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Jammu: कुष्ठ आश्रम में रहने वाले लोगो ने उपराज्यपाल का ध्यान खस्ताहाल आश्रम की ओर दिलाया

करीम का कहना है कि 4 लाख रुपयों में 154 लोगों की रोटी राशन कपड़े दवाईयां बच्चों की शिक्षा बड़ी मुश्किल से होती है। कुष्ट रोग से पीड़ितों के 20 के करीब बच्चे स्कूल भी जाते हैं उनकी स्कूल फीस भर पाना भी मुश्किल हो जाता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 04:15 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 04:17 PM (IST)
Jammu: कुष्ठ आश्रम में रहने वाले लोगो ने उपराज्यपाल का ध्यान खस्ताहाल आश्रम की ओर दिलाया
ऐसे में रोगियों को बाजार से ही दवाईयों खरीदनी पड़ती हैं।

जम्मू, जागरण संवाददाता: शहर के साथ लगते भगवती नगर में रहने वाले कुष्ठ रोगियों का घरों की जर्जर हालत किसी से छिपी नहीं है। तवी किनारे बने कुष्ठ आश्रम पर सरकार ने नजर ए इनायत नही की है।आश्रम की दीवारों से प्लास्त उखड़ गया है। हर तरफ सीलन की वजह से यहां रहना मुश्किल हो गया है। बेशक सरकार की ओर से आश्रम के लिए वार्षिक धन राशि उपलब्ध करवा दी गई है, लेकिन आश्रम की बुनियादी सहूलतों के लिए प्रशासन की उदासीनता साफ झलकती है।

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आश्रम में करीब 150 से भी अधिक कुष्ठ रोगी रह रहे हैं।यह रोगी बीते कई दशकों से आश्रम में रह रहे है, लेकिन प्रदेश में जितनी भी सरकारें आईं, उन्होंने कुष्ट रोगियों को स्वाबलंबी बनाने के लिए कुछ नही किया।जिस कारण भगवान के यह बंदे मजबूरी में घर घर जाकर दान मांग कर अपना गुजारा जैसे तैसे कर रहे हैं।आश्रम में रहने वाले करीम ने बताया कि इस वर्ष प्रशासन की ओर से 4.5 लाख रुपये रोजमर्रा की जरूरतों जिसमें बच्चों की शिक्षा और रोजमर्रा की अन्य सुविधाओं के लिए है।करीम बचपन से ही कुष्ठ रोग से पीड़ित है, जो आश्रम को चला रहे हैं, का कहना है कि अपने साथियों की जरूरतों को पूरा करवाने के लिए उन्हें अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ रहे है, तब जाकर उनकी थोड़ी बहुत सुनवाई होती है।

करीम का कहना है कि 4 लाख रुपयों में 154 लोगों की रोटी, राशन, कपड़े, दवाईयां, बच्चों की शिक्षा बड़ी मुश्किल से होती है। यह राशि उंट के मुंह में जीरे के समान है। कुष्ट रोग से पीड़ितों के 20 के करीब बच्चे स्कूल भी जाते हैं, उनकी स्कूल फीस भर पाना भी मुश्किल हो जाता है।सरकार की ओर से ऐसी कोई योजना नही है कि इन बच्चों की फीस स्कूल माफ कर दें।करीम का कहना है कि एक वर्ष पहले आश्रम में एक डिस्पेंसरी खोली गई, लेकिन डिस्पेंसरी में एक भी डाक्टर नही है। महीनें में एक या दो बार ही डाक्टर इस डिस्पेंसरी में मरीजों के इलाज के लिए आता है।कुछ रोगियों को दवाईयों की जरूरत होती है, वह स्वास्थ्य विभाग के पास होती नहीं हैं।

ऐसे में रोगियों को बाजार से ही दवाईयों खरीदनी पड़ती हैं।समाज कल्याण विभाग से मिलने वाली राशि से 150 के करीब रोगियों के पालने उनके इलाज के लिए काफी कम हैं।आश्रम के साथ पार्क बनाने के लिए चिन्हित जमींन पर पार्क तक नही बन पाया है। यह बच्चों के लिए दूर का सपना बन कर रह गया है। कुष्ठ रोगी आसपास के मोहल्लों में जाकर धन राशि इक्ट्ठी करने को मजबूर हे। उन्होंने उम्मीद जताई कि उप राज्यपाल प्रशासन उनकी सुनेंगे और उनके कल्याण के लिए धनराशि को बढ़ाएंगे।कई लोग आश्रम में दान देते हैं जिससे कुछ जरूरतें पूरी होती है, लेकिन यह पर्याप्त नही होती। 


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