Riyaz Naikoo: बुरहान वानी व मूसा की बगावत के बाद मिली कमान, आतंकी बुलाते थे- 'मास्टर जी'
Who was Riyaz Naikoo उसकी मां जेबा और पिता अस्सदुल्ला की मानें तो उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह आतंकी कमांडर बनेगा। जेबा ने कहा कि मेरा बेटा जहीन था।
श्रीनगर, नवीन नवाज। 30 साल के आतंक के दौर में आतंकी कमांडरों काे मोटिवेटर और पोस्टर ब्वॉय के तौर पर ही जाना जाता था। पर रियाज नाइकू के तौर पर आतंकी कमांडर का खूंखार चेहरा सामने आया। नागरिकों और पुलिसकर्मियों के परिजनों को आतंकी कभी निशाना नहीं बनाते थे, लेकिन दो साल पहले यह रेखा भंग हो गई और पूरा पुलिसतंत्र हिल गया। आतंकियों ने पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के घरों में न सिर्फ तोड़फोड़ की, बल्कि उनके परिजनों को भी अगवा कर लिया और निशाना भी बनाया। दक्षिण कश्मीर में करीब दो दर्जन से ज्यादा पुलिसवालों के परिजनों को अगवा किया गया। आतंक के इस नए मास्टर को आतंकी, मास्टर जी कहकर पुकारते थे। उसने जुलाई 2017 में दक्षिण कश्मीर में हिज्ब की कमान संभाली थी।
छह जून 2012 को वह हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हुआ था और अपनी क्रूरता के कारण जल्द ही टॉप स्थान पर पहुंच गया। रियाज नाइकू खुद भी कई बार अपने साथियों संग पुलिसवालाें के घरों में दाखिल हुआ। ऑडियो और वीडियो संदेश के जरिए पुलिसकर्मियों को धमकियां दी। हालांकि, उसके खौफ फैलाने के तरीकों का वर्दी ने बार-बार करारा जवाब दिया।
पंचायत चुनाव लड़ने पर दी थी आंख में तेजाब डालने की धमकी: कश्मीर मेंं दूध की डेयरी माने जाने वाले पुलवामा के बेगीपोरा गांव में 1985 में पैदा हुए रियाज नाइकू के मां-बाप और उसके दोस्तों ने भी कभी नहीं सोचा था कि वह एक खूंखार आतंकी बनेगा। उसके कई करीबी दोस्त कहते हैं कि हम उस समय हैरान रह गए थे जब उसने पंचायत चुनावों में भाग लेने वालों की आंखों में तेजाब डाल, उन्हें मरने के लिए छोड़ देने का फरमान सुनाया था। उसने जिस तरह से पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों के घरों पर हमले कराए,उससे उसने कश्मीर में नए जिहादियों की पौध को हवा दी। इसके बाद ही सुरक्षाबलों ने उस पर पहले से घोषित इनाम को बढ़ाकर सात लाख से 10 लाख किया था और बाद में यह बढ़कर 12 लाख हो गया।
गणित का शिक्षक यूं बन गया आतंक का चेहरा: उसकी मां जेबा और पिता अस्सदुल्ला की मानें तो उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह आतंकी कमांडर बनेगा। जेबा ने कहा कि मेरा बेटा जहीन था। जब हमने मकान बनाया तो वह मजदूरों की तरह काम में लगा रहा था। अस्सदुल्ला ने कहा कि 12वीं कक्षा में उसने शानदार अंक लिए थे। वह इंजीनियर बनना चाहता था,लेकिन बाद में पता नहीं क्या हुआ उसने ग्रेजुएशन करने का मन बना लिया। वह शुरू से चुप रहता था, वह कुरान पड़ता था। उनहें अफसोस है कि धीरे-धीरे ऐसी राह पर चल पड़ा।
रियाज नाइकू आतंकी बनने से पहले गांव में एक निजी स्कूल में बच्चों को करीब दो साल तक गणित पढ़ाता था। उसके एक मित्र ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त बताया कि वर्ष 2010 में मच्छल मुठभेड़ को लेकर भी प्रदर्शन चल रहे थे। रियाज नायकू ने भी इनमें हिस्सा लिया था। कुछ दिनाें बाद वह पकड़ा गया और वर्ष 2012 की शुरुआत में रिहा हुआ। जब वह बाहर आया तो पूरी तरह बदल चुका था। उसके भीतर जिहादी मानसिकता पूरी तरह कूट-कूट कर भर चुकी थी। उसके बाद वह धीरे-धीरे आतंक के चेहरे के तौर पर जाना जाने लगा।
मूसा के हिजबुल से जाने के बाद नाइकू को मिली कमान: बीते आठ साल से कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा ले रहे एसएसपी रैंक के एक अधिकारी ने बताया कि रियाज नायकू ने हिजबुल के स्थानीय कैडर में जगह बना ली थी। वह पढ़ा-लिखा था। उसे आतंकी मास्टर कहते थे। वह बुरहान वानी के करीबियों में था। जुलाई 2016 में बुरहान की मौत के बाद जाकिर मूसा ने जब कमान संभाली तो उसने कैडर को जोड़ने और नए लड़कों को भर्ती करने में अपनी टीचिंग स्किल का इस्तेमाल किया था। जाकिर मूसा की हिजबुल के पाकिस्तान में बैठे आकाओं से नहीं बनी। इन्हीं मतभेदों के चलते जाकिर ने हिजबुल छोड़ अंसार गजवात उल हिंद (एजीएच) की नींव रखी और हिजबुल ने रियाज नायकू को दक्षिण कश्मीर के अलावा सेंट्रल कश्मीर की कमान सौंप दी। नायकू ने 12वीं की पढ़ाई जाकिर मूसा के गांव नूरपोरा स्थित हायर सेकेंडरी से की थी।
दूसरे संगठनों से भी गतिरोध बना रहा: पुलिस अधिकारियों के मुताबिक रियाज नायकू ने सोशल मीडिया का भी खूब इस्तेमाल किया। उसने कश्मीर में तेजी से पांव पसार रहे एजीएच और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ भी पाकिस्तान में बैठे आकाओं के कहने पर जंग का एलान कर दिया। उसने इस्लाम पर अपनी पकड़ के आधार पर विभिन्न इलाकों में जाकर स्थानीय युवकों को एजीएच और इस्लामिक संगठन की विचारधारा के बजाय हिजबुल की विचारधारा के साथ जुड़ने के लिए तैयार किया। उसके खास साथियों में अल्ताफ डार उफ अल्ताफ कचरू था। कचरू अगस्त 2018 में मारा गया। अल्ताफ कचरू के जरिए ही उसने पुलिसवालों के परिजनों को निशाना बनाने की अपनी साजिश को अंजाम दिया था। इस तरह आतंक के एक युग का अंत हो गया।