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Pulwama Terror Attack: हमला भले जैश ने किया पर राह दिखाई सियासत ने

हमले की आशंका तब से बनी हुई थी जब से वादी में हालात सुधरने का संकेत देने के लिए सुरक्षाबलों के काफिले के मूवमेंट के समय नागरिक वाहनों को रोकने की डिल को बंद कर दिया गया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 12:22 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 12:22 PM (IST)
Pulwama Terror Attack: हमला भले जैश ने किया पर राह दिखाई सियासत ने
Pulwama Terror Attack: हमला भले जैश ने किया पर राह दिखाई सियासत ने

जम्मू, नवीन नवाज। भले ही यह हमला पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने किया हो, लेकिन उन्हें राह दिखाई है घाटी के सियासी दलों ने। अब यही दल घडिय़ाली आंसू बहा कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन जब सुरक्षा बल कार्रवाई करते तो यही सबसे पहले हंगामा बरपाते और सियासत चमकाते आए हैं।

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इस तरह के हमले की आशंका तब से बनी हुई थी जब से वादी में हालात सुधरने का संकेत देने के लिए सुरक्षाबलों के काफिले के मूवमेंट के समय नागरिक वाहनों को रोकने की डिल को बंद कर दिया गया। यह सियासत वर्ष 2003 के दौरान शुरू हुई। तत्कालीन राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने लोगों को राहत देने के नाम पर नियमों में यह ढील दी। सुरक्षा एजेंसियों ने उस समय इस फैसले पर आपत्ति जाहिर की थी और कहा था कि इससे उनकी सुरक्षा का संकट पैदा होगा। लेकिन सियासतदानों ने तर्क दिया कि सुरक्षाबलों के काफिले से अकसर जाम लग जाता है और आम नागरिक को परेशानी उठानी पड़ती है।

तब नियम बनाया कि बेशक नागरिकों के वाहन को सुरक्षाबलों के काफिले में दाखिल न होने दिया जाए, लेकिन वह काफिले के आगे या पीछे चल सकेंगे। उसके बाद सुरक्षाबलों पर ग्रेनेड फेंकने व फायरिंग की घटनाएं बढऩे लगीं। सुरक्षाबलों ने अपने वाहनों की खिड़कियों और खुले हिस्से पर लोहे की जाली लगाना शुरू कर दी।

तय की जाए जवाबदेही : कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ सलीम रेशी ने कहा हालात सामान्य दिखाने और वाहवाही लूटने के लिए सिक्योरिटी डिटेल व डिल में ढील देना सही नहीं होता। सियासी लोगों की मजबूरी सभी समझ सकते हैं, लेकिन ऐसे सुझावों पर अमल की अनुमति देने वाले सुरक्षाधिकारियों की क्या मजबूरी होगी, यह वही जानते हैं। सुरक्षाबलों के काफिले में आम लोगों के वाहनों के घुसने की इजाजत देने वालों ने क्या सोच कर यह फैसला लिया, उनसे पूछना चाहिए।

आतंकी गोलियां बरसाते रहे निहत्थे थे जवान

जून 2013 में वरिष्ठ कमांडरों के फैसले की कीमत श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र हैदरपोरा मे एक दर्जन जवानों ने चुकाई। लश्कर के आतंकियों ने हमला किया, लेकिन जवानों के पास हथियार ही नहीं थे खुद का बचाव करने के लिए। इस घटना की जांच हुई तो फिर आदेश आया कि आगे से हाईवे पर गुजरने वाले सुरक्षाबलों के काफिले में एक या दो जवानों के पास हथियार रहेंगे।

भारी पड़े नियमों में बदलाव

राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पहले सुरक्षाबलों का काफिला गुजरने के तीन से चार मिनट बाद ही आम वाहनों को छोड़ा जाता था। आम वाहनों को काफिले से एक निश्चित दूरी बनानी होती थी, लेकिन सियासत के चलते जवानों की इस सुरक्षा को शिथिल करना पड़ा। सुरक्षाबलों के काफिले की मूवमेंट को लेकर वादी में सुनियोजित तरीके से आवाज उठती रही। हाईवे पर काफिले की आवाजाही बंद करने की मांग की जाने लगी। तर्क दिया गया कि मूवमेंट के दौरान सुरक्षाबलों के हाथ में हथियार रहता था, काफिले के आगे और पीछे चलने वाले वाहन में बैठे सुरक्षाकर्मीं सीटी बजाते व लाठियां लहराते हुए नागरिक वाहनों को पीछे करते थे। इससे पर्यटकों और आम लोगों पर नकारात्मक असर पड़ता है। तब निर्णय हुआ कि जो जवान छुट्टी से आ रहे या जा रहे हों, अपने साथ हथियार न रखें। उनके काफिले के आगे पीछे एस्कार्ट वाहन के जवान सीटी नहीं बजाएं, लाठी का इस्तेमाल न करें। नागरिकों व सुरक्षाबलों के वाहन साथ चलें। नागरिक वाहनों को ओवरटेक करने से न रोका जाए। वरिष्ठ सैन्य व सुरक्षाधिकारियों ने अमल करने का फैसला किया।


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