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कश्मीरी पंडितों-गुलाम कश्मीर से आए नागरिकों ने मांगा राजनीतिक हक, विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने का किया आग्रह

कश्मीरी पालिसी एंड स्ट्रेटजी ग्रुप के अध्यक्ष एडवोकेट अशोक भान ने कहा कि परिसीमन आयोग को जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कश्मीर घाटी में सिख और कश्मीरी पंडित समुदाय का राजनीतिक सशक्तिकरण बहुत जरूरी है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 22 Dec 2021 07:38 AM (IST)Updated: Wed, 22 Dec 2021 07:38 AM (IST)
कश्मीरी पंडितों-गुलाम कश्मीर से आए नागरिकों ने मांगा राजनीतिक हक, विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने का किया आग्रह
जम्मू कश्मीर की विधानसभा में कश्मीरी सिख और कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : जम्मू कश्मीर के प्रस्तावित परिसीमन प्रारूप से कश्मीरी पंडित समुदाय और गुलाम कश्मीर से आए नागरिक नाराज नजर आए। उन्होंने परिसीमन आयोग और केंद्र सरकार से जम्मू कश्मीर की विधानसभा में उनके प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित बनाने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू किए जाने के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हमें राजनीतिक रूप से पूरी तरह सशक्त बनाने का यकीन दिलाया था।

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पनुन कश्मीर के अध्यक्ष डा. अजय चुरंगु ने कहा कि परिसीमन आयोग से हमें पूरी उम्मीद थी कि वह अपने ही देश में शरणार्थियों की ङ्क्षजदगी जी रहे कश्मीरी पंडितों के राजनीतिक हक को बहाल करेगा। अगर घाटी से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की नौबत आई तो उसका एक बड़ा कारण आप जम्मू कश्मीर की विधानसभा में उनका कोई प्रतिनिधित्व न होना भी था। कश्मीरी पंडितों के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और विकासात्मक मुद्दों की कोई उपेक्षा न कर सके, इसलिए उन्हें विधानसभा में आरक्षण मिलना चाहिए।

आल पार्टी सिख कोआर्डिनेशन कमेटी के चेयरमैन सरदार जगमोहन ङ्क्षसह रैना ने कहा कि जम्मू कश्मीर में सिख समुदाय को राजनीतिक रूप से मजबूत बनाना जरूरी है, ताकि यहां जो ताकतें मुख्यधारा की आड़ लेते हुए अलगाववाद को बढ़ावा देती हैं, उन्हें पूरी तरह नाकाम बनाया जाए। यह सही है कि धार्मिक आधार पर राजनीतिक आरक्षण नहीं होना चाहिए, लेकिन आप ही बताएं कि बीते 75 सालों में जम्मू कश्मीर में कितने सिख विधाायक बने हैं, शायद एक या दो ही और वह भी बरसों पहले।

गुलाम कश्मीर के शरणार्थियों के हितों के लिए संघर्षरत एसओएस इंटरनेशनल के चेयरमैन राजीव चुन्नी ने कहा कि गुलाम कश्मीर की 24 सीटें जम्मू कश्मीर की विधानसभा में आरक्षित रखी जाएंगी, लेकिन उन पर कोई उम्मीदवार चुना नहीं जाएगा, यह सही नहीं है। गुलाम कश्मीर से मेरे परिवार की तरह उजड़ कर आए सैकड़ों परिवार यहां हैं, हम जम्मू कश्मीर के नागरिक हैं, लेकिन कभी भी हमें विधानसभा में प्रतिनिधित्व नहीं मिला, क्योंकि हम एक धर्म विशेष से संबंधित नहीं थे। गुलाम कश्मीर से आने वाले शरणार्थी ङ्क्षहदू या सिख ही हैं। हम उम्मीद कर रहे थे कि परिसीमन आयोग हमारे साथ न्याय करेगा। हम कोई नया निर्वाचन क्षेत्र नहीं चाहते, हम चाहते हैं कि वह कम से कम आरक्षित 24 सीटों में से कुछ सीटों को डी-फ्रीज कर दे।

कश्मीरी पालिसी एंड स्ट्रेटजी ग्रुप के अध्यक्ष एडवोकेट अशोक भान ने कहा कि परिसीमन आयोग को जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कश्मीर घाटी में सिख और कश्मीरी पंडित समुदाय का राजनीतिक सशक्तिकरण बहुत जरूरी है। देश के विभिन्न हिस्सों में विस्थापितों की ङ्क्षजदगी जी रहे कश्मीरी पंडित समुदाय की कश्मीर में वापसी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है जम्मू कश्मीर की विधानसभा में कश्मीरी सिख और कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए प्रतिनिधित्व होना चाहिए। 


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