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जम्मू-कश्मीर में नोटा रहा 50 फीसद प्रत्याशियों पर भारी

NOTA in Jammu and Kashmir. लोकसभा चुनाव 2019 में जम्मू-कश्मीर में नोटा 50 फीसद प्रत्याशियों पर भारी रहा।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 26 May 2019 06:39 PM (IST)Updated: Sun, 26 May 2019 06:39 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर में नोटा रहा 50 फीसद प्रत्याशियों पर भारी

शांतिभूषण शर्मा, जम्मू। भले ही आपको यकीन न हो, लेकिन यह सच है। नोटा का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में लड़ रहे कई मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों से बेहतर रहा है। जम्मू कश्मीर में 21, 724 मतदाताओं ने नोटा पर अपना विश्वास जताया है। कुल 50 फीसद से ज्‍यादा प्रत्याशी नोटा से पिछड़ गए।

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जम्मू में भाजपा, कांग्रेस, पैंथर्स पार्टी व एक निर्दलीय को छोड़कर अन्य का प्रदर्शन नोटा से बदतर रहा। कश्मीर संभाग में तो भाजपा, नेशनल पैंथर्स पार्टी और शिव सेना आदि दलों के प्रत्याशी नोटा के बराबर वोट हासिल करने में नाकामयाब रहे।

लोकसभा चुनाव 2019 में नोटा काफी प्रभावी रहा है। उपर्युक्त में से कोई नहीं यानी नन ऑफ दा ऑल एबव (नोटा)को स्क्रेच वोट यानी सभी को नकारना भी कहा जाता है। इसका असर मतदान के दौरान खूब दिखाई दिया। ईवीएम में मतदान प्रक्रिया के दौरान मतदाताओं को प्रत्याशियों को नकारने का अधिकार भी दिया गया है। इस विकल्प का प्रयोग सबसे पहले 2013 में पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव में किया गया था। बाद में इस व्यवस्था को पूरे देश में लागू किया गया। तभी से यह विकल्प लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में लोगों की सुविधा के लिए उपलब्ध है।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की जम्मू-पुंछ, कठुआ-डोडा-ऊधमपुर, श्रीनगर, बारामूला, अनंतना और और लद्दाख में 79 प्रत्याशियों से चुनाव लड़ा। राज्यभर के कुल 21,724 लोगों ने ईवीएम में नोटा का बटन दबाते हुए चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों में अविश्वास जताया।

राज्य की बारामूला लोकसभा सीट पर सबसे अधिक 8,113 मतदाताओं, ऊधमुपुर में 7,568 तथा सबसे कम लद्दाख में 922 ने नोटा का बटन दबाते हुए प्रत्याशियों पर अविश्वास जताया। चुनावी समर में उतरे कुल 79 उम्मीदवारों में से 45 प्रत्याशियों यानी की पचास फीसद से अधिक को नोटा विकल्प से भी कम वोट हासिल हुए। यह मैदान में उतरे इन दलीय व निर्दनीय प्रत्याशियों के लिए शर्मनाक स्थिति है।

जहां जम्मू-पुंछ लोकसभा क्षेत्र का सवाल है, यहां 2616 मतदाताओं ने 24 उम्मीदवारों में से किसी में भी विश्वास जताने से इनकार कर दिया। वहीं, 15 उम्मीदवारों नोटा पर पड़े वोटोंं से भी कम वोट हासिल हुए। इनमें हिंदुस्तान निर्माण दल के सुशील कुमार (1281 मत ), निर्दलीय सैयद अकीब हुसैन (1723 मत), नवरंग कांग्रेस पार्टी के गुरसागर सिंह (1103 मत), जम्मू-कश्मीर पीर पंजाल अवामी पार्टी के मूहम्मद युनूस (1612 मत) तथा शिव सेना के मनीष साहनी (1192 मत) शामिल हैं।

ऊधमपुर-डोडा लोकसभा सीट पर 7568 लोगों ने मैदान में उतरे प्रत्याशियों को नकारते हुए नोटा का बटन दबाया। यहां 12 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनका प्रदर्शन नोटा से भी बदतर रहा। जिनको नोटा से भी कम वोट मिले उनमें नवरंग कांग्रेस पार्टी के मौहम्मद अयूब(1673 मत), शिव सेना की मीनाक्षी (1660 मत) तथा पांच निर्दलीय शुमार रहे।

श्रीनगर लोकसभा सीट पर 1566 लोगों ने मैदान में उतारे उम्मीदवारों को नकार कर नोटा का विकल्प चुना। मैदान में उतरे 12 में से सात को नोटा से भी कम वोट हासिल हुए। इनमें जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के अब्दुल राशिद गनी (791 मत), जदयू के शौकत हुसैन खान (1250 मत), शिव सेना के अब्दुल खालिक भट (578 मत), राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी के नजीर अहमद लोन (506), मानवाधिकार नेशनल पार्टी के नजीर अहमद सौफी (1507) तथा दो निर्दलीय शामिल हैं।

बारामूला संसदीय सीट पर नोटा का खूब प्रयोग किया गया, यहां सबसे अधिक 8113 लोगों ने नौ उम्मीदवारों को नकारते हुए नोटा का बटन दबाया। जिसमें चार उम्मीदवारों जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और दो निर्दलीयों को नोटा से कम वोट हासिल हुए। पैथर्स पार्टी के पक्ष में 4323 तथा भाजपा के मौहम्मद मकबूल वार के पक्ष में 6081 वोट पड़े।

अनंतनाग लोकसभा सीट पर 937 लोगों ने नोटा के पक्ष में मतदान किया। चुनाव लड़ रहे 18 उम्मीदवारों में से 12 नोटा के बराबर आंकड़ा छू पाने में नाकामयाब रहे। इनमें पैंथर्स पार्टी के नसीर अहमद वानी (589), प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के सुरेंद्र सिंह (217), मानवाधिकार नेशनल पार्टी के संजय कुमार धर (677) शामिल रहे। लद्दाख लोकसभा सीट पर 922 लोगों ने नोटा का बटन दबाया। इनमें से किसी को नोटा से कम वोट प्राप्त नहीं हुए।

चुनाव में अधिकांश उम्मीदवारों का प्रदर्शन नोटा से बदतर रहा। वह भली प्रकार जानते थे कि उनको जनसमर्थन हासिल नहीं है, इसके बावजूद वह चुनाव मैदान में कूद पड़े। इनमें से कई का दावा था कि उनको व्यापक जनसमर्थन प्राप्त है।  

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