Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Jammu : जम्मू कश्मीर में संस्कृत के स्वर्णीम युग की फिर शुरुआत, सबसे बड़ी अनाज मंडी में लगा संस्कृत बाजार

    By lalit kEdited By: Rahul Sharma
    Updated: Wed, 30 Nov 2022 07:06 AM (IST)

    First Sanskrit Market In Jammu Kashmir इस क्षेत्र में संस्कृत की महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि तब जहां पूरे भारत में बौद्ध धर्म की मूल बातें पाली में लिखी गईं वहीं जम्मू कश्मीर में इसकी शिक्षा पहली बार संस्कृत में दर्ज हुई।

    Hero Image
    दुकानदारों व ग्राहकों को हर चीज की जानकारी देने के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी मौजूद रहे।

    जम्मू, ललित कुमार : भैया...पांच किलो पिष्टकम् (आटा), दो किलो आलुकम् (आलू) और आधा पाव गुडम् (गुड) भी डाल देना। जम्मू की सबसे बड़ी अनाज मंडी वेयर हाउस में मंगलवार को सबकुछ बदला-बदला सा था। चावल....तण्डुलम्, राजमा...राजामष:, सरसो का तेल...सर्षप-तैलम् और सूजी....कल्यम् के नाम से बिक रही थी। सब्जी के ढेले पर भी पालक की जगह पालक्या और कड़म की जगह कन्दशाकम् की पर्ची लगी थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यानी खाद्य सामग्री से लेकर सब्जी सब कुछ संस्कृत भाषा में बिक रही थी। यहां तक कि दुकानदार सामान की बिक्री करने पर संस्कृत में ही बिल काट रहे थे। इसे देख जहां मंडी में आने वाले ग्राहक हैरान थे, वहीं व्यापारी अपनी देववाणी संस्कृत के बारे में जानकर बेहद उत्साहित नजर आए। जम्मू कश्मीर में संस्कृत के स्वर्णिम युग की पुनर्स्थापना के लिए दशकों बाद एक एतिहासिक कदम उठाया गया और वेयर हाउस नेहरू मार्केट में अपनी तरह का अनोखा संस्कृत बाजार लगा।

    जम्मू कश्मीर में लंबे समय तक न सिर्फ पठन-पाठन, बल्कि संपर्क भाषा के रूप में भी संस्कृत का प्रयोग होता रहा है। 300 से 200 ईसा पूर्व जम्मू कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। उस समय इस क्षेत्र में संस्कृत की महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि तब जहां पूरे भारत में बौद्ध धर्म की मूल बातें पाली में लिखी गईं, वहीं जम्मू कश्मीर में इसकी शिक्षा पहली बार संस्कृत में दर्ज हुई। उस समय न सिर्फ पूरे भारत से छात्र यहां संस्कृत पढ़ने आते थे, बल्कि एशिया के दूसरे देशों के विद्वानों के लिए भी यह संस्कृत अध्ययन का बड़ा केंद्र था।

    इस युग को पुन: बहाल करने के लिए देववाणी संस्कृत के विद्वान स्वर्गीय डा. उत्तमचन्द शास्त्री पाठक जन्मशताब्दी समारोह के अंतर्गत संस्कृत बाजार लगाया गया। इसका आयोजन वेयर हाउस-नेहरू मार्केट जम्मू, चूड़ामणि संस्कृत संस्थान बसहोली (जम्मू कश्मीर), श्रीकैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्रीरणबीर परिसर और शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (स्कास्ट) के संयुक्त प्रयास से किया गया।

    इसका उद्घाटन भाजपा के प्रदेश उप प्रधान एवं पूर्व मंत्री शाम लाल शर्मा, चूड़ामणि संस्कृत संस्थान के मुख्य न्यासी शक्ति पाठक, एग्रीकल्चर डायरेक्टर जम्मू केके शर्मा, श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान रोहित शास्त्री, ट्रेडर्स फेडरेशन वेयर हाउस-नेहरू मार्केट के प्रधान दीपक गुप्ता व भाजपा नेता मुनीश शर्मा ने किया।

    केंद्रीय संस्कृत विवि के छात्रों ने दिया सहयोग : वेयर हाउस के प्रवेशद्वार पर संस्कृत बाजार सजाया गया था, जिसमें हर खाद्य सामग्री के संस्कृत नाम की पट्टी लगाई गई थी। दिनभर चले संस्कृत बाजार में दुकानदारों व ग्राहकों को हर चीज की जानकारी देने के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी मौजूद रहे। इन विद्यार्थियों ने बिक्री के बिल संस्कृत में बनाने में दुकानदारों का सहयोग किया।

    देशभर में संस्कृत को रोजमर्रा के काम में अपनाने का संदेश : संस्कृत भाषा के प्रोत्साहन के लिए जम्मू-कश्मीर में अपनी तरह का यह अनोखा आयोजन था। इस आयोजन के लिए अनाज मंडी का चयन इसलिए भी किया गया, क्योंकि यहां जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से रोजाना हजारों लोग पहुंचते हैं। इस संस्कृत बाजार के आयोजन से देश भर में संस्कृत को अपने रोजमर्रा के कामकाज में अपनाने का संदेश दिया गया।

    संस्कृत सिखाने के लिए रोज लगेगी कक्षा : केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. मदन मोहन झा ने कहा कि 30 नवंबर से अनाज मंडी वेयर हाउस-नेहरू मार्केट जम्मू के कार्यालय में विवि की ओर से रोजाना शाम चार बजे से शाम पांच बजे तक संस्कृत सीखने के लिए निश्शुल्क कक्षा का आयोजन किया जाएगा। संस्कृत को प्रोत्साहित करने की दिशा में विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रयासों में से एक प्रयास आज का आयोजन भी रहा। इस मौके पर ट्रेडर्स फेडरेशन वेयर हाउस के वरिष्ठ उप प्रधान मुनीष महाजन ने कहा कि जम्मू कश्मीर में पिछली सरकारों ने संस्कृत को प्रोत्साहित करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। उम्मीद है कि समाज के अन्य हिस्सों से भी इस तरह के छोटे-छोटे प्रयास होंगे और संस्कृत एक बार फिर जम्मू कश्मीर की प्रचलित भाषा बनेगी।