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Ladakh: हौसले ने सरहद के चरवाहे को बना दिया क्रिकेटर, जानिए बौद्ध भिक्षु दोरजे का क्रिकेटर बनने का सफर

स्कालजांग दोरजे का क्रिकेटर बनने का सफर बेहद रोचक है। जब कारगिल युद्ध हुआ तो दोरजे 10 साल के थे। वह भेड़ चराते थे ऐसे में किसान बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। दोरजे के चाचा वेन भिखु कसापा कर्नाटक के मैसूर में महाबौद्धी सोसायटी से जुड़े हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 09:09 AM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 09:11 AM (IST)
Ladakh: हौसले ने सरहद के चरवाहे को बना दिया क्रिकेटर, जानिए बौद्ध भिक्षु दोरजे का क्रिकेटर बनने का सफर
महाबौद्धी स्कूल के हास्टल में रहने के दौरान दोरजे को क्रिकेट का खेल रोचक लगा।

जम्मू, विवेक सिंह : पूर्वी लद्दाख के चांगथांग के तुकला गांव में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के निकट भेड़ चराने वाले (32) स्कालजांग कल्याण दोरजे अपने हौसले व लगन से लद्दाख में क्रिकेट का सितारा बनकर उभरे हैं। दोरजे जम्मू कश्मीर क्रिकेट टीम की ओर से 20-20 खेलने वाले पहले लद्दाखी खिलाड़ी हैं। दोरजे ने क्रिकेट के मैदान में दमखम दिखाया तो उन्हें अपना मार्गदशक मानकर सैकड़ों लद्दाखी बच्चे भी इस खेल में भविष्य आजमाने की राह पर चल पड़े हैं। दोरजे क्रिकेट से अपना और अन्य लद्दाखी बच्चों का भाग्य बदलने में जुटे हैं।

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लेह से 70 किलोमीटर दूर गांव में रहकर बौद्ध भिक्षु बनने जा रहे दोरजे आज लद्दाख के पहले क्रिकेट खिलाड़ी हैं, जो इस मुकाम पर पहुंचे हैं। वह जम्मू कश्मीर की टीम में बाएं हाथ से गेंदबाज हैं। इसके अलावा उन्होंने स्थानीय क्रिकेट प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन किया है। उनका मानना है कि लेह व कारगिल में मेरे जैसे कई और युवा हैं, जिन्हें सही मार्गदर्शन मिले तो वे भारतीय टीम में खेलकर लद्दाख का नाम रोशन कर सकते हैं।

घर से बौद्ध भिक्षु बनने निकले थे दोरजे : स्कालजांग दोरजे का क्रिकेटर बनने का सफर बेहद रोचक है। जब कारगिल युद्ध हुआ तो दोरजे 10 साल के थे। वह भेड़ चराते थे, ऐसे में किसान बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। दोरजे के चाचा वेन भिखु कसापा, कर्नाटक के मैसूर में महाबौद्धी सोसायटी से जुड़े हैं। अच्छी शिक्षा देने के लिए वह वर्ष 1999 में अपने भतीजे को मैसूर ले गए। वहां महाबौद्धी स्कूल के हास्टल में रहने के दौरान दोरजे को क्रिकेट का खेल रोचक लगा।

खिलाड़ी कम होने पर मेरी जरूरत पड़ी : दोरजे ने कहा कि मेरे दोस्तों को क्रिकेट खेलने का शौक था, लेकिन मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। खेलने के लिए दो टीमों के लिए 22 खिलाडिय़ों की जरूरत पड़ी तो दोस्तों ने खिलाड़ी पूरा करने के लिए मुझे मनाया। भागने में अच्छा था, ऐसे में मैदान में पहुंचने पर गेंदबाजी में भी हाथ आजमाने की कोशिश की। बाएं हाथ से गेंदबाजी की तो विकेट भी मिलने लगे और टीम में मेरी जगह पक्की हो गई। मैसूर के कोच मंजूर अहमद ने दोरजे में छिपी प्रतिभा को निखारा और कोचिंग देना शुरू कर दी। इसके बाद दोरजे ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मंजूर अहमद ने कहा कि दोरजे बेहद प्रतिभावान खिलाड़ी हैं।

