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जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35-ए पर राजनीतिक बवाल

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35-ए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश के तहत 14 मई, 1954 को लागू किया था।

By Sachin MishraEdited By: Published: Wed, 15 Aug 2018 05:15 PM (IST)Updated: Wed, 15 Aug 2018 08:52 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35-ए पर राजनीतिक बवाल

अभिमन्यु शर्मा। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 35-ए पर सुनवाई बेशक 27 अगस्त तक स्थगित कर दी है पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। कश्मीर केंद्रीत राजनीतिक दल एवं अलगाववादी मुद्दे को तूल देने में लगे हुए हैं। सर्वोच्च न्यायालय में अगली सुनवाई के दिन अलगाववादियों ने बंद का आह्वान कर कश्मीर में इस मसले पर हर वर्ग से समर्थन जुटाने की मुहिम छेड़ी हुई है। दो दिन पहले ही जम्मू के आरएस पुरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक ने भी अनुच्छेद 35-ए का समर्थन कर कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों के एजेंडे को हवा देने का काम किया। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस पर प्रसन्नता जताई कि भाजपाई विधायक भी अनुच्छेद 35-ए के समर्थन में आ रहे हैं। हालांकि बैकफुट पर आई भाजपा ने राजनीतिक नुकसान की भरपाई के लिए आनन-फानन सफाई दे डाली और इसे उक्त भाजपा विधायक की निजी राय बताया।

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भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35-ए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश के तहत 14 मई, 1954 को लागू किया था। इसके तहत जम्मू-कश्मीर सरकार को यह अधिकार दिए गए कि 14 मई, 1944 से पहले राज्य में रहने वाले या इसके बाद जम्मू-कश्मीर में दाखिल होने वाले को नागरिकता का अधिकार दे या नहीं। इस अनुच्छेद में जम्मू कश्मीर के नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक अधिकारों का भी विशेष प्रावधान है। जम्मू-कश्मीर राज्य की कोई लड़की अगर राज्य से बाहर शादी करती है तो इस अनुच्छेद के तहत प्राप्त सभी अधिकारों से वंचित हो जाती है। यह अनुच्छेद पहली बार उस समय चर्चा में आया जब साल 1979 में राजकीय मेडिकल कॉलेज, जम्मू में नियुक्त डॉ. सुशीला साहनी ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में एक डॉक्टर की नियुक्ति को चुनौती दी थी। उक्त डॉक्टर को साहनी के स्थान पर मेडिकल कालेज के स्त्री रोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर नियळ्क्त किया गया था।

डॉ. साहनी ने नियुक्ति को इस आधार पर न्यायालय में चुनौती दी कि उक्त महिला डॉक्टर की शादी राज्य से बाहर रहने वाले व्यक्ति से हुई है। न्यायालय ने उस महिला डॉक्टर की नियुक्ति को इसी आधार पर रद्द कर दिया था। इस फैसले को राज्य उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। करीब 23 वर्ष बाद 2002 में उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में जम्मू-कश्मीर से बाहर शादी करने वाली राज्य की किसी भी महिला को नागरिकता का पूरा अधिकार दिया। परंतु अनुच्छेद 35-ए पर विवाद अभी भी जारी है। इसे राज्य के कई संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। राज्य प्रशासन ने भी सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर मामले की सुनवाई को लोकप्रिय सरकार के गठन तक स्थगित करने का आग्रह किया है। अनुच्छेद 35-ए एक संवैधानिक प्रावधान या कानूनी समस्या तक ही सीमित नहीं बल्कि अब यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है।

प्रत्येक राजनीतिक दल यह जानता है कि जम्मू-कश्मीर में सत्ता की कुंजी मुस्लिम मतदाताओं के हाथ में है। कश्मीर के अलावा जम्मू संभाग में भी कई विधानसभा सीटों का फैसला भी मुस्लिम मतदाता ही करते हैं। क्षेत्रीय दल नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की राजनीति पूरी तरह कश्मीर केंद्रित है। उनका राजनीतिक एजेंडा भी स्वायत्तता और सेल्फ रूल पर आधारित है। इन दोनों का अनुच्छेद 35-ए पर विरोध भी इसी एजेंडे का हिस्सा है। कांग्रेस इस मसले को पूरी तरह न्यायालय पर छोड़ कर विवाद से बचने का प्रयास कर रही है। हालांकि पीडीपी छोड़ कांग्रेस में आए तारिक हमीद और नेशनल कांफ्रेंस से कांग्रेस में शामिल होने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रो सैफुदीन सोज खुलेआम नेकां, पीडीपी और अलगाववादियों की तरह ही इस मसले पर बयानबाजी कर कांग्रेस के लिए सिरदर्द जरूर बढ़ाते हैं। 35-ए पर भाजपा का रवैया धारा 370 की तरह ही है।

2015 से जून 2018 तक सत्ता में रहते हुए भाजपा ने कभी स्थानीय स्तर पर धारा 370 और अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार के लिए जो एजेंडा ऑफ एलांयस बना था, उसमें भाजपा ने राज्य की विशिष्ट पहचान बनाए रखने वाली धारा 370 और अनुच्छेद 35-ए पर पर यथास्थिति बनाए रखने की सहमति दी थी। भाजपा भी अच्छी तरह जानती है कि वह जम्मू कश्मीर में अपने बूते कभी सरकार नहीं बना सकती और 35-ए, जो एक वर्ग विशेष के हितों को ही पोषित करती है, खिलाफ जाएगी तो सत्ता में दोबारा लौटने की उसकी चाहत शायद ही पूरी हो। इसीलिए वह भी राष्ट्रीय और राज्य की सियासत के गणित को भांपते हुए मामले पर सियासी बयानबाजी जारी रखते हुए कोई भी अंतिम फैसला न्यायालय पर ही छोड़ेगी। परंतु पैंथर्स पार्टी और कई संगठन, जिनका ज्यादातर आधार जम्मू में ही है, इस अनुच्छेद को संविधान से हटाने के लिए खुलकर आवाज बुलंद कर रहे हैं। इसलिए निकट भविष्य में भी अनुच्छेद 35-ए पर राजनीतिक बवाल होने की पूरी संभावना है।

संपादक, जम्मू-कश्मीर।


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