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औषधीय व खुशबूदार वनस्पति पर हो रहा अनुसंधान, देशभर के 250 स्कॉलर कर रहे पीएचडी

औषधीय व खुशबूदार वनस्पति पर हो रहा अनुसंधान।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 18 Jun 2018 10:24 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 02:54 PM (IST)
औषधीय व खुशबूदार वनस्पति पर हो रहा अनुसंधान, देशभर के 250 स्कॉलर कर रहे पीएचडी
औषधीय व खुशबूदार वनस्पति पर हो रहा अनुसंधान, देशभर के 250 स्कॉलर कर रहे पीएचडी

जम्मू कश्मीर के लोग रीजनल रिसर्च लैब (आरएलएल) को तो अच्छी तरह पहचानते होंगे, उसी का बदला नाम है भारतीय समवेत औषध संस्थान जोकि भारत सरकार के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) का एक राष्ट्रीय संस्थान है। इस तरह के 38 संस्थान देश में चल रहे हैं। यह सबसे पुराने वैज्ञानिक संस्थानों में से एक है।

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दरअसल आजादी से पहले 1941 में जम्मू कश्मीर में ड्रग्स रिसर्च लैब की स्थापना हुई। बाद में 1957 में देश में यह लैब वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुंसधान परिषद (सीएसआइआर) का हिस्सा बन गई जिसका नया नाम रीजनल रिसर्च लैब (आरएलएल) हो गया। 2007 में सीएसआइआर के इस संस्थान का नाम फिर बदल कर भारतीय समवेत औषध संस्थान (आइआइआइएम) हो गया।

’भारतीय समवेत औषध संस्थान का मकसद क्या है? वर्ष 2007 में जब सीएसआइआर के संस्थान का नाम बदल कर आइआइआईएम किया गया, तब मकसद यही था कि हिमालय क्षेत्र पर फोकस किया जाए ताकि औषधीय व खुशबूदार वनस्पति की संभाल की जा सके। वनस्पति की खोज उस पर अनुसंधान किए जा सकें। उत्पाद तैयार कर देश की सेवा की जा सके। आइआइआइएम द्वारा आज औषधीय व खुशबूदार वनस्पति पर अनुसंधान कर उत्पाद जिसमें दवाएं भी शामिल हैं, तैयार करवाई जा रही हैं। इसका मकसद वनस्पति की खेती को बढ़ावा देना भी है ताकि किसानों को भी लाभांन्वित किया जा सके। आज देश में 20 हजार करोड़ रुपये की एरोमा इंडस्ट्रीज है, उसकी शुरुआत इसी लैब से हुई। 1958 में मिंट की भी शुरुआत इसी लेब में हुई थी।

जम्मू कश्मीर क्षेत्र भी वनस्पति से भरपूर है। यहां पर क्या अनुंधान या बढ़ावे के लिए काम हो रहा है? कई किस्म के फूलों पर अनुसंधान कर तेल निकालने, खुशबूदार सामान तैयार करने और दवा बनाने की दिशा में काम हो रहा है। राज्य में सौ से ज्यादा वैज्ञानिक और तकनीकी अधिकारी, देशभर के 250 स्कॉलर जोकि यहां पर पीएचडी कर रहे हैं आज अनुसंधान के काम में लगे हैं। अब तो हम लेह-लद्दाख में भी फार्म बनाने जा रहे हैं ताकि वहां के विद्यार्थियों को भी अनुसंधान के काम में जोड़ा जा सके।’ कुछ माह पहले आइआइआइएम ने टीशू कल्चर से केले की खेती की शुरुआत कराई। कितनी सफलता मिला है इस दिशा में?

टीशू कल्चर से खेले की खेती बिल्कुल सफल रही है। दो एकड़ में हमने गुजरात की एक कंपनी के साथ मिलकर ट्रायल किया था जिसके अच्छे परिणाम सामने आए। एक पौधे से 30 किलो की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जम्मू में केले की अच्छी पैदावार हो सकती है। इसलिए इस साल हमने किसानों में सब्सिडी पर टीशू कल्चर के पौधे उपलब्ध कराने का मन बनाया है ताकि बड़े पैमाने पर के केला उत्पादित हो सके। 

जम्मू कश्मीर की युवा पीढ़ी को आप क्या संदेश देंगे ?यही कि राज्य वनस्पति से भरपूर है। इसे समङो और अनुसंधान करें। इससे देश व राज्य को बहुत ज्यादा लाभ होगा।’ भारतीय समवेत औषध संस्थान के इतिहास के बारे में कुछ बताएंगे ?

जम्मू कश्मीर के लोग रीजनल रिसर्च लैब (आरएलएल) को तो अच्छी तरह पहचानते होंगे, उसी का बदला नाम है भारतीय समवेत औषध संस्थान जोकि भारत सरकार के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) का एक राष्ट्रीय संस्थान है। इस तरह के 38 संस्थान देश में चल रहे हैं। यह सबसे पुराने वैज्ञानिक संस्थानों में से एक है।

दरअसल आजादी से पहले 1941 में जम्मू कश्मीर में ड्रग्स रिसर्च लैब की स्थापना हुई। बाद में 1957 में देश में यह लैब वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुंसधान परिषद (सीएसआइआर) का हिस्सा बन गई जिसका नया नाम रीजनल रिसर्च लैब (आरएलएल) हो गया। 2007 में सीएसआइआर के इस संस्थान का नाम फिर बदल कर भारतीय समवेत औषध संस्थान (आइआइआइएम) हो गया। ’भारतीय समवेत औषध संस्थान का मकसद क्या है?

वर्ष 2007 में जब सीएसआइआर के संस्थान का नाम बदल कर आइआइआईएम किया गया, तब मकसद यही था कि हिमालय क्षेत्र पर फोकस किया जाए ताकि औषधीय व खुशबूदार वनस्पति की संभाल की जा सके। वनस्पति की खोज उस पर अनुसंधान किए जा सकें। उत्पाद तैयार कर देश की सेवा की जा सके। आइआइआइएम द्वारा आज औषधीय व खुशबूदार वनस्पति पर अनुसंधान कर उत्पाद जिसमें दवाएं भी शामिल हैं, तैयार करवाई जा रही हैं। इसका मकसद वनस्पति की खेती को बढ़ावा देना भी है ताकि किसानों को भी लाभांन्वित किया जा सके। आज देश में 20 हजार करोड़ रुपये की एरोमा इंडस्ट्रीज है, उसकी शुरुआत इसी लैब से हुई। 1958 में मिंट की भी शुरुआत इसी लेब में हुई थी। 


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