बेंगलुरु के खिलाफ 20-20 खेलने का मौका मिला : जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले लद्दाख में क्रिकेट नहीं था। लद्दाख में पोलो, तीरअंदाजी व आइस हाकी खेली जाती है। लद्दाख, कश्मीर संभाग का हिस्सा था और वहां पर क्रिकेट खेल को बढ़ावा देने की दिशा में कुछ नहीं हुआ। इसके बाद जम्मू-कश्मीर व लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश तो बन गए, लेकिन अब भी दोनों प्रदेशों में क्रिकेट पर जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन का ही नियंत्रण है। मौजूदा वर्ष में जनवरी में दोरजे की मेहनत रंग लाई और उन्हें जम्मू कश्मीर की ओर से बेंगलुरु के खिलाफ रणजी में 20-20 डोमेस्टिक क्रिकेट खेलने का मौका मिला। इस मैच में गेंदबाजी कर उन्होंने साबित किया कि अगर उन्हें अच्छी कोचिंग मिले तो वह एक बेहतर गेंदबाज बन सकते हैं।

लद्दाख में क्रिकेट फील्ड बनाना है लक्ष्य : दोरजे ने कहा कि लद्दाख में क्रिकेट का खेल तेजी से मशहूर हो रहा है, लेकिन हमारे पास क्रिकेट का मैदान नहीं है। उन्होंने बताया कि इस समय वह लेह में करगिल के शहीदों की याद में क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं। इस बार रिकार्ड 40 टीमें इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं। दोरजे ने कहा कि अगर उन्हें लद्दाख प्रशासन व जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के सहयोग से क्रिकेट मैदान बनाने के लिए जमीन मिल जाए तो वह लद्दाख के खिलाडिय़ों को भारतीय टीम में खेलने के लिए तैयार कर अपना सपना पूरा करना चाहेंगे।

स्पोर्ट्स कंपनी के प्रबंधक के की भूमिका भी निभाई : लद्दाख के जंस्कार में 20 हजार फीट ऊंची स्टोक कांगड़ी चोटी पर आने वाले पर्वतारोहियों को सहयोग देने के लिए दोरजे ने 2014 में स्पोर्ट्स कंपनी के प्रबंधक के रूप में 16 हजार फीट पर आधार शिविर में पांच साल बिताए हैं। वह वहां पर गर्मियों में लगातार रहकर सुनिश्चत करते थे कि कैंप में आए पर्वतारोहियों को कोई मुश्किल न आए। इस दौरान कई बार पर्वतारोहियों के घायल होने पर उन्हें बचाने के लिए राहत अभियान चलाते थे।

पिता बोले, घर में टीवी आया तो क्रिकेट के बारे में पता चला : स्कालजांग दोरजे के पिता नवांग टकपा पेशे से किसान हैं। वह भेड़ भी पालते हैं और अपने गांव तुकला में खेती करके परिवार का गुजर बसर करते हैं। काम की व्यस्तता के कारण लेह में आना-जाना बहुत कम है। घर में टीवी भी नहीं था, जिससे पिता को पता ही नहीं था कि क्रिकेट का खेल क्या होता है। पिता ने कहा कि जब बेटा खेल में अवार्ड जीतने लगा तो मुझे इस खेल के बारे में कुछ जानकारी मिली। जब बेटा मशहूर हुआ तो मुझे अच्छा लगा कि वह कुछ अच्छा कर रहा है। घर में टीवी आया तो पता चला क्रिकेट क्या है। छोटा बेटा तुंडुप नाम्गयाल सेना की जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में शामिल होकर देश की सेवा कर रहा है।

विराट कोहली को देंगे लद्दाख आने का निमंत्रण : दोरजे का कहना है कि जिंदगी में मौका मिला तो वह क्रिकेट स्टार विराट कोहली को लद्दाख आने का निमंत्रण देंगे। इस समय सैकड़ों लद्दाखी बच्चे क्रिकेट से जुड़े हैं। अगर विराट आएं तो इससे बच्चों को प्रोत्साहन मिलेगा। स्कालजांग युवराज सिंह के भी फैन हैं। इसके साथ वह बल्लेबाज मनीश पांडे को भी अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। उनका कहना है कि 20-20 क्रिकेट में उन्हें देश के कई नामी गिरामी खिलाड़ियों से मिलने का मौका मिला। 

  • 'अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए जरूरी है कि अपनी कमियों को दूर करने के साथ उभरती प्रतिभा को भी क्रिकेट खेल के गुर सिखाए जाएं।' -स्कालजांग कल्याण दोरजे

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