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प्रो. शांत के कहानी संग्रह में झलके विस्थापन के अनछुए पहलू

जागरण संवाददाता, जम्मू : कश्मीरी विस्थापन के कई पहलुओं को उकेरते प्रो. रतन लाल शांत के कहानी संग्रह

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Feb 2020 09:51 AM (IST)Updated: Fri, 14 Feb 2020 09:51 AM (IST)
प्रो. शांत के कहानी संग्रह में झलके विस्थापन के अनछुए पहलू

जागरण संवाददाता, जम्मू : कश्मीरी विस्थापन के कई पहलुओं को उकेरते प्रो. रतन लाल शांत के कहानी संग्रह 'पठार शिविर की सूखी नदी' का विमोचन हिन्दी साहित्य मंडल जम्मू की ओर से आयोजित समारोह में किया गया। प्रो. शांत कश्मीरी तथा हिन्दी के वरिष्ठ कहानीकार, आलोचक, कवि, समीक्षक हैं। उनकी तीन दर्जन से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह संग्रह उन्हीं की कश्मीरी कहानियों का अनूदित संग्रह है। संग्रह की कहानियों का मुख्य सरोकार कश्मीर में आतंक के चलते हुए विस्थापन की जन त्रासदी के मानवीय पहलुओं को उकेरा गया है।

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प्रो. शांत साहित्य अकादमी, प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मैसूर भारतीय भाभा संस्थान, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, केंद्रीय निदेशालय आदि कई प्रतिष्ठित संस्थानों से सम्मानित हैं। केएल सहगल हाल में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. अग्निशेखर ने कहा कि सभी 11 कहानियों में मानवीय स्तर पर झेला दर्द झलकता है। सभी कहानियों के पात्रों को महसूस किया जाए तो बिंब सहज लगता है। सहज कहना असंभव उपलब्धि है, जिस पर प्रो. शांत की महारत झलकती है। पात्रों का व्यवहार अगर असमान्य है तो समझा जा सकता है कि विस्थापन के बाद किस तरह व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। शिविरों में रहते हुए भय, चिता, माताओं की पीड़ा, विस्थापन सिर्फ स्थान से नहीं, भाषा, स्मृतियों भूगोल आदि कई चीजों से हुआ है। कहानियों में अस्तित्व को खड़ा करने का प्रयास दिखता है। उन्होंने कहा कि सभी कहानियां दिल को छूने वाली हैं।

प्रो. शांत ने कहा कि रचना भाषा लेकर आती है। इस संग्रह की कहानियां विस्थापन से संबंधित हैं। विस्थापन केवल घटनाएं हैं, लेकिन यह घटनाएं हमें कैसे छूती हैं। हमें रोज व्यक्तिगत रिश्तों के सुंदर -आकर्षक उदाहरण देखने सुनने को मिलते हैं। पर समस्या वहां खड़ी होती है जब इस तरह की समावेशी संस्कृति का गहरा ऐतिहासिक आयाम देने के प्रयत्‍‌न नहीं किये जाते। प्रो. राज कुमार ने पुस्तक पर समीक्षात्मक पेपर पढ़ा। मंच संचालन डॉ. पवन खजूरिया और सुभाष शर्मा ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. किरण बख्शी ने की। स्वागत भाषण हिन्दी साहित्य मंडल के उपाध्यक्ष शमेंद्र कुमार ने किया। धन्यवाद प्रस्ताव संगठन मंत्री उमा शर्मा ने पारित किया।


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