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Communal Harmony : कुलगाम में मुस्लिमों ने किया बुजुर्ग कश्मीरी राजपूत महिला का अंतिम संस्कार

अंतिम संस्कार के लिए उनके पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सभी जरूरी चीजों का बंदोबस्त किया। उन्होंने शोक संतप्त परिवार को यह अहसास नहीं होने दिया कि वह दूसरे समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और अकेले हैं।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Tue, 07 Dec 2021 05:05 PM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 05:30 PM (IST)
Communal Harmony : कुलगाम में मुस्लिमों ने किया बुजुर्ग कश्मीरी राजपूत महिला का अंतिम संस्कार
परिवार की स्थिति को देखते हुए स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अंतिम संस्कार करने का फैसला किया।

जम्मू, जेएनएन : आतंकवादग्रस्त क्षेत्र दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में सांप्रदायिक सौहार्द्र का नायाब उदाहरण स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पेश किया है। जिले के बेगम गांव में रहने वाली एक बुजुर्ग हिंदू महिला का निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार के लिए उनके पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सभी जरूरी चीजों का बंदोबस्त किया। उन्होंने शोक संतप्त परिवार को यह अहसास नहीं होने दिया कि वह दूसरे समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और अकेले हैं। पड़ोसी मुस्लिम समुदाय के लोगों के सहयोग पर मृतका के बेटे ने कहा कि यहां कश्मीरी पंडित और मुस्लिमों में कोई विभेद नहीं है। सभी समुदायों में शाश्वत बंधन है। एक-दूसरे के दुख-सुख में साथ निभाते रहे हैं।

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कुलगाम जिले के बेगम गांव में जिस 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला लाजवंती देवी का बीमारी के कारण निधन हुआ, वह राजपूत बिरादरी से थीं। परिवार की स्थिति को देखते हुए स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अंतिम संस्कार करने का फैसला किया। स्थानीय अब्दुल रशीद खांडे ने कहा कि उन्होंने मिलजुल कर अंतिम संस्कार में इस्तेमाल जरूरी सामग्री का बंदोबस्त करना शुरू किया और परिवार के साथ मिलकर मृतका का अंतिम संस्कार किया।

अब्दुल रशीद खांडे ने कहा कि यह राजपूत परिवार वर्षों से उनके बीच रहा है। कभी उस परिवार को समाज से अलग नहीं समझा। उन्हें भी अपने परिवार की तरह ही देखता रहा है। हर दुखसुख में उनके साथ रहे। लाजवंती का परिवार भी कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि वह अलग बिरादरी से हैं और वह तनहा महसूस करते हैं। वहीं दूसरी ओर मृतका के बेटे राजिंदर सिंह ने कहा कि कश्मीरी मुसलमान और पंडित सभी समान हैं। दोनों कश्मीरियत की पहचान रहे हैं। दोनों के बिना कश्मीर अधूरा है। यहां सभी समुदायों में एक शाश्वत बंधन है। यही समाज की खूबसूरती है। आज जिस तरह से मुस्लिम समुदाय के लोगों ने लाजवंती के अंतिम संस्कार में भागीदारी निभाई, वह सांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा मिसाल है।


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