यहां अमृत घड़ा, शेर के पंजों के निशान करते हैं आकर्षित, गुफा में माता के पांच रूपों के हाेते हैं दर्शन
रामनगर के पिंगर गांव में स्थित माता की यह गुफा बाहर से बहुत ही छोटी दिखती है। इसमें प्रवेश के लिए लेट कर जाना पड़ता है। परंतु भीतर इसमें तीन सौ से अधिक श्रद्धालु आ सकते हैं।
जम्मू, रोहित जंडियाल। जम्मू-कश्मीर धार्मिक स्थानों के लिए प्रसिद्ध है। यहां की कई यात्राएं ऐसी हैं जहां पर हर साल लाखों लोग आकर माथा टेकते हैं। इन्हीं में से एक पिंगला माता की यात्रा है। ऊधमपुर जिले में स्थित यह यात्रा लगातार प्रसिद्धि हासिल कर रही है। माता की पवित्र गुफा के भीतर प्राकृतिक घड़ा है, जिसे अमृत घड़ा कहा जाता है। मान्यता है कि इस घडे़ में माता कन्याओं के लिए खाना पकाती थी। गुफा के बाहर शेर के पंजे के निशान हर श्रद्धालु को यहां पर आकर्षित करते हैं। माता का यह स्थान ऊधमपुर-रामनगर मार्ग पर कोघ नामक गांव से आगे पैदल यात्रा कर पिंगर गांव में स्थित है। बाहर से माता की यह गुफा बहुत ही छोटी दिखती है। इसमें प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को लेट कर जाना पड़ता है। परंतु भीतर से गुफा बहुत बड़ी है। इसमें एक साथ तीन सौ से अधिक श्रद्धालु आ सकते हैं।
छह किलोमीटर की पैदल यात्रा सीधे पहाड़ों पर चढ़ने के कारण कठिन हैं। परंतु यात्रा मार्ग पर प्राकृतिक नजारे श्रद्धालुओं का उत्साह बढ़ाने का काम करते हैं। डेढ़ से दो घंटे पैदल चलने के बाद श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंचते हैं। गुफा के भीतर माता पिंड़ियों के रूप में विराजमान है। यह एक ऐसी गुफा है जहां पर माता के पांच रूप एक साथ विराजमान है।
यात्रा से जुड़ी यह है कथा
पिंगला माता गुफा के साथ कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। सबसे प्रचलित कथा के अनुसार पिंगर गांव के बच्चे जानवरों को चराने के लिए जंगल में ले जाते थे। वहां पर एक कन्या उन्हें खाना बनाकर रोज खिलाती थी। कन्या ने उन्हें यह बात घर में बताने से मना किया था। रोज घर में जब बच्चे खाना नहीं खाते थे तो इससे अभिभावक परेशान हो गए। एक दिन उन्होंने बच्चों का पीछा किया। कुछ समय बाद देखा कि एक कन्या इन बच्चों को खाना खिला रही है। जैसे ही कन्या की नजर अभिभावकों पर पड़ी, वह गुफा में चली गई। वहां से वह गायब हो गई। एक अन्य कथा के अनुसार गांव में कुछ शिकारियों ने देखा कि एक शेर गुफा के भीतर जा रहा है। शिकारियों ने गुफा के द्वार पर लकड़ियां जला दी। इससे शेर गुफा के एक पत्थर को फाड़ कर बाहर चला गया। यह देख शिकारी हैरान हो गए। वे गुफा के भीतर गए। उन्हें वहां पर माता के दर्शन हुए। आज भी उस जगह से गुफा में रोशनी आती है जहां से शेर बाहर गया था। यही नहीं गुफा के बाहर शेर के पांव के निशान भी हैं।
घड़े में गिरता है जल
माता की पवित्र गुफा में बना प्राकृतिक घड़ा हर किसी को चकित कर देता है। चट्टान के ऊपर बनी पिंडियों से जल सीधे घड़े में जाता है। इसी घड़े से जल को श्रद्धालुओं में चरणामृत के रूप में दिया जाता है। इस घड़े को लोग अमृत घड़ा भी कहते हैं।
31 साल से चल रही यात्रा
इस पवित्र स्थान पर पहले बहुत कम लोग जाते थे। परंतु 31 साल पहले रामनगर के समाज सेवी स्व. ओपी जंडियाल ने अपने कुछ साथियों के साथ यहां पर अखंड ज्योति यात्रा शुरू की थी। यह यात्रा देश में शहीद होने वाले जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए होती है। तब से इस स्थान पर हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु राज्य के विभिन्न भागों से दर्शनों के लिए आते हैं। यात्रा के आयोजक विनय जंडियाल ने बताया कि हर साल शारदीय नवरात्र में यहां यात्रा आयोजित की जाती है। नवरात्र में लोगों के ठहरने और खाने का पूरा प्रबंध कमेटी करती है।
ऐसे आ सकते हैं यात्रा में
इस स्थान पर जाने के लिए जम्मू से बस या फिर निजी गाड़ी से कोई भी श्रद्धालु जा सकता है। जम्मू से 87 किलोमीटर दूर आधार शिविर कोघ आता है। यह ऊधमपुर-रामनगर मार्ग पर स्थित हैं। वहां से श्रद्धालु पैदल माता के दरबार में जा सकते हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए वहां पर तीन सरायों का निर्माण किया गया है। माता के दरबार तक वाहनों के लिए मार्ग भी बनाया गया है। परंतु अभी यह कच्चा है।