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अवशेष बयां करते हैं बहुत करीब थे जम्मू-सियालकोट, घाटी में रेल पहुंचाने के लिए भी हो चुका था सर्वे

सियालकोट में छोटी लाइन अभी भी लाहौर रेल लाइन को जोड़ती है लेकिन आरएसपुरा से लेकर बलोल पुल के 30 किलोमीटर रेलवे ट्रैक के पास पुंछ के रिफ्यूजी बस गए और यह लाइन ठप पड़ी है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 01:12 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 01:12 PM (IST)
अवशेष बयां करते हैं बहुत करीब थे जम्मू-सियालकोट, घाटी में रेल पहुंचाने के लिए भी हो चुका था सर्वे
अवशेष बयां करते हैं बहुत करीब थे जम्मू-सियालकोट, घाटी में रेल पहुंचाने के लिए भी हो चुका था सर्वे

जम्मू, अवधेश चौहान। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से दोनों मुल्कों के बीच भले ही दूरियां बढ़ गईं, लेकिन अनाज मंडी (वेयर हाउस) जम्मू रेलवे स्टेशन के सदियों पुराने अवशेष आज भी याद दिलाते हैं कि कभी यह दूरी महज आधे घंटे की थी। जम्मू से लोग फिल्म देखने सियालकोट जाते थे।

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यह अवशेष आज भी सियालकोट और जम्मू के बीच के संबंधों की हकीकत बयां कर रहे हैं। 130 साल पहले सियालकोट से रोजाना जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र आरएसपुरा तक ट्रेन यात्रियों को लेकर पहुंचती थी, लेकिन देश के बंटवारे के बाद दोनों ओर से ट्रेनों के पहिए थम गए। दोनों मुल्कों के बीच सीमाओं के साथ-साथ नफरत की दीवारें भी ङ्क्षखच गई, लेकिन छोटी लाइन पर दौडऩे वाली ट्रेन की यादें आज भी दोनों तरफ रहने वाले लोग संजोए हुए हैं। वर्ष 1897 में सियालकोट के वजीराबाद जंक्शन से ट्रेन चलकर जम्मू के वेयर हाउस के पास स्टेशन पर रुकती थी।

सियालकोट जो अब पाकिस्तान के पंजाब का हिस्सा है, से जम्मू के आरएसपुरा स्थित शुगर मिल में गन्ना पहुंचता था। आरएसपुरा में यह सबसे बड़ी शुगर मिल होती थी क्योंकि सियालकोट और आरएसपुरा इलाकों में लोग पहले 80 फीसद गन्ने की फसल बोया करते थे। सिर्फ 20 फीसद ही बासमती हुआ करती थी। बंटवारे ने नफरत के ऐसे बीज बोए कि जम्मू में 25 साल तक रेल लाइन गायब रही। जम्मू के वेयर हाउस क्षेत्र में रेलवे स्टेशन की जमीन पर वर्ष 2006 में कला केंद्र की इमारत बन गई, लेकिन आरएसपुरा रेलवे स्टेशन की इमारत दोनों देशों की यादों को संजोए हुए मूक साक्षी के रूप में अभी भी खड़ी है।

सियालकोट से रात गुजारने आते थे लोग

आरएसपुरा के चंदू चक्क के रहने वाले 95 वर्षीय खजान सिंह का कहना है कि सियालकोट से लोग जम्मू के रणबीर नहर के पास रात गुजारने के लिए आते थे क्योंकि दरिया चिनाब से निकली यह नहर गर्मियों में लोगों को सुकून पहुंचाती थी। मालगाड़ी में सैकड़ों टन गन्ना आरएसपुरा पहुंचता था और दोनों ओर रहने वालों के लिए रोजगार के साधन भी थे। सुचेतगढ़ गांव के पास एक चुंगी हुआ करती थी, जहां चव्वनी चुंगी काटी जाती थी। यह राजस्व महाराजा हरि सिंह के खजाने में जाता था।

अनदेखी के कारण इतिहास पन्नों में ही सिमट गया

सियालकोट में छोटी लाइन अभी भी लाहौर रेल लाइन को जोड़ती है, लेकिन आरएसपुरा से लेकर बलोल पुल के 30 किलोमीटर रेलवे ट्रैक के पास पुंछ के रिफ्यूजी बस गए और यह लाइन ठप पड़ी है। जम्मू के पुराने रेलवे स्टेशन जहां आधी भूमि पर स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (एसआरटीसी) का यार्ड बन गया है और आधे में कला केंद्र की भव्य इमारत। अगर राज्य सरकार चाहती तो इस रेलवे स्टेशन को पुरातत्व विभाग को देकर एक विरासत के रूप में संरक्षित कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यह इतिहास पन्नों में सिमट कर रह गया।

कश्मीर घाटी तक रेल पहुंचाने का सर्वे हो चुका था

बंटवारे के बाद जम्मू में वर्ष 1972 में पहली ट्रेन पहुंची। उस समय के स्टेशन मास्टर वाइपी गुप्ता कहते हैं वर्ष 1902 में महाराजा प्रताप सिंह ने कश्मीर घाटी में रेलवे लाइन पहुंचाने के लिए सर्वे करवाया था। पहला सर्वे एबटाबाद जो इस समय पाकिस्तान में है, से श्रीनगर के लिए हुआ। दूसरा सर्वे जम्मू से श्रीनगर बाया बनिहाल के लिए दो रूट पर हुआ, जिसमें पहला नैरो गाज लाइन और दूसरा इलेक्ट्रिक रेल लाइन के लिए जम्मू से श्रीनगर बाया बनिहाल के लिए हुआ। आर्थिक दिक्कतों के कारण यह परियोजना फलीभूत नहीं हो पाई।


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