यहां संगमरमर की कब्र में दफन हैं मुगल शासक जहांगीर की अंतड़ी व पेट
कश्मीर से दिल्ली आते हुए 1627 ईस्वी में मुगल शासक जहांगीर की मृत्यु बफलियाज में हुई थी।
जेएनएन, जम्मू। मुगल शासक जहांगीर की अंतड़ी व पेट के अन्य हिस्से संगमरमर के चबूतरे पर बनी कब्र में यहां दफन हैं। राजौरी से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बफलियाज के पास स्थित ऐसी ही एक धरोहर है जिसे चिंगस सराय के नाम से जाना जाता है। कश्मीर के लिए मुगल शासकों के असीम प्रेम ने राज्य के उन इलाकों में कई अविस्मरणीय धरोहरें वजूद में लाई, जो उनके आने-जाने के विशेष मार्ग रहे। दिल्ली से कश्मीर जाने के लिए लाहौर से राजौरी होते हुए मुगल शासक कश्मीर जाते थे। इसी रास्ते से कश्मीर से वापस भी आते थे। राजौरी जिले में नूरी छंब, शाहदरा शरीफ, चिंगस सराय ऐसी ही मुगल शासकों के अतीत से जुड़ी धरोहरें हैं, जो अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। कश्मीर से दिल्ली आते हुए 1627 ईस्वी में मुगल शासक जहांगीर की मृत्यु बफलियाज में हुई थी। वहां उनकी बेगम नूरजहां ने राजगद्दी के लिए कश्मकश को रोकने के लिए जहांगीर की मौत का राज बनाए रखने के लिए उनकी अंतड़ी और पेट के हिस्सों को दफन कर उनकी लाश को हाथी पर बैठा कर लाहौर पहुंचाया। वहां उन्हें पूरी तरह दफन कर दिया।
फारसी में चिंगस को अंतड़ियां कहते हैं
जम्मू-राजौरी हाइवे पर स्थित चिंगस फोर्ट अपने साथ इतिहास समेटे हैं। फारसी में चिंगस का अभिप्राय अंतड़ियां से होता है। जिसकी वजह से यह स्थान चिंगस के नाम से मशहूर हो गया। राजौरी के रास्ते से कश्मीर जाने वाले मुगल शासकों के लिए चिंगस सराय एक रुकने का स्थल था। सराय में सौ के करीब कमरे हैं, जिनका जीर्णोद्धार किया गया है। मस्जिद का भी निर्माण किया गया है। 1605 ईस्वी में शुरू की गई मस्जिद 1620 में पूरी हुई थी। मुगल शासक सराय में रुकने पर मस्जिद में नमाज पढ़ा करते थे। राज्य अभिलेखागार, पुरातत्व व संग्रहालय विभाग धरोहर के संरक्षण में हर संभव उपाय कर रहे हैं।
डाक टिकट भी की गई है जारी
डाक विभाग की तरफ से राजौरी की चिंगस मुगल सराय व पुंछ किले पर डाक कवर भाी जारी किए गए हैं। शहजादा सलीम दुनिया के एक मात्र ऐसे राजा हैं, जिनकी दो देशों में मजारे हैं। बफलियाज से महज 7 किलोमीटर दूर एक झरना है। बताते हैं कि जहांगीर की बेगम नूरजहां यहां स्नान करती थी। इसीलिए इसे नूरी छम्ब नाम दिया गया। मुगलों ने यहां कई बागों का निर्माण भी कराया था, जिनमें से कई आज भी गुलजार हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है मुगल रोड
बफलियाज, चांदीमढ़, दुगरम, पीर पंचाल, अलियाहद, सरिया, सुख सरिया होते हुए शोपियां तक रोड के किनारे चीड़, देवदार एवं चिनार के वृक्षों से भरी पहाड़ियां हैं। बफलियाज से 40 किलोमीटर की दूरी पर 11500 फीट ऊंची पीर की गली है। यहां पहाड़ हमेशा बर्फ से ढके रहते हैं। पीर पंचाल की इन पहाड़ियों पर तीन कुदरती झीलें नंदनसर, सुखसर और कटोरीसर है। छोटे-छोटे झरनों के नीचे आता इनका पानी ही पूरे इलाके में हरा रंग भरता है। पीर गली के साथ ही हीरपोरा अभयारण्य है, जिसमें मारखोर बकरी समेत कई दुर्लभ जीवों को अपनी गोद में पाल रखा है।