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Kashmir: आम कश्मीरियों की आजादी देख गुम है अलगाववादियों की सिट्टी-पिट्टी

खुद को कश्मीरियों का नुमाइंदा कहने वाले अब बयानबाजी से भी बच रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह अपने बचाव के लिए रास्ता तलाश रहे हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 11:23 AM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 11:23 AM (IST)
Kashmir: आम कश्मीरियों की आजादी देख गुम है अलगाववादियों की सिट्टी-पिट्टी
Kashmir: आम कश्मीरियों की आजादी देख गुम है अलगाववादियों की सिट्टी-पिट्टी

श्रीनगर, नवीन नवाज। कश्मीर में पिछले दो माह में काफी कुछ तेजी से बदला है। कश्मीर को पाकिस्तान बनाने का नारा देने वाले अलगाववादी अब गायब हैं। भड़काऊ बयान तो दूर हड़ताल और बंद के कैलेंडर भी जारी नहीं हो रहे। इससे आम कश्मीरी खुश है, चूंकि उनकी नजर में अब बंद की सियासत से आजादी का दौर शुरू हो चुका है। पाक परस्त सियासी दलों की गीदड़ भभकियां भी अब सुनाई नहीं पड़ती है। 31 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर व लद्दाख अलग राज्य बन जाएंगे। पांच अगस्त से पूर्व हुर्रियत और उससे जुड़े अलगाववादी संगठन हड़ताली कैलेंडर जारी कर लोगों को उकसाते थे, लेकिन राज्य के पुनर्गठन के फैसले के बाद हुर्रियत के कट्टरपंथी गुट के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी, उदारवादी गुट के मीरवाईज मौलवी उमर फारूक समेत सभी अलगाववादी नेता चुप्पी साधे हुए हैं।

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अलगाववादी नेताओं के पास बोलने के लिए कुछ नहीं

बीते दो महीन में अलगाववादी खेमे की तरफ से एक ही बयान आया है और वह भी राज्य से अनुच्छेद 370 हटने पर बदलाव से संबधित नहीं था और न हड़ताल के एलान पर था। यह बयान मीरवाईज मौलवी उमर की तरफ से एक स्पष्टीकरण था।

मजहब की आड़ में चलाते थे अपनी सियासी दुकान 

कश्मीर ट्रेडर्स फेडरेशन के अल्ताफ अहमद वानी ने कहा कि नेकां, पीडीपी या पीपुल्स कांफ्रेंस की खामोशी समझ आती है। उन्होंने बदलाव को कबूल कर लिया होगा। गिलानी और अन्य हुर्रियत नेता नजरबंदी का नाटक करते हुए बचना चाहते हैं। मीरवाईज मौलवी उमर फारूक जामिया मस्जिद से मजहब की आड़ में अपनी सियासी दुकान चलाते थे, अपनी रिहाई पर स्पष्टीकरण देने के लिए निकल आए, लेकिन अपने मुद्दे भूल गए। काश, इन लोगों ने यह चुप्पी पहले रखी होती तो कश्मीर के हालात जुदा होते।

सामाजिक कार्यकर्ता सलीम रेशी ने कहा कि वर्ष 2008, 2010 और वर्ष 2016 के हिंसक प्रदर्शनों के दौरान हुर्रियत के नित हड़ताली कैलेंडर आते थे। खुद को कश्मीरियों का नुमाइंदा कहने वाले अब बयानबाजी से भी बच रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह अपने बचाव के लिए रास्ता तलाश रहे हैं। वजह जो भी हो, पर सब एक बात कह रहे हैं कि कश्मीरियों का अब हड़ताली कैलेंडर और बंद की सियासत से आजादी का रास्ता साफ हो चुका है। अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कश्मीर के एक युवा पत्रकार ने कहा कि मीरवाईज ने तो रिहाई का बांड भरा है। बिलाल गनी लोन भी बाहर हैं। अगर इन लोगों को अपने नारे पर यकीन होता तो केंद्र के फैसले का विरोध करते। उधार का नारा था, जो खत्म हो गया, इसलिए अब चुप हैं। ऑटोनामी, सेल्फ रूल जैसे नारे उछालने वाले सियासी दल भी अब पूरी तरह शांत हैं।

उन्होने कहा कि लोग भी अलगाववादियों के चंगुल से आजाद हैं। बारामुला के बिलाल ने कहा कि अब इन नेताओं के पास बोलने के लिए कुछ नहीं बचा है। उनकी सियासत अब हो चुकी है। उन्होंने 30 साल तक नौजवानों को मारा है। पुरानी बेकरी के मालिक शफात ने कहा कि आजादी के नाम पर ढोल पीटने वाले अब चुप हैं। यह बहुत अच्छा है।


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