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बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख की पहाड़ियों में बेखौफ घूमते हैं हिम तेंदुए

जम्मू-कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश में जहां हिम तेंदुए की संख्या 600 के करीब है। वहीं हमारे राज्य में इनकी संख्या 400 के करीब है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 05:42 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 05:42 PM (IST)
बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख की पहाड़ियों में बेखौफ घूमते हैं हिम तेंदुए

जम्मू, राहुल शर्मा। जम्मू-कश्मीर में विलुप्त प्राय हिम तेंदुए को कोई खतरा नहीं है। यह जीव लद्दाख क्षेत्र में बेखौफ घूमते हैं। कारण यह है कि लद्दाख के निवासी हिम तेंदुए का शिकार करने में विश्वास नहीं रखते हैं। यही वजह है कि बर्फीले रेगिस्तान में लद्दाखी ‘शान’ के नाम से प्रसिद्ध इस जानवर की संख्या अन्य सर्द राज्यों के मुकाबले काफी अधिक है। जम्मू-कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश में जहां हिम तेंदुए की संख्या 600 के करीब है। वहीं हमारे राज्य का लद्दाख एक मात्र एेसा संभाग है जहां इनकी संख्या 400 के करीब है। लद्दाखी शान (हिम तेंदुआ) एक छोटे, भुरे तेन्दुए के समान दिखता है। शान और सादे तेन्दुए के बीच आपसी संबंध नहीं है। असलियत में शान और बाघ संबंधी हैं। दोनो जातियों की उत्पत्ति उत्तर एशिया में हुई थी।

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10 डिग्री से ज्यादा तापमान बर्दाश्त नहीं कर पाते हिम तेंदुए

लद्दाखी शान ग्रीष्म में 5000 मीटर और सर्दी में 3500 मीटर से अधिक की ऊंचाइयों पर मिलते हैं। ये 10 डिग्री से ज्यादा का तापमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। वे उच्च शिकारी मानते जाते हैं। उनकी जाति पहाड़ी इलाकों की एक प्रमुख प्रजातियों में से एक है। उनके पसंदीदा शिकार आइबेक्स व भड़ल जैसे पहाड़ी जानवर हैं। मगर जंगली जानवरों की कमी के कारण वह अकसर भेड़ व याक जैसे पालतु पशुओं पर भी हमला करते हैं, जिन्हें चरवाहे घुमाने के लिए पहाड़ों व जंगलों मेंं ले गए होते हैं। लद्दाख के कई इलाके ऐसे हैं जहां हिम तेंदुए 50 प्रतिशत तक पालतु पशुओं के शिकार पर ही निर्भर हैं। इस कारण हिम तेंदुओं और लद्दखियों के बीच संघर्ष पैदा होता है।

हिम तेंदुओं के संरक्षण को बनाई पशु बीमा योजना

लद्दाख में तेजी से हो रही प्रगति हिम तेंदुओं के लिए खतरा साबित न हो इसके लिए स्नो लैपर्ड कंजरवेंसी इंडिया ट्रस्ट पिछले कई सालों से यहां काम कर रही है। बर्फीले इलाकों में रहने वाले तेदुओं को जीवित रहने के शिकार की जरूरत होती है। जंगली जानवरों की कमी के कारण पिछले कुई महीनों में इन तेंदुओं ने कस्बों में प्रवेश कर पालतु पशुओं का शिकार करना शुरू कर दिया है। ऐसे में हिम तेंदुए और लोगों के बीच संघर्ष बढ़ गया। ट्रस्ट ने ग्रामीणों में शान के प्रति बढ़ते रोष और उनके शिकार को रोकने के लिए पशु बीमा योजना शुरू की। एक छोटी से बीमा राशि भर लोग भेड़-याक का बीमा करवा रहे हैं। अब यदि तेंदुए अब कभी किसी पालतू पशु को अपना शिकार बनाते हैं तो मालिक को उसकी कीमत दे दी जाती है। इससे लोगों में शान के प्रति घृणा कम हो गई है।

पशु बाड़ा बनाने में भी दिया जा रहा सहयोग

ग्रामीण इलाकों में पशुओं को रात के समय सुरक्षित रखा जा सके इसके लिए ट्रस्ट चरवाहों को कंटीली तार भी दे रही है ताकि वे पशु बाड़े का निर्माण कर सकें। ट्रस्ट ने यह कंटीली तारें लद्दाख के उन सभी गांवों में बांटी हैं जो हिम तेंदुओं के दायरे में आते हैं। ग्रामीणों को इसका फायदा भी हुआ है। कंटीली बाड़ लगने के साथ तेदुएं के हमले काफी कम हो गए हैं।

कई पहाड़ी इलाके जंगली जानवरों के लिए आरक्षित किए

हिम तेंदुए जंगली शिकार न मिल पाने के कारण ही पालतू पशुओं को अपना शिकार बना रहे हैं। बाड़ लगाने के बाद पालतू जानवर रात के समय तो इस खतरे से बच गए परंतु जब ग्रमीण अपने जानवरों को पहाड़ी इलाकों में चराने के लिए ले जाते तो उस दौरान तेंदुए इन पर हमला बोल देते। ग्रामीणों ने इस समस्या का भी हल ढूंढ लिया। उन्होंने दूसरे जंगली जानवरों की संख्या में बढ़ोतरी करने के लिए ऊपरी जंगली व पहाड़ी इलाकों को आरक्षित कर दिया। यानी कोई भी चरवाहा वहां अपने पशुओं को लेकर नहीं जाएगा। ऐसे में अब शान को उनके प्राकृतिक शिकार मिलने लगे हैं। मनुष्य और हिम तेंदुओं के बीच अब संघर्ष काफी कम हो गया है।  


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