15 जुलाई से दस दिनों के लिए बंद हो जाएंगे मचैल माता मंदिर के कपाट, क्या है यह अनोखी परंपरा आइए जानिए! Jammu News
जिस दिन मंदिर के कपाट खोले जाएंगे वह दिन पाडर में उत्सव से कम नहीं होगा। लोग नए वस्त्र पहन मंदिरों में पहुंचते हैं।
जम्मू/किश्तवाड़, जेएनएन। पाडर के दुर्गम पहाड़ों पर विराजमान मचैल माता मंदिर के कपाट 15 जुलाई को बंद कर दिए जाएंगे। उसके बाद ये कपाट दस दिन बाद 25 जुलाई को भक्तो के लिए खोले जाएंगे। इसके पीछे स्थानीय लोगों की मान्यता है और यह रीति नयी नहीं बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही है। जम्मू संभाग के जिला किश्तवाड़ का पाडर इलाका अपनी परंपराओं के लिए काफी मशहूर है। यहां जो परंपराएं है वह संभाग के किसी भी जिले में नहीं है।
पाडर इलाके की परंपरा के मुताबिक हर वर्ष श्रावण महीने में इलाके के सभी मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि सावन माह में मंदिर जाना शुभ नहीं होता। इसी परंपरा के अनुसार मचैल मां चंडी का दरबार इस बार भी 15 जुलाई को श्रावण की संक्रांति के दिन बंद कर दिया जाएगा। उसके बाद 25 जुलाई के दिन विधिवत पूजा-अर्चना के बाद मंदिरों को खोला जाएगा।
उत्सव की तरह मनाया जाता यह दिन
जिस दिन मंदिर के कपाट खोले जाएंगे, वह दिन पाडर में उत्सव से कम नहीं होगा। लोग नए वस्त्र पहन मंदिरों में पहुंचते हैं। मंदिरों की साफ-सफाई के बाद ढोल नगाढ़ों के साथ मंदिरों की पूजा होती है। पाडर के हरेक मंदिर में मेले जैसा माहौल होता है। मचैल माता के मंदिर में तो इस दिन श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ता है। मंदिर के कपाट खोलने से पूर्व पारंपारिक गीतों-भजनों के साथ नाच-गाना होगा। विशेष पूजन के साथ मां चंडी का आहृान किया जाएगा। मंदिर के कपाट खुलने पर श्रद्धालु मां के दरबार में हाजरी देंगे और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करेंगे।
श्रद्धालुओं के लिए परंपरा में किया कुछ बदलाव
मचैल माता के प्रति श्रद्धालुओं में बढ़ती आस्था को देखते हुए पाडर के लोगों ने परंपरा में कुछ बदलाव किए हैं। दरअसल मचैल माता मंदिर के कपाट सावन माह के आरंभ में बंद हो जाते थे और माह के अंत में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद कपाट खोले जाते थे। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्थानीय लोगों व मचैल यात्रा चलाने वाली सर्वशक्ति सेवक संस्था ने मंदिर सिर्फ 10 दिन के लिए ही बंद रखने का फैसला लिया। संस्था के राज्य प्रधान नेक राम मन्हास ने कहा कि इन दस दिनों तक मां का दरबार बंद हो जाता है। किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं होती। इसी परंपरा के अनुसार इस बार भी मंदिर 15 जुलाई को बंद कर 25 जुलाई को खोला जाएगा।
नाच-गाकर मां को किया जाता है खुश
जिस दिन मचैल माता का दरबार खोला जाएगा, वह दिन उत्सव से कम नहीं होता। मंदिर में मेले सा माहौल रहता है। मां के दर्शनों के लिए स्थानीय ही नहीं आसपास के इलाकों से भी सैकड़ों लोग पहुंचते हैं। कपाट खुलने के बाद केवल स्थानीय लोगों के ही मंदिर में प्रवेश की अनुमति होती है। ये लोग अपने रीति रिवाज के मुताबिक मंदिरों में प्रवेश कर पूजा-अर्चना करते हैं। जब तक स्थानीय लोग पूजा करके वापस नहीं चले जाते तब तक किसी भी बाहरी श्रद्धालु को मंदिर प्रवेश की अनुमति नहीं होती है। स्थानीय लोग नाच गाकर माता को प्रसन्न करते हैं।
17 जुलाई को जम्मू से मचैल रवाना होगी दिव्य ज्योति
मचैल माता यात्रा को लेकर किश्तवाड़ के कुछ स्थानीय धार्मिक संगठनों में आपसी विवाद पैदा होने के बाद वार्षिक त्रिशुल यात्रा निकालने जाने पर असमंजस बना हुआ है। परंतु जम्मू से हर साल निकलने वाली दिव्य ज्योति यात्रा इस बार भी 17 जुलाई को पक्का डंगा स्थित प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर से निकाली जाएगी। इस यात्रा में शामिल होने के लिए स्थानीय ही नहीं पड़ोसी राज्यों से भी सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मचैल माता के सेवक संजय गुप्ता ने बताया कि यात्रा को लेकर तैयारियां की जा रही हैं। बसों का इंतजाम कर लिया गया है। महालक्ष्मी मंदिर में विराजमान मां मचैल की विशेष पूजा-अर्चना के बाद दिव्य ज्योति की शहर में शोभायात्रा निकाली जाएगी और उसके बाद श्रद्धालु मचैल के लिए प्रस्थान करेंगे। गुप्ता ने समस्त जम्मू वासियों को यात्रा में शामिल होने का न्यौता दिया।