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गिलगिट-बाल्टिस्तान का महत्व नहीं समझ पाए नेहरू: अग्निहोत्री

राज्य ब्यूरो जम्मू हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के वीसी प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने क

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 12:27 AM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 05:11 AM (IST)
गिलगिट-बाल्टिस्तान का महत्व नहीं समझ पाए नेहरू: अग्निहोत्री
गिलगिट-बाल्टिस्तान का महत्व नहीं समझ पाए नेहरू: अग्निहोत्री

राज्य ब्यूरो, जम्मू : हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के वीसी प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कश्मीर के प्रति कारगर नीतियां न अपनाने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वायसराय लार्ड माउंटबेटन की चाल में फंसे नेहरू गिलगिट बाल्टिस्तान का महत्व नहीं समझ पाए। जब भारतीय सेना कश्मीर से पाकिस्तान सेना को खदेड़ रही थी तो नेहरू ने सेना को विश्वास में लिए बिना ही संघर्ष विराम कर दिया। नेहरू ही कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले गए।

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जम्मू विश्वविद्यालय के ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ऑडिटोरियम में विलय दिवस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि नेहरू चाहते थे कि विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने से पहले महाराजा हरि सिंह शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को सत्ता सौंपने के लिए सहमति दे दें। महाराजा हरि सिंह पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहते थे, लेकिन वायसराय लार्ड माउंटबेटन जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान के साथ मिलाना चाहते थे। महाराजा हरि सिंह के पास जम्मू कश्मीर को भारत के साथ मिलाने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं बचा था। अंग्रेजों ने ही महाराजा हरि सिंह को गुमराह करके गिलगिट बाल्टिस्तान को अलग करके पाकिस्तान को सौंप दिया। यह एक ऐसा इलाका है जिसके जरिए अफगानिस्तान से होते हुए अरब समेत आधी दुनिया तक पहुंचा जा सकता है। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था जो समाप्त हो चुका है। इतिहास के कई पहलुओं को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि सप्त सिधु क्षेत्र में हमलों को रोकने में सिखों के दस गुरुओं की अहम भूमिका रही। हालांकि खालसा पंथ की स्थापना दशम गुरु श्री गुरु गोबिद सिंह जी ने की, लेकिन गुरु नानक देव जी से लेकर सभी गुरु फौलाद की तरह खड़े हो गए थे। दशम पंथ ने सप्त सिधु से विदेशी शासकों को भगाया। महाराजा रंजीत सिंह ने अफगानों और मुगलों से सप्त सिधु को मुक्त करवाया। यह वो इलाका था जिसमें पूर्वी, पश्चिमी पंजाब के इलाके थे जिसकी सीमाएं अफगानिस्तान तक लगती थीं। कश्मीर को अफगानों के कब्जे से मुक्त करवाया। कश्मीर में 95 फीसद लोग वहां के ही हैं और पांच फीसद ही बाहर से आए हुए हैं। यह धारणा बनाई जाती है कि कश्मीरी पहले अफगानों के, फिर सिखों और फिर डोगरा के गुलाम रहे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। यह शब्दों का हेरफेर अंग्रेजों ने ही पैदा किया था। महाराजा गुलाब सिंह ने कश्मीर को 75 लाख रुपये में अंग्रेजों से खरीदा था। अंग्रेजों ने साजिश से गिलगिट-बाल्टिस्तान को अलग किया

उन्होंने कहा कि जब भारत स्वतंत्रता कानून बनने वाला था तो कांग्रेस ने रजवाड़ों के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाने का प्रावधान शामिल करने का जोर लगाया, लेकिन माउंटबेटन और मुस्लिम लीग नहीं मानी। कांग्रेस ने तब आत्मसर्मपण कर दिया। इससे यह हुआ कि राजाओं को किस देश में शामिल होना है, इसके अधिकार दे दिए गए। अंग्रेजों ने सोची-समझी साजिश के तहत ही गिलगिट बाल्टिस्तान को जम्मू कश्मीर से अलग कर दिया। इससे देश का संपर्क मध्य एशिया से कट गया। महाराजा रंजीत सिंह ने सीमाओं की सुरक्षा के लिए अहम कदम उठाए थे।

जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की तरफ से आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता जम्मू विवि के वीसी प्रो. मनोज धर ने की। केंद्र के प्रधान ओपी गुप्ता ने मुख्य वक्ता समेत अन्य अतिथियों का परिचय करवाया। आरएसएस के सह संघ चालक डॉ. गौतम मैंगी विशिष्ट अतिथि थे। संस्कार भारती के अजय कुमार ने गीत प्रस्तुत किया। मुख्य वक्ता प्रो. अग्निहोत्री को पुस्तकों का सेट और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में केंद्र के सचिव हर्षवर्धन गुप्ता आदि उपस्थित थे।


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