार का भी दायित्व हो जाता है कि जल्द से जल्द कोकून की खरीदारों की जम्मू-कश्मीर में पहुंचने की व्यवस्था की जाए ताकि जम्मू कश्मीर के खुपटी उत्पादकों को खरीदार मिल सकें।
पहले ही आतंकवाद के चलते कश्मीर संभाग रेशम की खुपटी के उत्पादन में जम्मू से पीछे चला गया है।किसी समय जम्मू-कश्मीर से करीब 12 लाख किलो खुपटी तैयार होती थी लेकिन अब जम्मू में चार लाख किलोग्राम जबकि कश्मीर में उससे भी कम खुपटी तैयार हो रही है।किसानों की निराशा का एक कारण यह भी रहा है कि किसान को उसकी मेहनत अनुसार कभी पैसा ही नहीं मिला। समाज सेवक एवं खुपटी किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर चुके एसएस सुंबरिया ने कहा कि उनका संघर्ष इसी बात को लेकर था कि खुपटी उत्पादकों को अपना माल मंडी में बेचने की छूट होनी चाहिए।
सरकार मन मर्जी के मूल्यों पर खुपटी किसानों से खरीद लिया करती थी। जब से बाहर से व्यापारी आने लगा है किसानों को हजार-12 सौ रुपए प्रति किलो के हिसाब से कीमत मिलने लगी थी। पिछले वर्ष कोरोना के चलते बाहर का खरीदार नहीं पहुंच सका। जिसके चलते फिर से कीमत कम ही मिली थी। सरकार को चाहिए कि कुछ ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए कि किसान की खुपटी जल्द बिक सके। जितनी पुरानी होती जाएगी। इसकी कीमत पर असर पडे़गा। हमारा किसान इतना समृद्ध नहीं है कि तैयार खुपटी को तरीके से संभाल सके।
तहसील रियासी के गांव मगाल के किसान हंस राज ने बताया कि पिछले वर्ष रेट बहुत कम मिला था जिसके चलते उन्होंने इस वर्ष कीट पालन ही नहीं किया। वह पिछले कई वर्षों से खुपटी पालन से जुडे़ हुए थे।
अतिरिक्त निदेशक सेरीकल्चर विभाग राजेंद्र भगत के अनुसार विभाग किसानों को खुपटी उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करता रहता है। सब्सिडी पर बीज, क्रेडिंग किट उपलब्ध करवाता है। किसानों की अतिरिक्त आय का यह सबसे अच्छा साधन है। पिछले वर्ष भी कोरोना के कारण किसान प्रभावित हुआ था। जिसके चलते अधिकतर खरीदारी जम्मू कश्मीर सरकार ने ही की थी। इस वर्ष भी अभी तक कोरोना के कारण बाहरी राज्यों से व्यापारी नहीं पहुंच पा रहा है। अधिकतर सिल्क यूनिट भी कोरोना के चलते बंद पड़े हुए हैं। लेकिन किसान को किसी प्रकार का नुकसान न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा।