Jammu Kashmir : प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए चयन होने पर कुलदीप हांडू की वर्षों की मेहनत रंग लाई, दोगुने जोश से भारत की वुशू टीम में और अधिक निखार लाएंगे
कुलदीप हांडू का कई साल पहले प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए देखा सपना साकार हो गया है। इस पुरस्कार के लिए चयन होने पर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हांडू
जम्मू , विकास अबरोल : कुलदीप हांडू का कई साल पहले प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए देखा सपना साकार हो गया है। इस पुरस्कार के लिए चयन होने पर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हांडू और उनका परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा है। घर में बधाई देने वालों का तांता है। हांडू कहते हैं कि अब वह पहले से अधिक दोगुने जोश से भारत की वुशू टीम के खेल में और अधिक निखार लाने में शत प्रतिशत देंगे।
जम्मू कश्मीर पुलिस में इंस्पेक्टर व नेशनल चीफ कोच हांडू वुशू खेल से करीब ढाई दशक से जुड़े हुए हैं। दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए हांडू कहते हैं कि मैं यह पुरस्कार देश और अभिभावकों को समॢपत करता हूं। आज मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। वैसे तो मुझे कई पुरस्कार मिले हैं, लेकिन यह पुरस्कार मेरा सपना था जिसे मैंने खुली आंखों से देखा था। कश्मीरी पंडित समुदाय से हांडू के परिवार ने विस्थापन के बाद काफी संघर्ष झेला, लेकिन किसी ने हिम्मत नहीं हारी। संघर्ष को पार करते आगे बढ़ते चले गए। उन्होंने कहा कि इससे पहले तीन वर्षों से द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए उनके नाम की सिफारिश हुई थी, लेकिन हर बार टल गया। विश्वास पर अडिग रहा। इस बार उन्हें पूरी उम्मीद थी।
प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए चयन होने पर कुलदीप हांडू की वर्षों की मेहनत रंग लाई
हांडू ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वर्ष 1991 में ताइक्वांडो खेल से मैंने शुरुआत की। उस समय खेलों के प्रति अभिभावक अधिक जागरूक नहीं होते थे, लेकिन मुझे अभिभावकों ने पूरा सहयोग दिया। काफी मेहनत और कड़ी तपस्या के बलबूते ही वह आज इस मुकाम पर पहुंचे। वह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर प्रदेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन गए। चूंकि उन दिनों उनके कोच दिवंगत विशाल शर्मा ताइक्वांडो और वुशू खेल की ट्रेनिंग देते थे। वुशू नया खेल था। उनका रुझान कुछ समय के लिए बॉङ्क्षक्सग की तरफ बढ़ गया। बॉक्सिंग में भी दमखम दिखाकर राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीता और फिर मार्शल आर्ट खेल की ओर लौट आया। विशाल शर्मा ने मेरे खेल को देख वुशू में मुझे प्रोत्साहित किया। पहले तो यह खेल मुझे पूरी तरह से बॉक्सिंग और ताइक्वांडो जैसे ही दिखा क्योंकि इसमें पंच और किक का इस्तेमाल किया जाता है। मेरी दिलचस्पी इसमें जागी और देखते ही देखते एक वर्ष में स्टेट चैंपियन बन गया और फिर नेशनल। हांडू ने बताया कि तीन वर्षों में बतौर नेशनल चीफ कोच उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने 16 अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 20 स्वर्ण, 47 रजत और 70 से अधिक कांस्य पदक जीत चुकी है। वह पूरे देश में वुशू के लिए प्रतिभाएं तलाश रहे हैं।
ताइक्वांडो, बाॅक्सिंग और वुशू में राष्ट्रीय स्तर पदक जीतने वाले प्रदेश के एकमात्र खिलाड़ी
11 वर्ष तक वुशू का राष्ट्रीय चैंपियन का रिकॉर्ड सिर्फ हांडू के नाम है। उन्होंने कहा कि शरीर में लचीलापन लाने के लिए जिम्नास्टिक भी सीखी। इसका काफी लाभ मिला। मैं 11 वर्षों तक राष्ट्रीय चैंपियन रहा। यह रिकॉर्ड आज तक उनके नाम है। लंबाई और शरीर में लचीलापन होने के कारण मुझे खेल में फायदा मिला। सात बार अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं एशियन, सैफ सहित अन्य खेलों में पदक जीते। वर्ष 2010 से मुझे भारतीय वुशू टीम का पहले कोच बनाया गया और तब से लेकर आज तक भारतीय टीम के प्रदर्शन और पदक तालिका में इजाफा होता आया है।
ये मिल चुके पुरस्कार :
स्टेट पुरस्कार, शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार , एफआइसीसीआइ पुरस्कार और परशुराम पुरस्कार।