Jammu Kashmir PDP: अपना अस्तित्व बचाने के लिए पीडीपी ने ले रही मजहब और जमात की शरण
पुनर्गठन अधिनियम लागू होनेे के बाद पीडीपी में विभाजन हो गया। उसके अधिकांश नेताओं ने पूर्व वित्तमंत्री सैय्यद अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी का गठन कर लिया।
श्रीनगर, नवीन नवाज। अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए फिर सक्रिय हो रही पीपुल्स डेमाेक्रेटिक पार्टी ने एक बार फिर मजहब और अलगाववाद का सहारा लेना शुरु कर दिया है। इसका संकेत पीडीपी अध्यक्षा और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने हिरासत में लिए गए सभी मजहबी नेताओं की तत्काल रिहाई पर जोर देकर किया है। उल्लेखनीय है कि 1999 में गठित पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने वादी में सुरक्षाबलों की कथित ज्यादतियों और अलगाववादी विचारधारा को सेल्फ रुल का टच देने व इस्लाम के नाम पर लोगाें को अपने साथ जाेड़कर ही सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी थी। महबूबा मुफ्ती ने 1999 से लेकर 2002 तक वादी में हरेक उस गांव, मोहल्ले का दौरा किया था जहां सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में किसी आतंकी की माैत हुई थी।
पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू किए जाने के मद्देनजर प्रशासन ने एहतियात के तौर पर जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए गैर भाजपा मुख्यधारा के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को हिरासत में लिया था। इसी क्रम में अलगाववादी संगठनों के विभिन्न नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी हिरासत में लिया गया। इसके अलावा प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के भी सभी प्रमुख नेता व कार्यकर्ता अपनी गैर कानूनी गतिविधियां के चलते पकड़े गए हैं। पुनर्गठन अधिनियम लागू होनेे के बाद पीडीपी में विभाजन हो गया। उसके अधिकांश नेताओं ने पूर्व वित्तमंत्री सैय्यद अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी का गठन कर लिया। मौजूदा परिस्थितियों में पीएसए के तहत बंद पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुुफ्ती के साथ अब्दुल रहमान वीरी सरीखे चंद ही नेता रह गए हैं। हालांकि मुजफ्फर हुसैन बेग इस समय पीडीपी क संरक्षक हैं, लेकिन वह संगठन को काेई नयी दिशा देने में फिलहाल समर्थ नजर नहीं आते। इसके अलावा महबूबा मुफ्ती के साथ उनकी नाराजगी भी जगजाहिर है।
इल्तिजा संभाल रही पार्टी की कमान: पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ही एक तरह से अपनी मां की तरफ से पार्टी की कमान संभाल रही हैं। वही सभी नीतिगत मुद्दों पर अपनी मां के ट्वीटर हैंडल पर ट्वीट के जरिए पीडीपी के पक्ष को रखने के साथ-साथ स्थानीय व राष्ट्रीय सियासत में अपनी उपस्थिति जताने का प्रयास करते हुए अपने कैडर को संभालने का प्रयास कर रही हैं। इल्तिजा ने कश्मीर में हिरासत में लिए गए सभी मजहबी नेताओं की रिहाई पर जोर दिया है। उसने कहा कि एक बंदी के भाई द्वारा भेजी गई सूची के आधार पर कहा जा सकता है कि इनमें से अधिकांश को अगस्त 2019 के दौरान या उसके बाद अवैध रुप से ही हिरासत में लिया गया है। इनमें अधिकतर मौलवी, उलेमा और इस्लामिक विद्वान हैं। उसने सवाल किया है कि क्या नए भारत में मौलवी होना काेई दंडात्मक अपराध है? उन्हें रिहा क्यों नहीं किया जाता। जम्मू-कश्मीर से बाहर जेलों में ले जाए गए बहुत से बंदियों के परिजनों ने मुझ से संपर्क किया है।
इल्तिजा ने सोच समझकर उठाई मौलवी-उलेमाओं की रिहाई की मांग: पीडीपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इल्तिजा का मौलवी और उलेमाओं का नाम लेना महज संयोग नहीं है। उन्होंने बहुत साेच समझकर ही यह मांग उठायी है। उनके मुताबिक इल्तिजा ही इस समय पर्दे के पीछे बैठ पार्टी की गतिविधियों को चला रही है। उनके इशारे पर ही बीते दिनों पीडीपी कार्यकर्ताओं ने एक रैली निकालने का प्रयास किया था। यही नहीं इसके बाद पीडीपी कार्यकारिणी की बैठक बुलाने और फिर पीडीपी के युवा नेताओं की बैठक के आयाेजन के पीछे भी वहीं हैं। इल्तिजा ने मौलवियों और उलेमाओं व इस्लामिक विद्वानों का नाम सिर्फ और सिर्फ कश्मीर में अपने घटते जनाधार को बचाने के लिए लिया है।
प्रतिबंधित जमातों-आतंकी संगठनों से जुड़े हैं अधिकतर : हिरासत में लिए अधिकांश मौलवी, उलेमा औेर तथाकथित इस्लामिक विद्वानों का संबंध प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी से है या फिर वे किसी न किसी आतंकी संगठन या अलगाववादी संगठन से जुड़े हुए हैं। इनमें से अधिकांश का संबंध दक्षिण कश्मीर सेे ही है। सभी अच्छी तरह जानते हैं कि जमात-ए-इस्लामी का दक्षिण कश्मीर के चारों जिलों पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग और कुलगाम में अच्छा खासा प्रभाव है। कश्मीर में सभी को पता है कि इन चार जिलों के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में जमात से जुड़े लोगों ने पीडीपी को वोट दिया है। इसके अलावा उत्तरी कश्मीर और सेंट्रल कश्मीर में भी अलगाववादियों और जमात का प्रभाव है। वर्ष 2002, 2008 या फिर 2014 के विधानसभा चुनाव हों, पीडीपी को उन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा वोट मिले जहां अलगाववादियों, आतंकियों और जमात-ए-इस्लामी का प्रभाव सबसे ज्यादा बताया जाता है।
भाजपा के साथ गठजोड़ से खुश नहीं थे जमात के लोग: भाजपा के साथ पीडीपी ने गठजोड़ किया था तो उस समय जमात की पृष्ठभूमि वाले पीडीपी के कई नेताओं व कार्यकर्ताओं ने अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। इस समय जमात और अलगाववादी खेमा भी पीडीपी की तरह अत्यंत दबाव में हैं। जमात और अलगाववादियो को मुख्यधारा की राजनीति में कोई एेसा चाहिए जो उनका पक्ष ले, दूसरी तरफ पीडीपी को अपना अस्तित्व बचाने के लिए वोटर चाहिए, लोग चाहिए, जो यही संगठन उसे इस समय दे सकते हैं। इसलिए इल्तिजा ने अपनी मां के शुरुआती राजनीतिक सफर के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए मजहबी नेताओं, मौलवियों की रिहाई की मांग करते हुए इस्लाम का नाम लिया है।