भाजपा को छोड़ जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दलों की राजनीतिक गतिविधियां ठप, नेताओं पर पाबंदियां
चार अगस्त से पहले सभी विपक्षी रानजीतिक दल विधानसभा चुनाव की तैयारियां आधार मजबूत करने के लिए कई गतिविधियां चल रही थी।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बने मौजूदा हालात में भाजपा को छोड़ विपक्षी दलों की राजनीतिक गतिविधियां ठप होकर रह गई है। पूरे सियासी समीकरण ही बदल चुके है। सिर्फ कश्मीर में ही विपक्षी दलों के नेताअों को नजरबंद नहीं किया गया है बल्कि जम्मू संभाग में भी विपक्षी दलों के कई नेता अपने घरों में नजरबंद है। कइयों पर राजनीतिक गतिविधियां न करने की पाबंदियां लगाई गई है। विपक्षी दलों के नेताओं की पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियां पूरी तरह से थम गई है।
सिर्फ भाजपा ही इस समय संगठनात्मक चुनाव की तैयारियों समेत अपनी गतिविधियों को चला रही है। चार अगस्त से पहले सभी विपक्षी रानजीतिक दल विधानसभा चुनाव की तैयारियां, आधार मजबूत करने के लिए कई गतिविधियां चल रही थी। इस समय तो विधानसभा चुनाव की तैयारियों का सवाल नहीं है। केंद्र पर निशाना साधने के लिए पत्रकार वार्ता करने की इजाजत भी किसी को नहीं है अलबत्ता विपक्षी नेताओं के प्रेस बयान ही जारी हो रहे है। भले ही जम्मू में जनजीवन पूरी तरह से सामान्य है लेकिन यहां पर किसी विपक्षी पार्टी को राजनीतिक गतिविधि करने की इजाजत नहीं है।
अभी हाल ही में डोगरा सदर सभा के प्रधान गुलचैन सिंह चाढ़क को पत्रकार वार्ता करने से पहले ही पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हालांकि बाद में चाढ़क ने दावा किया कि वह अनुच्छेद 370 हटाने का स्वागत करने वाले थे लेकिन उनको बात ही नहीं करने दी गई। इससे पहले कांग्रेस के प्रवक्ता रविंद्र शर्मा को कुछ दिन पहले पत्रकार वार्ता से पहले हिरासत में ले लिया गया था। बाद में शर्मा ने दावा किया कि वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर कार्यक्रम की जानकारी देना चाहते थे।
पुलिस ने इन दोनों नेताओं को चेतावनी देकर रिहा कर दिया। इस समय प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान जीए मीर, नेशनल कांफ्रेंस के प्रांतीय प्रधान देवेंद्र सिंह राणा, कांग्रेस के रमण भल्ला, यूथ कांग्रेस के पूर्व प्रधान प्रणव शगोत्रा, पैंथर्स पार्टी के चेयरमैन हर्षदेव सिंह, डोगरा स्वाभिमान पार्टी के चेयरमैन चौधरी लाल सिंह समेत जम्मू संभाग के विभिन्न जिलों में विपक्षी दलों के बीस से अधिक नेता नजरबंद है या उन पर पाबंदियां लगाई गई।
केंद्र शासित राज्य बनाने के बाद सियासी गतिविधियों के समीकरण ही बदल गए
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाने के बाद सियासी गतिविधियों के समीकरण ही बदल गए है। जम्मू कश्मीर और लद्दाख 31 अक्टूबर को केंद्र शासित राज्य बन जाएगे। लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी इसलिए वहां पर सियासी गतिविधियां नहीं होगी। जम्मू कश्मीर केंद्र शासित राज्य मेें विधानसभा तो होगी लेकिन सरकार कब तक चुनाव करवाएंगी, इसकी कोई जानकारी नहीं है। सरकार की प्राथमिकता जम्मू कश्मीर में हालात काे पूरी तरह से सामान्य बनाने की है। इस समय राज्य में मोबाइल इंटरनेट भी बंद है। ऐसे हालात में किसी विपक्षी पार्टी के लिए इस समय राजनीतिक गतिविधियां तेज करना मुनासिब नहीं है। चुनावी राजनीतिक गतिविधियों में तो आरोप प्रत्यारोप लगते है। रैलियां, जनसभाएं होती है। जम्मू कश्मीर केंद्र शासित राज्य में पार्टियां अपनी सियासी गतिविधियों को किस तरह से चलाएगी, इसको लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
आने वाले चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए अनुच्छेद 370 भी एक अहम मुद्दा होगा
भविष्य में जब जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे तो उन चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए अनुच्छेद 370 भी एक अहम मुद्दा होगा। भाजपा एक तरफ यहां पर अनुच्छेद 370 को हटाने की वकालत करते हुए कई फायदें गिनाएगी तो कश्मीर केंद्रित पार्टियां नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी सरकार के फैसले के खिलाफ अपनी राजनीति तेज करेगी। कांग्रेस को रवैया संतुलित होगा। उसे जम्मू और कश्मीर दोनों को ध्यान में रखकर ही अपना पक्ष लोगों के बीच ले जाना होगा।