Corona Fighters: मां के दुलार और दुआ ने रहमत बख्शी, क्वारंटाइन केंद्र में 19 दिन तक संक्रमित बच्चियों के साथ रही मां
जेएलएनएम अस्पताल की डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट तबुस्सम शाह ने बताया कि दोनो बच्चियों को संभालना आसान नहीं था। दवा के साथ दुआ और दुलार ही काम आया।
श्रीनगर, नवीन नवाज: खुदा ने अपनी रहमतों से मेरी झोली भर रखी है। एक पल के लिए मैं उम्मीद हार बैठी थी। 19 दिन तक मेरी हर सुबह नई उम्मीद को जन्म देती जो शाम के अंधेरे के साथ डूब जाती। खुदा ने मुझे पूरा जहान बख्श दिया है। ससुर से संक्रमित होने पर दो मासूम बच्चियों के साथ 19 दिन तक क्वारंटाइन केंद्र में रही एक मां की आंखों में खुशी के आंसू थे। पूरा कश्मीर इस मां की ममता, जज्बे और जुनून को सराहा रहा है।
ग्रीष्मकालीन राजधानी के नटिपोरा की महिला ने कहा कि हमारी ङ्क्षजदगी मजे में चल रही थी। मेरे ससुर 16 मार्च को ही सऊदी अरब मे उमरा से लौटे थे। उनके साथ आई एक महिला में जब कोरोना के संक्रमण का पता चला तो वह भी जांच के लिए अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों ने 24 मार्च को उन्हें कोरोना संक्रमित बताया। हम डर गए। पूरे परिवार की जांच की गई। उस दिन 26 मार्च थी। डॉक्टरों ने मेरी फूल सी दोनों बच्चियों को कोरोना संक्रमित बताया। हमारे ऊपर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। हमें समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। बड़ी बेटी सात व छोटी चार साल की है। दोनों बेटियां दादा से बहुत प्यार करती हैं। दादा भी उन्हें देखे बिना नहीं रह सकते। डॅाक्टरों ने मेरी दोनों बच्चियों को जेएलएनएम अस्पताल में भर्ती कर लिया।
मेरी बच्चियां मेरे बिना कैसे अस्पताल में रह सकती थी, वे रोती थी। मैं उनकी दशा से व्यथित थी। मैंने उन्हें कभी अकेल नहीं छोड़ा था। हमने डॉक्टरों से आग्रह किया कि वे हमें उनके साथ रहने दें। पहले तो डॉक्टर मना करते रहे। फिर उन्होंने मुझे इजाजत दे दी। मैं यही दुआ करती थी कि बस मेरी फूल सी बच्चियां ठीक हो जाएं। मेरी बेटी को कुछ दिन बुखार रहा, लेकिन जल्द ही टूट गया। मैं वहीं क्वारंटाइन वार्ड में प्रोटेक्टिव किट पहन कर रात में रहती। पूरा एहतियात रखना पड़ता था। उनके कपड़े बदलना, साफ-सफाई का ध्यान रखने की जिम्मेदारी मैंने संभाली। मैं दिल पर पत्थर रखकर उनके पास बैठी रहती। उन्हें छूती नहीं थी। छोटी बेटी कई बार घर जाने की जिद करती तो मैं मना कर देती। ससुर सीडी अस्पताल श्रीनगर में भर्ती हैं।
परिवार के अन्य सदस्य क्वारंटाइन केंद्र में हैं। मैं जेएलएनएम अस्पताल में अकेली बच्चियों के पास रही। अस्पताल में डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टाफ सभी सहृदय था। सभी हमारे पास ऐसे रहते जैसे घर में हों। वे हमेशा मेरी हिम्मत बंधाते। मैंने भी मान लिया कि अल्लाह हमारा इम्तिहान ले रहा है। बस सब्र व दुआ काम आया। दोनों बच्चियों का जब दोबारा टेस्ट हुआ तो उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई।
एहतियात बरतें तो यह बीमार कुछ नहीं: मैंने जो सहा, देखा और भुगता है उसके आधार पर मैं यही कहूंगी कि हमें शारीरिक दूरी का ध्यान रखना चाहिए। दो बच्चियों की मां कहती हैं कि डॉक्टरों की बात सुननी चाहिए। अगर एहतियात बरतें तो यह बीमार कुछ नहीं है। अगर परहेज नहीं करेंगे तो यह बहुत खतरनाक साबित हो सकती है। सब्र और परहेज ही सबसे बड़ा हथियार हैं।
दोनो बच्चियों को संभालना आसान नहीं था : जेएलएनएम अस्पताल की डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट तबुस्सम शाह ने बताया कि दोनो बच्चियों को संभालना आसान नहीं था। दवा के साथ दुआ और दुलार ही काम आया। इन बच्चियों को बार बार समझाते थे कि वे जमीन को न छुएं। किसी मेज को जो उनका नहीं है, हाथ न लगाएं। हमने उन्हें खिलौने, ड्राइंग का सामान दिया ताकि वे व्यस्त रहें। उन्हें कहीं नहीं लगे कि उन्हें जबरन रखा है। उनकी मनोस्थिति पर कोई दुष्प्रभाव न हो, इसके लिए सभी आवश्यक कदम उठाए गए। दोनों बच्चियों ने पूरा सहयोग किया। मंगलवार को हमने घर भेज दिया। अब वह अगले 14 दिन तक घर में क्वारंटाइन रहेंगी।