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कश्मीरी पंडित बोले करतारपुर कॉरिडोर की तरह गुलाम कश्मीर स्थित शारदा पीठ जाने की हो व्यवस्था

पंडित मांग कर रहे हैं कि जैसे करतारपुर कॉरिडोर के जरिए सिख समुदाय के लोगों को पाक स्थित ननकाना साहिब में जाने के लिए बंदोबस्त हुए हैं ऐसा ही कुछ सोचा जाए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 10:07 AM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 10:07 AM (IST)
कश्मीरी पंडित बोले करतारपुर कॉरिडोर की तरह गुलाम कश्मीर स्थित शारदा पीठ जाने की हो व्यवस्था
कश्मीरी पंडित बोले करतारपुर कॉरिडोर की तरह गुलाम कश्मीर स्थित शारदा पीठ जाने की हो व्यवस्था

जम्मू, जागरण संवाददाता । करतारपुर कॉरिडोर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते के बाद विस्थापित कश्मीरी पंडित गुलाम कश्मीर स्थित माता शारदा पीठ मंदिर के दर्शन को लेकर खासे उत्सुक हैं। नौवें दशक में आतंकवाद पनपने के साथ ही अपनी मिट्टी से बिछड़ने के बाद देश-विदेश में बसे पंडित पीठ के दर्शन की मांग लगातार कर रहे हैं। शारदा पीठ पंडितों की आस्था व संस्कृति से जुड़ा है। पंडित मांग कर रहे हैं कि जैसे करतारपुर कॉरिडोर के जरिए सिख समुदाय के लोगों को पाक स्थित ननकाना साहिब में जाने के लिए बंदोबस्त हुए हैं, ऐसा ही कुछ सोचा जाए।

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कश्मीरी विस्थापितों की संस्था जगटी टेनमेंट कमेटी के प्रधान शादी लाल पंडिता का कहना है कि कई सरकारों को इस बारे में अवगत करवाया गया, लेकिन किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। शारदा माता के प्रति पंडितों की इतनी आस्था है कि जम्मू कश्मीर के अलग अलग स्थलों पर शारदा माता के मंदिर बनाए गए हैं। शारदा पीठ मंदिर पुरात्तन है।

यूथ आल इंडिया कश्मीरी समाज के सलाहकार अजय सफाया ने कहा कि करतारपुर कॉरिडोर के बाद अब और एतिहासिक फैसले लेने की जरूरत है। पंडित शारदा पीठ जाना चाहते हैं। पंडितों के नेता बीके भट्ट का कहना है कि शारदापीठ गुलाम कश्मीर के नीलम जिले में है। लंबे समय से वह हिंदुओं को इस पीठ में जाने के लिए अनुमति देने की मांग कर रहे हैं। भारत सरकार को अब कोई राह निकालनी चाहिए। एम जुत्शी ने कहा कि वर्ष 2005 के बाद केंद्र सरकार के अधिकारियों, नेताओं से मिला जा चुका है। अभी तक कोई ठोस कदम उठते नही दिखे।

सिर्फ खंडहर बचे हैं

पाक सरकार ने शारदा पीठ वर्ष 1947-1948 से बाहरी तीर्थयात्रियों के लिए बंद कर रखा है। सात दशकों में शारदा पीठ के सिर्फ खंडहर बचे हैं। इतिहासकारों का कहना है कि यहां पर मूल मंदिर का निर्माण कुशान राज के दौरान किया था लेकिन मौजूदा मंदिर व शिक्षा केंद्र की स्थापना ललितादित्य के समय किया गया। दक्षिण एशिया में इस मंदिर का बहुत महत्व था। बंगाल तक से छात्र यहां शिक्षा के लिए आते थे। आज भी दक्षिण भारत के सारस्वत ब्राह्मणों में शिक्षा शुरू करने से पहले सात कदम कश्मीर की तरफ चलने की परंपरा है जिसे शारदा पीठ से जोड़ कर देखा जाता है।


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