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लोकतंत्र की जीत, आतंक दरकिनार

राज्य ब्यूरो, जम्मू : अलगाववादियों की धमकियों और नेशनल कांफ्रेंस व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पाट

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 06:10 AM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 06:10 AM (IST)
लोकतंत्र की जीत, आतंक दरकिनार

राज्य ब्यूरो, जम्मू : अलगाववादियों की धमकियों और नेशनल कांफ्रेंस व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बहिष्कार के बीच नौ चरणों में पंचायत चुनाव हुए। इस दौरान कुछ चरणों में हुई ¨हसा को छोड़ दिया जाए तो चुनाव आम तौर पर शांतिपूर्वक हुए। पुलिस ने करीब 40 से 50 मामले दर्ज किए। कुछ लोगों को ¨हसा के बाद हिरासत में भी लिया, लेकिन सुरक्षाबलों की कड़ी चौकसी के कारण आतंकी चुनावों में कोई खलल नहीं डाल सके।

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राज्य में पहले चरण के चुनावों में पुंछ जिले के मेंढर में झड़पों को छोड़ दिया जाए तो अन्य सभी जिलों में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए। पुलिस ने मेंढर में झड़पों और पथराव के मामले में प्राथमिकी दर्ज की। दूसरे चरण में कुछ केंद्रों में गड़बड़ी की शिकायतें मिलीं, लेकिन चुनावों में कहीं पर भी ¨हसा की कोई घटना नहीं हुई। तीसरे चरण में डोडा जिले में सबसे अधिक ¨हसा हुई। जिले की गंदोह तहसील के जोड़ा पंचायत में दो ग्रुपों के बीच हुई ¨हसा में सेना से सेवानिवृत्त कैप्टन मोहम्मद हफीज की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हो गए। पुलिस ने शिकायत दर्ज करने के बाद इस मामले की जांच भी की है।

पंचायत चुनाव के सातवें चरण में मतदान व मतगणना के दौरान पुंछ व राजौरी जिलों में झड़पें हुई। पुंछ जिले में ¨हसक झड़पों में 12 लोग घायल हुए थे। इस दौरान पंचायत के तीन वार्डो चार, पांच व छह में मतदान को रद कर दिया गया। राजौरी जिले की बेला पंचायत में भी वोटों की गिनती को लेकर दो पक्षों में झड़प हुई थी। इसी जिले के बुद्धल ब्लॉक की समोट पंचायत में दो वार्डो में बैलेट बदलने की गड़बड़ी पर पंच के चुनाव स्थगित हुए। दोनों वार्डो में चुनाव आठवें चरण में करवाया गया। इसी चरण में मजालता तहसील में भी मारपीट की एक घटना हुई। आठवें चरण में जम्मू के जगटी के धम्मी में ¨हसा देखने को मिली। इसमें चुनाव लड़ने वाली दो ग्रुपों के बीच झड़पें हुई, जिसमें कई लोग घायल भी हुए थे। पुलिस ने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।

पंचायत चुनाव का नौंवा चरण कश्मीर में ही था। इसे सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण माना जा रहा था। हालांकि आतंकियों ने दक्षिण कश्मीर के एक थाने पर हमला कर चार पुलिस कर्मियों को शहीद कर दिया, लेकिन अन्य जगहों पर चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए। कुल मिलाकर पूरे राज्य में ¨हसा की घटनाएं न के बराबर दर्ज हुई हैं। इन चुनावों को राज्य प्रशासन बड़ी चुनौती के रूप में देख रहा था। 40 हजार से अधिक पंच-सरपंचों के लिए हुए चुनावों में सुरक्षा मुहैया करवाना एक चुनौती था, लेकिन इन चुनावों को शांतिपूर्वक संपन्न करवाना निश्चित तौर पर राज्यपाल प्रशासन की एक उपलब्धि है।

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सफलता के नायक बने लोकतंत्र के ये प्रहरी मतदाता और उम्मीदवार :

एक तरफ आतंकियों की जान से मारने की धमकी और अलगाववादियों के बंद व चुनाव बहिष्कार की सियायत। दूसरी तरफ लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले जम्मू कश्मीर के मतदाता और जागरूक उम्मीदवार। मुकाबला कड़ा था। रणभूमि ऐसी कि जान जाने का भी खतरा था। बावजूद इसके मतदाताओं और उम्मीदवारों डटे रहे और विजय पताका फहराकर ही दम लिया। लोकतंत्र बहाल हुआ और आतंकी व अलगाववादी ताकतों को मुंह की खानी पड़ी। सुरक्षाबल :

जम्मू कश्मीर में पंचायत चुनाव के रूप में चुनौती बड़ी थी। 40 हजार से ज्यादा पंच-सरपंच पद के उम्मीदवारों की सुरक्षा यकीनी बनाने के साथ एक सुरक्षापूर्ण महौल देना आसान नहीं था। कई मतदान केंद्र अति संवेदनशील श्रेणी में रखे गए थे। ऐसे में आदेश मिलते ही सुरक्षाबलों ने पूरे जम्मू कश्मीर में मोर्चा संभाल लिया। मारे जाने के डर से आतंकी अपनी माद में ही दुबके रहे और कोई बड़ी वारदात नहीं कर पाए। आखिर में सुरक्षाबलों के जोश, जज्बे व अदम्य साहस की जीत हुई। प्रशासन व चुनाव आयोग :

पंचायत चुनाव को सफलतापूर्ण तरीके से संपन्न करवाना राज्यपाल सत्यपाल मलिक के नेतृत्व में प्रशासन और चुनाव आयोग के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं था। चुनौतियों को मात देने के लिए नौ चरणों में मतदान करवाने की रणनीति बनाई गई। राज्य के सभी 22 जिलों में मतदान करवाने के लिए मौसम, आतंकी धमकियों व अलगाववादी सियासत को देखते हुए अलग-अलग हिस्सों व ब्लॉक में बांटा गया। 17 नवंबर को पहला चरण और 11 दिसंबर को अंतिम चरण के साथ ही पंचायत चुनाव सफलतापूर्ण संपन्न होने पर सभी ने राहत की सांस ली।


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