Ayodhya Verdict: अयोध्या में ढांचा गिराए जाने के वक्त सद्भावना और सौहार्द की मिसाल बनी थी कश्मीर घाटी
श्रीनगर समेत वादी के सभी प्रमुख शहरों पर कस्बों में स्थिति लगभग सामान्य रही। सिर्फ उत्तरी कश्मीर में एलओसी के साथ सटे दावर इलाके में स्थानीय लोगों ने हड़ताल की थी।
श्रीनगर, नवीन नवाज। 27 वर्ष पूर्व अयोध्या में ढांचा गिराए जाने के वक्त जब पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा का माहौल था तो कश्मीर घाटी पूरी तरह शांत रही। कोई हड़ताल नहीं थी, सिर्फ उत्तरी कश्मीर में एलओसी के साथ सटे एक छोटे से गांव में स्थानीय लोगों ने शांतिपूर्ण बंद रखा था। उस समय घाटी में धर्मांध जिहादियों का आतंक अपने चरम पर था। उन्होंने लोगों को हर जगह उकसाने का प्रयास किया,लेकिन कश्मीरी मुस्लिमों ने उनके मंसूबों को पूरा करने के बजाय संयम शांति बनाए रखी।
गौरतलब है कि आज अयोध्या मामले में सर्वाेच्च न्यायालय का फैसला रामलला के पक्ष में आ गया है। इसे देखते हुए पूरे देश में पहले से ही किसी भी अप्रिय घटना से निपटने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त किया गया है। यहां केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में भी प्रशासन ने मौजूदा हालात को देखते हुए शांति बनाए रखने के लिए सभी एहतियाती कदम उठाए हैं। सभी शिक्षण संस्थानों को बंद रखा गया है और पूरे राज्य में धारा 144 को सख्ती से लागू किया गया है।
अयोध्या में जब ढांचा गिरा था जब यहां सब कुछ सामान्य रहा था
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अहमद अली फैयाज ने कहा कि कश्मीर घाटी कई मामलों में लोगों को हैरान करती है। हालांकि यह मुस्लिम बहुल है और दुनिया के किसी भी कोने में मुस्लिम भावनाआें को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी घटना पर यहां बवाल हो जाता है, लेकिन अयोध्या में जब ढांचा गिरा था तो यहां सब कुछ सामान्य रहा। उस समय यहां कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था। आतंकियों और उनके समर्थकों ने हालात बिगाड़ने की हर साजिश की थी। आम लोगों ने उनकी एक नहीं चलने दी। उस समय श्रीनगर समेत वादी के सभी प्रमुख शहरों पर कस्बों में स्थिति लगभग सामान्य रही। सिर्फ उत्तरी कश्मीर में एलओसी के साथ सटे दावर इलाके में स्थानीय लोगों ने हड़ताल की थी।
कई राष्ट्र विरोधी ताकतों ने भड़काने का प्रयास किया परंतु कामयाब नहीं रहे
सामाजिक कार्यकर्त्ता सलीम रेशी ने कहा कि मैं उस समय करीब 17 साल का था। केबल टीवी का दौर था। यह नहीं कह सकते थे कि यहां लोग नाराज नहीं थे, नाराज थे लेकिन सभी शांत रहे। मुझे याद है कि कुछ लोगों ने ढांचा गिराए जाने के वक्त और उसके अगले दिन शहर के कुछ हिस्सों में भाषण देकर इस घटना को हिंदुस्तान में मुस्लिमों पर जुल्म का नाम देकर हम कश्मीरी मुस्लिमों को बंदूक और जिहाद का पाठ पढ़ाने का प्रयास किया था। खैर, किसी ने उनकी नहीं सुनी, किसी ने कोई जुलूस नहीं निकाला और सब अपने काम में लगे रहे। जहां तक मैं जानता हूं और समझता हूं कि आम कश्मीरी मुस्लिम किसी भी तरह से सांप्रदायिक नहीं है। वे इस घटना पर हिंसा का हिस्सा बन किसी भी तरह से कश्मीरियत की अपनी परंपरा और इस्लाम के बुनियादी उसूलों से दूर नहीं जाना चाहता था। आज भी यही स्थिति है।
आम कश्मीरी मुस्लिम का विवादित ढांचे से कोई सरोकार नहीं है
अहमद अली फैयाज ने कहा कि कश्मीर में शांति बहाल रहना, समाज विज्ञानियों और राजनीतिक शोधकर्त्ताओं के लिए एक केस स्टडी है। हालांकि कश्मीरी मुस्लिमों ने पहले भी सांप्रदायिक सौहार्द का परिचय दिया है। महात्मा गांधी ने 1947 में हुए दंगों के समय भी कहा था कि अगर उन्हें कहीं रोशनी की किरन नजर आती है तो वह कश्मीर ही है। उस समय कश्मीर में कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई थी। साल 1992 की घटना के समय हमने जो महसूस किया, उसके मुताबिक आम कश्मीरी मुस्लिम किसी हद तक यह मानता था कि विवादित ढांचे का उससे कोई सरोकार नहीं है। यह दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले मुस्लिमों व अन्य समुदायों के बीच का मसला है। इसलिए उसने इस मुददे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
सर्वाेच्च न्यायालय ने फैसला रामलला के हक में दिया है। यह फैसला मुस्लिमों के खिलाफ है इसके बाद भी उन्हें नहीं लगता कि कश्मीर के लोग अशांति का कारक बनेंगे। जो लोग बवाल कर सकते थे, वे सभी इस समय जेलों में बंद हैं। आम कश्मीरी शांति और सांप्रदायिक सौहार्द में यकीन रखता है।