जिहादी तत्वों को ठेंगा दिखा जिंदगी की राह आसान बनाई
जब रेस्तरां शुरू हुआ तो पहले लोग यह सोचकर आते थे कि देखें लड़की है, कैसे संभाल रही है। जब आने लगे फिर सभी मेरे प्रयासों को हिम्मत को सराहने लगे।
मी एन यू (मैं और आप) लालचौक से करीब छह-सात किलोमीटर दूर शहर के बाहरी हिस्से बेमिना में स्थित यह रेस्तरां पहली नजर में अन्य रेस्तराओं की तरह ही लगे, लेकिन यह धर्मांध जिहादी तत्वों के फरमानों को ठेंगा दिखाती और पुरातन पंथियों को दरकिनार करती मेहविश जरगर नामक एक युवती के संघर्ष और ख्वाहिशों की दास्तान है।
शुरू में जो भी सुनता था कि लड़की ने रेस्तरां खोला है, हैरान होता था। अब मिसाल देता है। लॉ ग्रेजुएट मेहविश जरगर ने कहा कि मेरे लिए यह रेस्तरां खोलना आसान नहीं होता, अगर मेरी मां और मेरे दोनों भाई बहनों ने साथ नहीं दिया होता। मैंने यह रेस्तरां अपने भाई के दोस्त यासिर अल्ताफ के साथ मिलकर शुरू किया।
श्रीनगर के लाल बाजार में पली-बढ़ी मेहविश ने कहा कि अब जिंदगी कुछ आसान हो गई है, लेकिन हमेशा ऐसी नहीं थी। जब मैं छह-सात साल की थी तो मेरे पिता का कैंसर से देहांत हो गया। घर की माली हालत बिगड़ गई।मां ने बहुत मेहनत की। स्कूल की फीस देना मुश्किल हो रहा था तो उसने हमारा स्कूल बदल दिया और हम मां के एक चचेरे भाई के स्कूल में तीनों भाई- बहन दाखिल हो गए।
जब छठी कक्षा में पहुंची तो जेएनवी गांदरबल में मुझे दाखिला मिल गया।उसने कहा कि मेरी मां चाहती थी कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मैंने कहा कि लॉ करना है। वह मान गई और मैंने केंद्रीय विश्वविद्यालय कश्मीर में दाखिला लिया। बीते साल ही मैंने लॉ की डिग्री हासिल की और कुछ दिनों तक वकालत भी की। मुझे मजा नहीं आया। मैं चाहती थी कि आगे पढ़ने विदेश जाऊं, लेकिन तय नहीं कर पा रही थी।
मां चाहती थी कि मैं अब वकालत ही करूं। मैंने एक दिन अपनी मां से कहा कि क्यों न मैं अपना काम शुरू करूं।उसने हामी भर दी, लेकिन जब मैंने कहा कि रेस्तरां शुरू करना है, कैफे खोलना है तो वह हैरान रह गई। उसने कुछ विरोध किया, लेकिन जब मैंने समझाया तो पहले की तरह पूरा परिवार मेरे साथ खड़ा हो गया। सच कहूं, अगर परिवार का सहयोग मिले तो फिर आपके आलोचक व दुश्मन भी कुछ नहीं कर सकते।
मेहविश ने कहा कि रेस्तरां खोलने पर पहली बार करीब एक साल पहले अक्टूबर 2017 में चर्चा हुई थी। जगह तलाशने, रेस्तरां का नाम तय करने और अन्य चीजें जुटाने के बाद इसी साल फरवरी में मैंने यासिर के साथ मिलकर मी एन यू कैफे शुरू किया।
आपको कश्मीर के हालात पता ही हैं। रेस्तरां कोई लड़की चलाए, इसे लेकर यहां लोग किस तरह से सोच सकते हैं,
उसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है। पहली लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है और खुद को यह समझाना पड़ता है कि आप जो करने जा रहे हैं, क्या आप वह कर सकते हैं या नहीं। एक बार जब आपने खुद को समझा लिया और तय कर लिया तो फिर आपके आलोचक भी आपके लिए मायने नहीं रखते और उनकी जुबान भी धीरे-धीरे बंद हो जाती है।
उसने कहा कि जब रेस्तरां शुरू हुआ तो पहले लोग यह सोचकर आते थे कि देखें लड़की है, कैसे संभाल रही है। जब वह यहां आने लगे तो फिर सभी मेरे प्रयासों को मेरी हिम्मत को सराहने लगे। यह पूछे जाने पर कि उसे रेस्तरां का ही ख्याल क्यों आया तो उसने कहा कि मैं खुद भी अच्छा खाना खाने की शौकीन हूं। इसके अलावा कॉलेज और विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान अक्सर अपने साथियों संग रेस्तराओं में चाय-कॉफी के लिए जाती थी। वहीं पर मुझे लगा कि क्यों न रेस्तरां शुरू किया जाए।
खैर, अब मेरे लिए चुनौती बढ़ गई है। रेस्तरां में आने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। मैंने श्रीनगर के मुनव्वराबाद में भी अपने रेस्तरां की एक शाखा खोली है। कुछ कहते हैं कि मुझे पूरे कश्मीर में रेस्तरां की चेन शुरू करनी चाहिए। एक दिन वैसा ही करूंगी, लेकिन जब क्वालिटी और संसाधन पूरे होंगे।