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जम्मू में नो पाॅलीथिन अभियान को ठेंगा, धड़ल्ले से बिक रहा पॉलीथिन

जम्मू पहुंचने वाला पारदर्शी लिफाफे का पांच किलो साइज का पैकेट 50 रुपये व 10 किलो साइज के लिफाफों का पैकेट 90 से 100 रुपये में बेचा जा रहा है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 04:55 PM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 04:55 PM (IST)
जम्मू में नो पाॅलीथिन अभियान को ठेंगा, धड़ल्ले से बिक रहा पॉलीथिन
जम्मू में नो पाॅलीथिन अभियान को ठेंगा, धड़ल्ले से बिक रहा पॉलीथिन

जम्मू, जागरण संवाददाता। देश में पॉलीथिन व सिंगल यूज प्लास्टिक पर भले ही नकेल कसने की तैयारी हो रही हो, लेकिन जम्मू की सब्जी मंडियों में चोरी-छिपे पारदर्शी पॉलीथिन की खरीद-फरोख्त जारी है। हद तो यह है कि प्रतिबंध होने के बावजूद पॉलीथिन की आमद पड़ोसी राज्यों से हो रही है। 70 फीसद प्रतिबंधित पॉलीथिन ट्रकों में छिपाकर मंडियों में पहुंच रहा है। इसके बाद यह दुकानदारों, व्यापारियों के पास पहुंच रहा है। प्रतिबंधित होने के कारण यह महंगी भी बिक रही है।

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जम्मू पहुंचने वाला पारदर्शी लिफाफे का पांच किलो साइज का पैकेट 50 रुपये व 10 किलो साइज के लिफाफों का पैकेट 90 से 100 रुपये में बेचा जा रहा है। दो किलो साइज का पैकेट 30 से 35 रुपये में बिकता है। इसके बाद सब्जी बेचने वाले व किसान बड़े साइज के पॉलिथीन लिफाफे पांच से दस रुपये में खरीद कर सब्जियों की पैकिंग करते हैं।

जम्मू की सबसे बड़ी मंडी नरवाल में रोज पांच हजार पैकेट पारदर्शी लिफाफा बिक रहा है। किसान व छोटे व्यापारी तो पैकिंग के लिए यह लिफाफे खरीदते ही हैं, पुंछ, राजौरी, ऊधमपुर व दूरदराज से सब्जी लेकर आने वाले ट्रक चालक भी वापसी पर पारदर्शी लिफाफे खरीद कर ले जाते हैं ताकि सब्जियों की पैकिंग की जा सके। वहीं रेहड़ी फड़ी वालों की छोटे पॉलीथिन लिफाफे की मांग भी यहीं से पूरी होती है। जम्मू की सब्जी मंडियों में पॉलीथिन लिफाफों की जमकर हो रही खरीदारी के बाद भी इसे रोकने वाली संबंधित एजेंसियां खामोश बनी हुई हैं। इससे कारोबारियों का धंधा अभी भी धड़ल्ले से फलफूल रहा है।

सुरक्षित रखने के लिए पॉलीथिन में पैकिंग

लौकी, घिया, बंदगोभी, गाजर, बैगन, भिंडी जैसी सब्जी नाजुक होती है। इसे खरोंच से बचाना होता है। इसलिए किसान पारदर्शी पॉलीथिन का इस्तेमाल करते हैं। 90 फीसद लौकी और घिया इसी पारदर्शी पॉलीथिन में पैक कर बेचा जाता है। इस पैकिंग में माल खरीदने वाले को माल की क्वालिटी बताने की जरूरत नहीं रहती क्योंकि सब साफ दिख रहा होता है। काफी व्यापारी तो तोरी व ङ्क्षभडी सब्जी की भी इसी तरह की पैकिंग करते हैं। खरीदने वाले को सब्जी का हरा रंग व साफ सुथरा माल का आभास दूर से देखने से ही लग जाता है। एक किसान ने बताया कि अगर माल बोरी में लेकर जाएंगे और मंडी में माल निकाल कर फिर बोरी में ही भरेंगे तो नाजुक सब्जी खराब नहीं होगी। इसलिए पारदर्शी लिफाफा उनके लिए बहुत काम का है।

50 माइक्रोन लिफाफे की जांच की नहीं है सुविधा

चूंकि सरकार ने 50 माइक्रोन या इससे ऊपर के लिफाफे इस्तेमाल करने की छूट दी हुई है। इसकी आड़ में भी धंधा जोरों पर चल रहा है। पॉलीथिन इस्तेमाल करने वाले दुकानदार पूछे जाने पर 50 माइक्रोन की बात सामने लाते हैं। हैरानी की बात यह है कि 50 माइक्रोन का लिफाफा है या नहीं, इसकी जांच करने वाला कोई नहीं। पर्यावरण के संरक्षण के लिए कई एजेंसियां काम कर रही हैं मगर उनके पास ऐसी सुविधा नहीं कि वे लिफाफों की जांच कर सकें। नियमों के मुताबिक 50 माइक्रोन से अधिक लिफाफों पर निर्माता की मुहर होती है, लेकिन प्रतिबंधित लिफाफे जो 50 माइक्रोन से कम होते हैं, उन पर कोई स्टैंप नहीं होता। यह लिफाफा काफी महीन होता है और पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है।


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