Jammu: श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के 12 शहीदों के लिए 13 सालों में नहीं बना कोई स्मारक
कुलदीप वर्मा की इस कुर्बानी और उसके बाद उनके पार्थिव शरीर के साथ हुई हैवानियत को देख पूरा जम्मू उबल पड़ा। कुलदीप को नायक मानकर पूरा जम्मू इस आंदोलन में कूद पड़ा। शासन की परवाह किए बिना लोग सड़कों पर उतर आए और एक के बाद एक शहादत होने लगी।
जम्मू, ललित कुमार: ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा...।’ एक कविता की यह पंक्तियां किसी शहीद के स्मारक को देख कर सकार हो उठती हैं लेकिन यह जम्मू का दुर्भाग्य है कि 13 साल पहले श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन को अपने प्राणों से सींचने वाले 12 शहीदों की याद में आज तक कोई स्मारक नहीं बन पाया। लखनपुर से लेकर बनिहाल तक साठ दिनों तक चले श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के नायक कुलदीप वर्मा की आज शुक्रवार को बरसी है और हर साल की तरह इस साल भी उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले अभी तक तय नहीं कर पाए कि श्रद्धांजलि का कार्यक्रम कहा रखा जाए।
ठीक 13 साल पहले जम्मू श्री अमरनाथ जमीन आंदोलन की आग में झुलस रहा था। कश्मीर में अमरनाथ यात्रा आधार शिविरों के आसपास की जमीन श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन जारी था। श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन उन दिनों जम्मू में चलने वाले आम आंदोलनों की तरह धीमी रफ्तार से चल रहा था लेकिन 23 जुलाई को बिश्नाह के कुलदीप वर्मा ने परेड में चल रही श्री अमरनाथ संघर्ष समिति की क्रमिक भूख हड़ताल के दौरान अपने प्राण आंदोलन के लिए कुर्बान कर दिए।
कुलदीप वर्मा की इस कुर्बानी और उसके बाद उनके पार्थिव शरीर के साथ हुई हैवानियत को देख पूरा जम्मू उबल पड़ा। कुलदीप वर्मा को नायक मानकर पूरा जम्मू इस आंदोलन में कूद पड़ा। शासन की परवाह किए बिना लोग सड़कों पर उतर आए और एक के बाद एक शहादत होने लगी। दो महीने तक चली इस हक और इन्साफ की लड़ाई में बिश्नाह के कुलदीप वर्मा समेत जम्मू के 12 सपूतों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
बढ़ते जनाक्रोश को देखते हुए जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल एनएन वोहरा ने पहली अगस्त 2008 को श्री अमरनाथ संघर्ष समिति से समझौता कर लगभग सभी मांगें मान ली। उस समय यह भी तय हुआ कि आंदोलन में शहीद होने वालों की याद में जम्मू में एक स्मारक बनेगा लेकिन 13 साल बीत जाने के बाद भी यह स्मारक नहीं बन पाया।
इन्होंने पाई थी शहादत: बिश्नाह के कुलदीप वर्मा के बाद मनजीत कुमार, रमेश कुमार, सुनील सिंह, जुगल किशोर, संजीव सिंह संब्याल, सन्नी पादा, नरेंद्र शर्मा, डॉ. बलवंत राज खजूरिया, दीपक कुमार, बोध राज व गिरधारी लाल 2008 के जमीन आंदोलन में शहीद हुए थे जबकि पचास से अधिक लोग आंदोलन में घायल हुए।
- यह सहीं है कि अगर शहीदों की याद में स्मारक बना होता तो हर साल वहां शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित कर पाते। स्मारक न होने के कारण हर साल अलग-अलग स्थानों पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस बार भी हमने भाजपा के कच्ची छावनी कार्यालय में दोपहर बारह बजे श्रद्धांजलि कार्यक्रम रखा है। -शिल्पी वर्मा, शहीद कुलदीप वर्मा की पत्नी
- हम पिछले कई सालों से सरकार से यह विनती करते आ रहे हैं कि हमें शहीदों की याद में स्मारक बनाने के लिए उपयुक्त जगह दी जाए लेकिन किसी ने हमारी मांग पर गौर नहीं किया। हर साल श्रद्धांजलि कार्यक्रम के दौरान यह मांग उठाई जाती है। श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति के पास कुछ पैसे भी है। अगर सरकार हमें उपयुक्त जगह उपलब्ध करा दे तो शहीदों की याद में स्मारक बन सकता है। - पवन कोहली, संयोजक श्री अरमनाथ यात्रा संघर्ष समिति