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Jammu Kashmir : विभाजन की त्रासदी पार कर परिश्रम से बने स्वावलंबी, अपना कारोबार खड़ा कर दूसरों को दिया रोजगार

पश्चिमी पाकिस्तान से आने के कारण जम्मू-कश्मीर मेें इनको नागरिक नहीं माना गया और पश्चिमी पाकिस्तानी रिफ्यूजी का नाम दिया गया। चूंकि जम्मू-कश्मीर में तब अनुच्छेद 370 काबिज था। इसलिए इस परिवार को कठिन दौर से गुजरना पड़ा।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 01:16 PM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 01:16 PM (IST)
शक्ति कुमार ने कभी हिम्मत नहीं हारी।

जम्मू, जागरण संवाददाता : 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ लेकिन इसी के साथ देश विभाजन के दौर में कई परिवार बुरी तरह से बिखर गए। पश्चिमी पाकिस्तान से शक्ति कुमार के पिता ठूठा राम व दादा आलम राम को भी अपने परिवार के साथ सियालकोट जिले के गांव खानेपाऊ से जम्मू के मढ़ ब्लाक के चट्ठा गुजरा गांव की ओर आना पड़ा। धन दौलत, जमीन जायदाद सब पाकिस्तान में छूट गया। लेकिन जम्मू-कश्मीर में आते ही इस परिवार को कुछ नहीं मिला।

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पश्चिमी पाकिस्तान से आने के कारण जम्मू-कश्मीर मेें इनको नागरिक नहीं माना गया और पश्चिमी पाकिस्तानी रिफ्यूजी का नाम दिया गया। चूंकि जम्मू-कश्मीर में तब अनुच्छेद 370 काबिज था। इसलिए इस परिवार को कठिन दौर से गुजरना पड़ा। जम्मू-कश्मीर की नागरिकता नही होने के कारण तमाम सरकारी सुविधाओं से इनको हाथ धोना पड़ा। समय के आगे बढ़ते चक्र में शक्ति कुमार अब जवान हो गए। होश संभालते ही पाया कि पुरखों की यहां कोई जमीन नही। हालांकि उस दौर में जमीनें बहुत सस्ती थी, मगर नागरिकता नहीं होने के कारण वे जमीन नहीं खरीद सकते थे। शक्ति कुमार ने बड़ी मशक्कत से स्नातक की शिक्षा हासिल की लेकिन उनको जम्मू-कश्मीर राज्य की नौकरी लेने का अधिकार नही था।

स्कूल का नही हो पाया पंजीकरण : ऐसे में शक्ति कुमार ने सोचा कि स्कूल खोलकर ही अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ किया जाए। तब 1998 में उन्होंने दीपक शाइनिंग अकेडमी स्कूल खोला मगर बाद में उसका पंजीकरण इसलिए नही हो पाया क्योंकि शक्ति कुमार के पास स्टेट सब्जेक्ट नही था। आखिर शुरू किया गया स्कूल उसको बंद करना पड़ा। इससे उनको बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।

कंप्यूटर सेंटर से युवाओं को बना रहे हुनरमंद : शक्ति कुमार ने कभी हिम्मत नहीं हारी। अपने आप को व्यस्त रखने के लिए वह युवा गतिविधियों को आगे बढ़ाने लगे। अपने गांव के युवाओं का क्लब बनाकर समाज सेवा में भी वह अग्रणी रहे। 1996 में उनको केंद्र सरकार से युवा पुरस्कार मिला और युवा गतिविधियों को आगे बढ़ाने व समाज सेवा के लिए भारत सरकार ने 2000 में राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से सम्मानित किया। वहीं दूसरी ओर उन्होंने युवाओं को जोड़ते हुए वोकेशनल व कंप्यूटर कोर्स के बारे में प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया। मढ़ में उनके द्वारा खोला गया यूथ डेवलपमेंट सेंटर आज यहां पर एक प्रसिद्ध संस्थान बन चुका है। उनके सेंटर में अभी 5 कर्मचारी काम कर रहे हैं। 2009 में खोले गए इस संस्थान में सैंकड़ों युवा यहां से प्रशिक्षण पाकर कहीं न कहीं अपना काम धंधा चला रहे हैं। इस यूथ डेवलपमेंट सेंटर की दूसरे जिलों में शाखाएं खोलने की भी तैयारी चल रही है। उनकी पत्नी कंचन बाला इस कारोबार के विस्तार में उनका पूरा साथ दे रही है।

दूध के कारोबार में भी पैठ : चट्ठा गुजरा क्षेत्र के लोगों को साथ लेकर उन्होंने चट्ठा गुजरा मिल्क प्रोडयूसर लि. का गठन कुछ वर्ष पहले किया। आज क्षेत्र का दूध का कारोबार इसी सोसायटी के माध्यम से हो रहा है और क्षेत्र का दूध नामी कंपनियां खरीदती है। दूध की खरीद के लिए केंद्र भी बनाया गया है। यहां पर शक्ति की नगरानी में ही सारा काम होता है। शक्ति कुमार आज चट्ठा गुजरा मिल्क प्रोडयूसर लिमिटेड के चेयरमैन हैं। 


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