करतारपुर की तरह बने शारदा पीठ कॉरिडोर
राज्य ब्यूरो, जम्मू : करतारपुर कॉरिडोर को लेकर भारत-पाक के बीच हुए समझौते के बाद अब
राज्य ब्यूरो, जम्मू : करतारपुर कॉरिडोर को लेकर भारत-पाक के बीच हुए समझौते के बाद अब गुलाम कश्मीर स्थित कश्मीरी पंडितों के तीर्थस्थल शारदा पीठ के लिए भी कॉरिडोर की मांग तेज हो गई है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को कहा कि खून-खराबे से कश्मीर में मरघट जैसी खामोशी कायम करने की साजिशों के बजाय करतारपुर कॉरिडोर जैसे कदम उठाकर कश्मीर मसले को हमेशा के लिए हल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ¨हदू श्रद्धालुओं के आवागमन को आसान बनाने के लिए शारदा पीठ कॉरिडोर बनाया जाना चाहिए। महबूबा के बयान को लपकते हुए भाजपा ने भी कह दिया कि करतारपुर सिर्फ शुरुआत है, हम शारदा पीठ तीर्थयात्रा भी शुरू करवाएंगे।
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हम बरसों से कह रहे हैं कि गुलाम कश्मीर और जम्मू कश्मीर के बीच सभी रास्तें खुले। लोगों के बीच खुलकर संवाद हो, एलओसी के आरपार पर्यटन के लिए लोग आएं-जाएं। श्रद्धालुओं के लिए रास्ते खुलें। यहां कश्मीर में मुस्लिमों के कई धर्मस्थल हैं, जहां गुलाम कश्मीर के लोग आना चाहते हैं, इसी तरह वहां शारदा पीठ समेत कई मंदिर हैं। महबूबा ने कहा कि पाकिस्तान का करतारपुर कॉरिडोर खोलने का फैसला जितना सराहनीय है, उतना ही इसका सकारात्मक जवाब देकर देश के राजनीतिक नेतृत्व ने एक समझदार और दूरदर्शी राजनयिक होने का सुबूत दिया है। जम्मू कश्मीर मसले के हल के लिए भी इसी तरह के ईमानदार और मानवीय कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि करतारपुर कॉरिडोर को आज उस दिन खेला गया है, जब वर्ष 2009 में मुंबई में आतंकी हमले में कई लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। अगर इसी दिशा में आगे बढ़ें तो जल्द ही जम्मू कश्मीर समस्या का समाधान भी हो सकता है। महबूबा ने कहा कि केंद्र सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर का फैसला चुनावी माहौल के बीच लिया है। ऐसा लगता है कि मतदाताओं को इसके बारे में ज्यादा पता नहीं है और यह आगे चलकर एक मॉडल बनेगा। इससे हमें पता चलता है कि चुनावी लाभ-हानि अब सरकारों को दो देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए कोई कदम उठाने से नहीं रोक सकती।
बंदूक और ताकत से हल नहीं हुआ कश्मीर मसला :
महबूबा ने हाल ही में वादी में ¨हसक घटनाओं में आई तेजी की ¨नदा करते हुए युवाओं से ¨हसा छोड़ने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक और कूटनीति दायरे में भी समाधान के कई अवसर हैं और हमें उनपर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो यह मानते हैं कि कुछ युवकों की मौत से कश्मीर मसला हल होगा, गलत सोचते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व को चाहिए कि वह मानवीय रवैया अपनाए।
'करतारपुर सिर्फ शुरुआत है, हम कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में वापसी को यकीनी बनाने के साथ ही शारदा पीठ की तीर्थयात्रा भी शुरू करवाएंगे।'
-र¨वद्र रैना, प्रदेश अध्यक्ष भाजपा 'आज केंद्र में भाजपा की सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहें तो शारदा पीठ का रास्ता खुलवाने के लिए एलान कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान इससे इन्कार करेगा।'
-देवेंद्र ¨सह राणा, नेशनल कांफ्रेंस के प्रांतीय प्रधान 'हमें नहीं लगता कि अब हमारे आग्रह को और ज्यादा देर तक टाला जाएगा। केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र ¨सह ने भी हमें आश्वासन दिया है। यह हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान व सरंक्षण का सवाल है।'
-र¨वद्र पंडिता, सेव शारदा कमेटी कश्मीर के संस्थापक 'शरदा पीठ शुरू से ही कट्टरवादियों के हमलों का निशाना रही है। हमारी केंद्र से बरसों से मांग रही है कि कश्मीरी पंडितों को वहां जाने की सुविधा प्रदान की जाए। करतारपुर कॉरिडोर ने उम्मीद बंधाई है कि हम भी शारदा पीठ जा सकेंगे।'
-डॉ. अजय चुरंगु, पनुन कश्मीर के वरिष्ठ नेता
शारदा पीठ का इतिहास और अहमियत
राज्य ब्यूरो, जम्मू : गुलाम कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद से पूर्वाेत्तर में स्थित शारदा पीठ कश्मीर की संस्कृति और परंपरा का एक अहम हिस्सा है। गुलाम कश्मीर के नीलम जिले में किशनगंगा दरिया जिसे गुलाम कश्मीर कश्मीर में नीलम कहा जाता है, के किनारे एक पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, देवी सती के शरीर का एक भाग यहीं पर गिरा था। इस स्थान का उल्लेख महाभारत में भी है। शारदा पीठ को ज्ञान-ध्यान-पाठ का एक बड़ा केंद्र माना जाता रहा है। यह स्थान शताब्दियों से ¨हदू-बौद्ध विद्या का केंद्र रहा है। कश्मीरी भाषा जिस शारदा लिपि में लिखी जाती थी उसका आविष्कार इसी स्थान पर 9वीं सदी ईसवी में हुआ। यहां देवी सरस्वती को समर्पित मंदिर था, जिसके अब सिर्फ खंडहर ही बचे हैं। भारत-पाक विभाजन से पहले यहां एक बहुत बड़ा मेला सजता था। इसमें पूरे भारत से श्रद्धालु आते थे। शारदा पीठ से दूरी :
-उड़ी (बारामुला) से मुजफ्फराबाद (गुलाम कश्मीर) से होकर शारदा पीठ की दूरी करीब 200 किलोमीटर है।
-टिटवाल सेक्टर (कुपवाड़ा) से दरिया पार कर महज 20 किलोमीटर दूर है पीठ।
-पुंछ (जम्मू संभाग) से रवलाकोट बाया मुजफ्फराबाद से शारदा पीठ की दूरी 300 से ज्यादा है।
जाने से मनाही : पाकिस्तान सरकार कश्मीरी पंडितों को शारदा पीठ जाने के लिए न तो वीजा और न ही परमिट जारी करती है।